- आज का भगवद चिंतन-
जीवन की कोई ऐसी परिस्थिति नहीं जिसे अवसर में ना बदला जा सके। हर परिस्थिति का कुछ ना सन्देश होता है। अगर तुम्हारे पास किसी दिन कुछ खाने को ना हो तो श्री सुदामा जी की तरह प्रभु को धन्यवाद दो "प्रभु आज आपकी कृपा से यह एकादशी जैसा पुण्य मुझे प्राप्त हो रहा है।
अगर कभी भारी संकट आ जाए तो माँ कुंती की तरह भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करो कि प्रभु मेरे जीवन में यह दुःख ना आता तो मै आपको कैसे स्मरण करता ? मै अपने सुखों में उलझकर कहीं दिग्भ्रमित ना हो जाऊँ, इसीलिए आपने मेरे ऊपर यह कृपा की है। हर पल प्रभु को धन्यवाद दो और दिल से यह भाव गाते रहो,
जीवन की कोई ऐसी परिस्थिति नहीं जिसे अवसर में ना बदला जा सके। हर परिस्थिति का कुछ ना सन्देश होता है। अगर तुम्हारे पास किसी दिन कुछ खाने को ना हो तो श्री सुदामा जी की तरह प्रभु को धन्यवाद दो "प्रभु आज आपकी कृपा से यह एकादशी जैसा पुण्य मुझे प्राप्त हो रहा है।
अगर कभी भारी संकट आ जाए तो माँ कुंती की तरह भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करो कि प्रभु मेरे जीवन में यह दुःख ना आता तो मै आपको कैसे स्मरण करता ? मै अपने सुखों में उलझकर कहीं दिग्भ्रमित ना हो जाऊँ, इसीलिए आपने मेरे ऊपर यह कृपा की है। हर पल प्रभु को धन्यवाद दो और दिल से यह भाव गाते रहो,
तेरी मेंहरवानी का है बोझ इतना,
जिसे मै उठाने के काविल नहीं हूँ॥
मै आ तो गया हूँ मगर जानता हूँ,
दर पे भी आने के काविल नहीं हू ।
रामनारायण सोनी
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अपने उद्देश्य से विचलित न हों।
मेंढको का झुण्ड एक जंगल से गुज़र रहा था। अचानक उनमे से दो मेंढक एक गड्ढे में गिर गए। वो गड्ढा इतना गहरा था की उसमे से छलांग लगाकर बाहर आना बहुत ही मुश्किल था। जब बाकी सारे मेंढको ने उनका हौसला बढाने के बजाये कहने लगे कि अब कुछ नहीं हो सकता, तुम यही मर जाओगे। गड्ढे में गिरे दोनों मेंढको ने उनकी बात को बाहर निकलने की कोशिश करने लगे, पर बाकि सभी उन्हें बाहर से चिल्लाने लगे कि अब तुम लोग बाहर नहीं आ पाओगे। एक मेंढक ने उनकी बात सुन ली और उसने हार मन ली। वो थोड़ी देर बाद मर गया।लेकिन दूसरा मेंढक ने हार नहीं मानी। दूसरी और बाकि सभी मेंढक पूरी कोशिश कर रहे थे उसे निराश करने की, उस मेंढक ने आख़िरकार अपनी जान लगाकर छलांग लगायी. और बाहर निकल आया।
जब वो बहार आया दुसरे मेंढको ने उसे पूछा कि क्या हम जो कह रहे थे वह तुम्हे सुनाई नहीं दिया ? तब पता लगा की वो मेंढक बहरा था।
आशय यह है कि या तो आप दुनिया की सुनें और अपने सपने भुला दीजिये। या फिर किसीकी सुनना बंद कीजिये और जो करना चाहते है उसकी प्राप्ति के लिए प्राण पण से जुट जाइये।
रामनारायण सोनी
बकरी की खोज…..
N Shah in शिक्षाप्रद कहानियाँ
कनाडा के टोरंटो में दो मित्रों को अजीब विचार सूझा. उन्होंने तीन बकरियों को पकड़ा और तीन तरफ 1, 2, और 4 नंबर लिख दिए. उन्होंने उन बकरियों को अपने स्कूल की बिल्डिंग में उस रात खुला छोड़ दिया.
अगली सुबह जब प्राधिकारी स्कूल में आए, तो उन्हें कुछ बदबू सी आई. जल्दी ही उन्हें सीढ़ियों और प्रवेश द्वार के पास बकरियों की लीद दिखाई दे गई और उन्हें समझ आ गया कि कुछ बकरियां बिल्डिंग के अदंर आ गई हैं. तुरंत ही हर जगह खोज शुरू कर दी गई.
जल्द ही उन्हें तीनों बकरियां मिल गई. पर प्राधिकारी इस बात से चिंतित हो उठे कि आखिर बकरी नंबर 3 कहां है. उन्होंने बाकी बचा दिन 3 नंबर की बकरी को ढूंढने में बिता दिया. स्कूल की छुट्टी घोषित कर दी गई. टीचर, सहायक और कैंटीन में कार्यरत नौकर सब बकरी नंबर 3 को ढूंढते रहे जो थी ही नहीं.’
सीख - हम सब उन लोगों की तरह हैं. हमारे पास बेशक अपनी बकरियां हों, पर हम एक आवेश में उस भ्रामक,गायब, अस्तित्वहीन बकरी नंबर 3 को ढूंढते रहते हैं. अच्छा होगा कि आपके पास जो है उसका अधिकतम फायदा उठाएं. बकरी नंबर 3 की चिंता करना छोड़ दे…
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एक गाँव में एक काना था सब लोग उसे एक आँख होने की वजह से काना कह कर चिढाते थे। उसने सोचा की इन गाँव वालो को सबक सिखाता हूँ। उसने रात को 12 बजे अपनी दूसरी आँख भी फोड़ ली और पुरे गाँव में चिल्लाता हुआ दोड़ने लगा “मुझे भगवान दिखाओ दे रहें है अच्छे दिन दिखाई दे रहे है”,
ये सुनकर गाँव वाले बोले अबे काने तुझे कहाँ से भगवान या दिखाई दे रहें हैं। तो उसने कहा की रात को सपने में भगवन ने दर्शन दिया और बोले की अगर तू अपनी दुसरी आँख भी फोड़ ले तो तुझे मेरे दर्शन होंगे। इतना सुनकर गाँव के सरपंच ने कहा की मुझे भी भगवन देखने हैं। तो अँधा बोला की दोनों आँखे फोडोगे तभी दिखाई देंगे ।
सरपंच ने हिम्मत करके अपनी दोनों आँखे फोड़ ली। पर ये क्या अच्छे दिन तो दूर अब तो उसे दुनिया दिखाई देना बंद हो गई। उसने अंधे से कान में कहा की भगवान तो दिखाई नहीं दे रहे। तो अँधा बोला सरपंच जी सबके सामने ये सच मत बोलना नहीं तो सब आप को मुर्ख कहेंगे इसलिए बोलो भगवानके दर्शन गए।
इतना सुनकर सरपंच ने जोर से बोला मुझे भी भगवान दिखाई दे रहे हैं। इसके बाद एक एक करके पुरे गांव वालों ने अपनी आँखे फोड़ डाली और मज़बूरी में वही बोल रहे थे जो सरपंच ने कहा । भगवान के दर्शन हो गये…
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वृद्ध ने सिखाया सम्राट को सबक
July 14, 2014posted by N Shah in शिक्षाप्रद कहानियाँ
प्राचीन जापान में एक सम्राट बहुत सनकी था। वह छोटी-छोटी गलतियों के लिए बड़ा दंड दे देता था। इसलिए प्रजा उससे बहुत भयभीत रहती थी। सम्राट के पास बीस फूलदानियों का एक अति सुंदर संग्रह था, जिस पर उसे बड़ा गर्व था। वह अपने महल में आने वाले अतिथियों को यह संग्रह अवश्य दिखाता था।
एक दिन फूलदानियों की नियमित सफाई के दौरान सेवक से एक फूलदानी टूट गई। सम्राट तो आगबबूला हो गया। उसने सेवक को फांसी पर लटकाने का हुक्म दे दिया। राज्य में खलबली मच गई। एक फूलदानी टूटने की इतनी बड़ी सजा पर सभी हैरान रह गए। सम्राट से रहम की अपील की गई, किंतु वह नहीं माना।
तब एक बूढ़ा आदमी दरबार में हाजिर होकर बोला, ‘सरकार! मैं टूटी हुई फूलदानी जोडऩे में सिद्धहस्त हूं। मैं उसे इस तरह जोड़ दूंगा कि वह पहले जैसी दिखाई देगी।’ सम्राट ने प्रसन्न होकर बूढ़े को अपनी शेष फूलदानियां दिखाते हुए कहा, ‘इन उन्नीस फूलदालियों की तरह यदि तुम टूटी हुई फूलदानी को भी बना दोगे तो मुंहमांगा इनाम पाओगे।’
सम्राट की बात समाप्त होते ही बूढ़े ने अपनी लाठी उठाई और सभी फूलदानियां तोड़ दीं। यह देखकर सम्राट क्रोधावेश में कांपते हुए बोला, ‘बेवकूफ! ये तुमने क्या किया?’ बूढ़े ने दृढ़ता के साथ कहा, ‘महाराज! इनमें से हर फूलदानी के पीछे एक आदमी की जान जाने वाली थी। तो मैंने अपने इंसान होने का फर्ज निभाते हुए उन्नीस लोगों के प्राण बचा लिए। अब आप शौक से मुझे फांसी की सजा दे सकते हैं।’
बूढ़े की चतुराई और साहस देखकर सम्राट को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने बूढ़े तथा सेवक दोनों को माफ कर दिया। बुराई से लडऩे के लिए साहस और आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। यदि निर्भीकता से डटकर खड़े रहें तो बुराई का अंत अवश्य होता है।
Bahut badhiya
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