शनिवार, 2 मई 2015

वर्क इन प्रोग्रेस

वर्क इन प्रोग्रेस

प्रिय बंधुओं !
जय श्री राम ! जय श्रीकृष्ण ! ॐ नमः शिवाय !
सर्जना मंच के सत्साहित्य प्रसार अभियान में आपका हार्दिक स्वागत, वंदन, अभिनन्दन!
आपको याद दिल दें आपकी अस्मिता की, आप विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति के संवाहक हैं। ऐसी अमीर संस्कृति के जो अपनी विश्वबंधुत्व, अध्यात्म, धर्म, विज्ञानं,और सहअस्तित्व के दैविक गुणों से ओतप्रोत है। हम बंदरों की नहीं ऋषियों की सन्तानें हैं।  हम पशिम के अनर्गल प्रवाह में बाह रहे हैं। सबसे बड़ा कारण है हमें अपना आत्म बोध नहीं है। हमारे धार्मिक सत्साहित्य में ज्ञान विज्ञानं कूट कूट कर भरा है। एक नमूना मैंने अपनी पुस्तक "पिंजर प्रेम प्रकासिया" में दिया है। विश्व के विकसित देशों में संस्कृत और हमारे पुरातन साहित्य को उच्च अध्ययन में शामिल कर लिया गया है। दूसरी तरफ हम स्वयं इससे दूर होते जा रहे हैं। हम इतनी विक्षिप्त मानसिकता में प्रवेश कर गए हैं कि हमें अपनी सांस्कृतिक परिवेश को एक कुंठा और दकियानूसी भरा समझते हैं। ये समझलें की "अभी नहीं तो कभी नहीं"। सर्जना-मंच के माध्यम से आपसे अनुनय है की आज के इस बढ़ते टेक्नोलॉजी के दौर में कम्प्यूटर और "वर्च्युअल वल्ड" इतना गहरा बैठ गया है कि इस माध्यम से यदि हम प्रसार करते हैं तो इसे एक गति मिलेगी और हम उन लोगों तक पहुंच पाएंगे जो इसका उपयोग करते है। इसके बहुत लाभ हैं। आपसे अनुरोध है कि इसे जान जान तक फैलाएं।

निवेदक
"सर्जना मंच"


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Arrange some rice to a man , you feed him for a day. It is batter, you teach a him to cultivate rice and you feed him for a lifetime.
किसी आदमी को कुछ चावल दीजिये जिससे आप एक दिन के लिए उसका पेट भरेंगे। इससे बेहतर है कि उस आदमी को धान उगाना सिखा दीजिये और आप जीवन भर के लिए उसका पेट भर देंगे।
 एक चीनी  कहावत


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चिंतन- मनन-दर्शन-सन्देश
हमारा मंच एक सामान्य चिंतन का ही परिणाम है। जिस चिंतन से यह उपजा है उसे संक्षेप में यहाँ लिख रहा हूँ।
मस्तिष्क में कई प्रकार की विचारो की शृंखलाएं चलती ही रहती है। सचमुच जन्म से आज ही नहीं, अभी तक। आइये इसे अध्यात्म के दृष्टि कोण से देखे।  तत्व चिंतामणि में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने बताया है - मानव शरीर के स्थूल,, सूक्ष्म शरीर में भेद से अन्तः करण होता है जिसमे सम्मिलित है मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। सबसे ऊपर है चेतन आत्मा।  जिसके कारण हम जीवंत है।
चिंतन और  मनन  की प्रयोगशाला है -अनतःकरण। यहाँ बाहर-भीतर के संसार का अपने अपने अनुसार मंथन चलता है। मन बाहर की सूचना अंदर देता है, बुद्धि उसमें से अच्छे- बुरे की छटनी करके बताती है वो भी मन को एक एग्झमिनर की तरह। मन उसे  माने या न माने। चित्त कम्प्यूटर की  हार्ड -ड्राइव की तरह रिकार्ड करता है। उसको पता है बुद्धि ने क्या काम किया, मन ने क्या किया और क्या नहीं किया।  मित्रों यह जो मैं आपको बता रहा हूँ यह भी इसी तरह की एक प्रक्रिया का नमूना ही है, क्योंकि यह सब जस का तस बयां कर रहा हूँ।
चिंतन : मन , बुद्धि और चित्त में  विचारों के मंथन के बाद जो नवनीत निकालने की प्रक्रिया है वाही चिंतन है। सोचिये मंथन एक बार मथानी को हिला देने से नवनीत नहीं बनता वैसे ही सोचने की एक बारगी प्रक्रिया से नहीं बार बार पूरे परिदृश्य का  अवलोकन करने से विषय का सही अंदाजा हो सकता है। गीता में एक शब्द आया है "अनुदर्शन" अर्थात किसी विषय को बार बार देखना। यही चिंतन है।
मनन : चिंतन सम्पूर्ण विषय के विभिन्न बिन्दुओं को सम्यक रूप से देखने से होता है और तब उनमे से मुख्य-मुख्य बिन्दुओं को पकड़- पकड़ कर उनको व्यवहारिक रूप से समन्वय स्थापित करना ही मनन है। मनन से मंथन का पर्यवसान है अर्थात मनन से ही माखन मिलेगा।
दर्शन: भारतीय ऋषि परंपरा और संस्कृति के मूल में विश्व बंधुत्व के महीन सूत्र है जो अपने जीवन के साथ समस्त जगत को कल्याणमय देखना चाहते हैं। जीवन को आनंद मय जीने की कला इसमें भरी पड़ी है। वेद पुराण, उपनिषद, मानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि आदि हमारे जीवन की आचार-संहिताएं हैं। पाश्चात्य केवल जगत के सुख का इंतजाम करता है जबकि हमारी संस्कृति बहार से अधिक भीतर की  ओर देखती है।
सन्देश :  सन्देश जो हमें महापुरुषों ने दिए हो, सन्देश वो जो हमारे भीतर चिंता और मन से जन्मे हों, जो हमें आत्मिक उन्नति देते हों और जो विश्व कल्याण की भावना से भरे हों केवल वही काम के है।  असल की नकल करना कोई बुरा नहीं है लेकिन विवेक जागृत रहे।
"चिंतन-मनन-दर्शन- सन्देश" मंच स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य यही सोच है।
मेरी शुभकामना है की ग्रुप में सम्मिलित सदस्यों का  आध्यात्मिक दृष्टिकोण इससे परिमार्जित होगा।






यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि मस्तिष्क के क्रियाकलाप का उत्पाद होने के कारण मन को बाहरी वास्तविकता के सरल निष्क्रिय परावर्तन में सीमित नहीं किया जा सकता है। मन बाहरी वास्तविकता की हूबहू, दर्पण-प्रतिबिंब जैसी छवि नहीं होता है। उसमें सूचना ग्रहण तथा उसे रूपातंरित करने की क्षमता और मानसिक बिंबों व क्रियाओं को, सक्रियता से मिलाने और तुलना करने तथा इसके आधार पर मानसिक बिंबों और क्रियाओं का पुनर्गठन करने की क्षमता होती है।



दुर्गासप्तशती

(पृष्ठ १६ से १९)

।। तांत्रोक्त देवी सूक्तम ।।
जयंतीपूजनम्

(पृष्ठ १३)
दुर्गा देवीस्तुति

।। ॐ नमश्चण्डिकायै ।।

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श्रीमद्भगवद्गीता सर्वकालिक, सार्वभौम, लोकमंगलकारी और जीवन जीने की रीत सीखने वाली आचार-संहिता है। इसमें से प्रेरणादायी सन्दर्भों में हम चर्चा करेंगे।
इसमें आज के मानव को अच्छा, सहज, सरल और सफल जीवन जीने के सारभूत संकेत हैं। इनके माध्यम से जीवन-प्रबंधन के महीन सूत्र उपलब्ध हैं। जीवन-प्रबंधन का मूल आधार है मानव का स्वभाव, सोच और व्यवहार। वर्तमान में मनोविज्ञान से भी जरूरी हो गया है -"मानव व्यव्हार विज्ञानं"।
"मानव व्यव्हार विज्ञानं" के विषय में थोड़ा सा चिंतन करें।
मानव का व्यव्हार उसके शरीर के आतंरिक और बाह्य पक्षों का एक सम्मिलित उत्पाद है। प्रत्येक मानव अपने आप में एक इकाई हैऔर यह इकाई स्वयं में मौलिक है। उसमें प्रकृति-जन्य शारीरिक क्षमता और बुद्धिमत्ता चिरंतन रूप से विद्यमान है। उसका अंतर और बाह्य वातावरण निश्चय करता है की वह जिंदगी में कैसे प्रतिक्रिया करता है। आज शैक्षणिक स्तर पर जिस 'व्यव्हार विज्ञानं' की बात की जा रही है वह पश्चिम की विचारधारा से प्रभावित है इसलिए उसमें आंतरिक संवेदनाओं का समावेश तो है लेकिन वे मानव में क्यों है और वे मानव के जीवन में कहाँ से आ गई इसका


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व्यवहार से स्वभाव बनना आज के समय की रीत है। जबकि होना चाहिए स्वभाव से व्यवहार बने। जिसका स्वभाव सधा है उसका हर व्यवहार सर्वप्रिय और सर्वस्वीकृत होता है। स्वभाव को कैसे साधा जाए, ऐसे जीवन-प्रंबधन के सारे सूत्र हैं श्रीहनुमान चालीसा की प्रत्येक पंक्ति में.....



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Prayer is not a “spare wheel” that you pull out when you are in trouble but it is a “steering wheel” that direct the right path through out your life.


ईश-प्रार्थना उस स्टेपनी की तरह नहीं है कि उसे केवल मुसीबत में निकालो बल्कि वह तो स्टीयरिंग व्हील की तरह है जो आपके जीवन भर सही दिशा प्रदान करता है।


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जीवन प्रबंधन- ४० खूबसूरत सूत्र


१. सुबह १० से ३० मिनिट तक मुस्कुराते हुए टहलिये।  


२. प्रतिदिन १० मिनिट मौन रह कर बैठिये (मौन अर्थात मनसे भी विचार शून्य होना)। 

३. प्रतिदिन ६ से ७ घंटे तक सोइये। 

४. जीवन में २ तत्व अत्यावश्यक है -ऊर्जा और उत्साह।

५. शारीरिक स्फूर्ति के लिए खेल खेलें/व्यायाम करें। 

६. जितनी पुस्तकें/साहित्य गतवर्ष पढ़ा है उससे अधिक इस बार पढ़ें।

७. हना को जो भी स्वरूप अच्छा लगे; प्रतिदिन करें-क्योंकि इस यह हमें ऊर्जा प्राप्त होगी ।

८. प्रतिदिन ७ वर्ष से काम और/या ७० वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के साथ कुछ समय बिताएं।  

९. सोते हुए नहीं जागते हुए स्वप्न देखें। 

१०. शाकाहारी बनिए, शाकाहारी रहिये।  

११. खूब पानी पीजिये।जल का स्वभाव स्निग्ध होता है। 

१२. रोजाना ऐसा कुछ करें कि कम से कम तीन व्यक्तियों को आपकी वजह से मुस्कराहट मिले।   

१३. अपनी मूल्यवान ऊर्जा को व्यर्थ की बातों में न गवांएं। 

१४, अपने जीवन साथी को पिछली गलतियों का स्मरण न कराएं क्योंकि ये आपके वर्तमान को नष्ट-भ्रष्ट कर सकती है।

१६. जीवन एक पाठशाला है जहाँ रोज नित-नूतन सीखना है। समस्याएं जिंदगी का अभिन्न अंग है वे एक सबक दे कर जाएंगी। 


१६. सुबह का नाश्ता राजा की तरह, दोपहर का भोजन युवराज की तरह और रात का भोजन ग़रीबों के भोजन जैसा करें।

१८. मुस्कुराना संक्रामक है इसे फैलाइये।

१९. दूसरों से घृणा करके अपने जीवन को और छोटा मत बनाइये।

२०. अपने जीवन स्वयं को समस्या-मूलक मत बनाइये, इसे कोई और सरल नहीं बनाएगा। 

२१. प्रत्येक तर्क में विजय मत ढूँढिये, कुछ हांर कर भी स्वीकार कीजिये।


२२. अतीत के सुनहरे पल ढूँढिये, ये आपका वर्तमान आनंदमय बनावेगा। 

२३. अन्यों के जीवन से अपने जीवन की तुलना मत कीजिए क्योंकि उनकी जीवन यात्रा के बारे में आप नहीं जानते।

२४. अपनी प्रसन्नता के मालिक 
आप स्वयं हैं।  

२५. क्षमाँ-दान सबसे बड़ा दान है।

२६. आपका अंतर्मन यदि उचित समझता है तो यह मत सोचिये की लोग क्या कहेंगे, यह आपका काम नहीं।  

२७. निश्चिन्त हो जाइये, ईश्वर के पास आपके हर दर्द का मरहम है।
२८. इस जगत में हर अच्छा या बुरा; सब परिवर्तनशील है।
२९. जब आप की सेहत ठीक नहीं होगी तब आपका नियोक्ता नहीं आपका मित्र काम आएगा। 

३०. जो स्थिति आपके उपयुक्त न हो चाहे सुन्दर हो या खुशियो से भरी हो; उसे छोड़ दीजिये। 

३१. ईर्ष्या में समय बर्बाद न करें, इसके अतिरिक्त भी आपके पास बहुत कुछ अच्छा है। 

३२. आपका भविष्य सुन्दर संभावनाओं से भरा है।
३२. आप कैसा भी अनुभव कर रहे हो; उठें, उद्यम के लिए तैयार हो कर अपना श्रेष्ठ प्रस्तुत करें। 

३४. सत्हृदय से जो ठीक लगे वही करो।
३५. अपने परिजनों से समय समय पर भेंट करें। 

३६. आपका अंतःकरण आनंद से लबरेज है उसे बाहर लाने का प्रयत्न करें।
३७. दूसरों को रोज अच्छा देने का भाव श्रेष्ठ है।
३८. अति-उत्साह में अनर्थ न हो जावे इसलिए अपनी सीमा में रहें।  

३९. सुबह जब आप जागें ईश्वर को धन्यवाद दें और जब सोने जावें तब
 अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करें।

४०. अपने शुभचिंतकों को वह दें जो आपके लिए भला साबित हुआ है।  




दोपहर ढलने को है। एक फकीर द्वार पर आया है। उसके हाथ में एक तोता है। आते ही फकीर नहीं, तोता ही बोला है, 'राम कहो, राम कहो, राम.. राम..राम।' 
गृह-स्वामी ने कहा, 'तोता तो अच्छा बोलता है।' फकीर बोला, 'महाराज, यह तोता बड़ा पंडित है!' यह सुन कर उसने कहा, 'होना चाहिए, क्योंकि सभी पंडित तोते ही होते हैं!' यह मुझे लगा कि ज्ञान सीखने से नहीं आता है और जो सीखने से आता है, वह ज्ञान नहीं है। ज्ञान बुद्धि की उपलब्धि नहीं है । जो सीख जाता है, वह तोता बन जाता है। इस तोता-रटन का नाम पांडित्य है।
पांडित्य मृत तथ्यों का संग्रह है। अनुभूति में इनकी कोई जड़े नहीं होती हैं। इन मृत तथ्यों से घिरा चित्त, उसके दर्शन नहीं कर पाता है, जो कि 'है'। ये तथ्य परदा बन जाते हैं। इस परदे को हटाने पर अज्ञात का उदघाटन होता है। यह दर्शन ही ज्ञान है। सीखना नहीं- दर्शन ही ज्ञान है। ग्रंथ नहीं, सत्य-दृष्टिं उस उपलब्धि का मार्ग है। सत्य-दर्शन जब हो जाता है, तब पाया जाता है कि ज्ञान तो था ही, केवल उसे देख पाने की दृष्टिं हमारे पास नहीं थी। और, इस दृष्टिं को पांडित्य के संग्रह से नहीं पाया जा सकता था।
इसलिए कहा है कि यह जानना कि 'मैं जानता हूं', अज्ञान है। क्यों? क्योंकि जानने पर पाया जाता है कि मैं हूं ही नहीं। अद्वैत दर्शन तब होता है, जब सब छोड़कर मैं शून्य हो जाता हूं।


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जीवन प्रबंधन

रेल की पटरी सोच में बैठी थी मेरे पास स्थिरता तो है पर गति का सर्वथा अभाव है। इंजन उदास खड़ा था। उसमें गति तो थी पर स्थिरता का न होना बहुत खल रहा था। अपनी-अपनी अपूर्णता दोनों ने समझी और निश्चय किया परस्पर एक दूसरे के पूरक बनेंगे और मिलजुल कर काम करेंगे। गतिरोध दूर हो गया और अभावजन्य असन्तोष भी चला  गया। उसी दिन से लेकर पटरी और इंजन दोनों ही गौरवान्वित हो रहे हैं।


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महात्मा सुकरात 
एक बार महात्मा सुकरात एथेन्स की गलियों में घूम रहे थे। उनके शरीर पर थोड़ा फट चुके पुराने से वस्त्र थे,  पाँवों में पहने हुए जूतों भी फटे थे। लेकिन इस सबका उन पर कोई असर नहीं था। उनके मुख पर वही मधुर हँसी थी और आँखों में वही प्रकाशपूर्ण तेज। लेकिन अन्तर्मन इससे सर्वथा अप्रभावित आनन्द का निर्झर बना हुआ था। 
         सुकरात प्लेटो को समझाने लगे। प्रश्र से विचार जन्म लेते हैं। विचारों की निरन्तरता विचारशीलता को प्रकट करती है। विचारशीलता यदि गहरी एवं स्थायी हो तो जिज्ञासा का अंकुर फूटता है। जिज्ञासा की सच्चाई और सघनता में विवेक उत्पन्न होता है। यदि इस विवेक में तीव्रता व त्वरा बढ़ती जाय तो अन्तर्प्रज्ञा का प्रकाश फूटता है। यह अनुभव ही बोध है, यही ज्ञान है। ये बातें जीनोफेन एवं क्राइटो भी सुन रहे थे। सुकरात ने उन सबसे कहा- मैंने जीवन की प्रयोगशाला में जीवन विद्या के, अध्यात्म विज्ञान के यही प्रयोग किए हैं। अन्यों को भी यही प्रयोगविधि सिखा रहा हूँ। यह ज्ञान जीवन शैली को परिवर्तित कर स्वयं जीवन शैली बन जाता है। 


जिस दिन उन्हें विष दिया जाना था। प्रातः ही उनके शिष्य उनसे मिलने पहुँचे। वह बड़ी निश्चिन्तता से गाढ़ी नींद ले रहे थे। नियत समय पर कर्मचारी विष का प्याला लाया। फिर उन्होंने शिष्यों से कहा- तुम लोग मेरे पास बैठो। हमेशा मैंने तुम्हें अपने जीवन के अनुभव सुनाए हैं, आज मृत्यु का अनुभव सुनाऊँगा। ऐसा कहते हुए उन्होंने विष का प्याला पी लिया। और शरीर में धीरे- धीरे होने वाले परिवर्तनों को एवं अपनी मानसिक स्थिति को बताने लगे- कि अब उनका शरीर निश्चेष्ट होता जा रहा है, परन्तु मन में आनन्द का दैवी प्रकाश फैलता जा रहा है। अन्त में उन्होंने कहा- अहा! मैं स्वर्गीय प्रकाश में प्रकाश रूप में अवस्थित हो रहा हूँ। इसी के साथ उन्होंने आँखें मूँद ली। महात्मा सुकरात की शिक्षाओं का यही विचार बीज रेने देकार्ते के वैज्ञानिक विचारों में प्रखरता से अंकुरित हुआ। 


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एक मुर्गा पेड़ पर बैठा था। एक चालाक लोमड़ी ने उसे नीचे उतारने की तरकीब सोची।  लोमड़ी ने मुर्गे को पुकारा और कहा-”तुम जानवर को परसों वाली पंचायत की जानकारी नहीं है क्या? फैसला हो चुका है कि इस जंगल का कोई जानवर दूसरे को सताएगा नहीं। सभी मिलजुल कर रहेंगे। सो तुम नीचे आ जाओ हम हिलमिल कर खेलेंगें।”  मुर्गा असलियत ताड़ तो गया पर कुछ बोला नहीं-चुपचाप जहाँ का तहाँ बैठा रहा।  इतने में दूसरी ओर से शिकारी कुत्ते दौड़ते हुए आए लोमड़ी जान बचाने के लिए दूसरी ओर भागने कोशिश की ।  मुर्गे ने लोमड़ी को पुकारा और पंचायत की बात याद दिलाते हुए कुत्तों से न डरने का परामर्श दिया। उसने कहा-”शायद तुम्हारी ही तरह इन कुत्तों ने भी पंचायत का फैसला न सुना हो !" इतनी देर में कुत्तों ने उसे दबोच लिया। 


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एक चतुर लकड़हारा लगातार लकड़ी नहीं काटता है, वह बीच-बीच में अपनी कुल्हाड़ी को तेज करता रहता है। इसी प्रकार हमारा संचित ज्ञान निरंतर विकास करते विश्व में बोथरा होता चला जाता है इसलिए उसकी धार तेज करने के लिए अपना अपडेट निरंतर करते रहना आवश्यक है। 
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लाओत्से  ………
मन के खाली होने का क्या अर्थ है? और पेट के भरे होने का क्या अर्थ है? 
हम सब मन को बहुत भर लेते हैं। हमारी पूरी जिंदगी मन को भरने की कोशिश है। 
विचारों से, वासनाओं से, महत्वाकांक्षाओं से मन को हम भरते चले जाते हैं। 
धीरे-धीरे शरीर तो हमारा बहुत छोटा रह जाता है, मन बहुत बड़ा हो जाता है। शरीर तो सिर्फ घिसटता है मन के पीछे।
लाओत्से कहता है, मन तो हो खाली!
शरीर तो सिर्फ दीवार है। वह तो मजबूत होनी चाहिए। वह भीतर जो मन है, वही महल है, वह खाली होना चाहिए। 
और उस महल के भीतर भी जो मनुष्य की चेतना है, आत्मा है, वह निवासी है, अगर मन खाली हो, तो ही वह निवासी ठीक से रह पाए। मन अगर बहुत भर जाता है, तो अक्सर हालत ऐसी होती है कि मकान तो आपके पास है, लेकिन इतना कबाड़ से भरा है कि आप मकान के बाहर ही सोते हैं, बाहर ही रहते हैं। क्योंकि भीतर जगह नहीं है।
मन तो इतना भरा है कि वहां आत्मा के रहने की जगह नहीं हो सकती, बाहर ही भटकना पड़ता है। जब भी भीतर जाएंगे, तो आत्मा नहीं मिलेगी, मन ही मिलेगा। कोई विचार, कोई वृत्ति, कोई वासना मिलेगी।
शरीर तो भरा-पूरा हो, पुष्ट हो, मन खाली हो। मन ऐसा हो, जैसे है ही नहीं। उस खाली मन में ही जीवन की परम कला का आविर्भाव होता है और जीवन के परम दर्शन होने शुरू होते हैं।



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प्रेम तब निर्दोष होता है जब उसमें कोई वजह नहीं होती। प्रेम निर्दोष होता है जब यह और कुछ नहीं बस ऊर्जा का बांटना होता है। तुम्हारे पास बहुत अधिक है, इसलिए तुम बांटते हो... तुम बांटना चाहते हो।

और जिसके साथ भी तुम बांटते हो, तुम उसके प्रति अनुग"ह महसूस करते हो, क्योंकि तुम बादल की तरह थे--बरसात की पानी से बहुत भरे हुए--और किसी ने तुम्हें हल्का होने में मदद की। 
या तुम फूल जैसे थे, खुशबू से भरे हुए, और हवा आकर तुम्हें हल्का कर देती है। 
या तुम्हारे पास गाने के लिए गीत है और किसी ने ध्यानपूर्वक सुना...इतना ध्यानपूर्वक कि तुम्हें गाने का अवसर दिया। 
इसलिए जो कोई भी तुम्हें प्रेम में बहने में मदद करता है, उसके प्रति अनुग्रह आता है। 
आत्मसात करने की वह भावना अपनी जीवन शैली बन जाने दो, बिना कुछ लेने की बात सोचे; देने की काबिलियत, बेशर्त देने की क्षमता, तुम बस देते हो---- क्योंकि तुम्हारे पास अधिकता है प्रेम की।
.......... ओशो

म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म
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विचार

विचार तुमसे अलग होते हैं, वे ऐसी वस्तु नहीं है। वे आते हैं और चले जाते हैं--तुम बने रहते हो, तुम स्थिर होते हो। तुम ऐसे हो - जैसे कि आसमान: यह कभी आता नहीं, कभी जाता नहीं, यह हमेशा यहाँ है। तुम विचार को पकड़ने का प्रयास भी करो, उसे समय तक रोक नही सकते; उसे जाना ही होगा। वे आगंतुक की तरह आते हैं, लेकिन वे मेजबान नहीं हैं।
गहरे से देखो, तब तुम मेजबान बन जाओगे और विचार मेहमान हो जाएंगे। लेकिन यदि तुम पूरी तरह से भूल जाते हो कि तुम मेजबान हो; और वे मेजबान बन जाते हैं। तुम घर के मालिक हो, घर तुम्हारा है, लेकिन मेहमान मालिक बन गए हैं। उनका स्वागत करो, उनका ध्यान रखो, लेकिन उनके साथ तादात्म्य मत बनाओ; वर्ना वे मालिक बन जाएंगे। हमेशा उसके प्रति सजग रहो जो न कभी आताहै न कभी जाताहै, ऐसे ही जैसे आकाश। 
.......... ओशो


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देश के महान पूर्व राष्ट्रपति - मिसाइल मेन - अब्दुल कलाम 
उनके आदर्श --शुभ वाक्य.......

शिखर तक पहुँचने के लिए ताकत चाहिए होती है, चाहे वो माउन्ट एवरेस्ट का शिखर हो या आपके पेशा .

क्या हम यह नहीं जानते कि आत्म सम्मान आत्म निर्भरता के साथ आता है ?
अब्दुल कलाम

कृत्रिम सुख की बजाये ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये.

भगवान, हमारे निर्माता ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं. इश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है.

महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं.

यदि हम स्वतंत्र नहीं हैं तो कोई भी हमारा आदर नहीं करेगा.

भारत में हम बस मौत, बीमारी , आतंकवाद और अपराध के बारे में पढ़ते हैं.

आइये हम अपने आज का बलिदान कर दें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके.

आकाश की तरफ देखिये. हम अकेले नहीं हैं. सारा ब्रह्माण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं
इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने कि लिए ये ज़रूरी हैं.

किसी भी धर्म में किसी धर्म को बनाए रखने और बढाने के लिए दूसरों को मारना नहीं बताया गया.

मुझे बताइए , यहाँ का मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है? भारत में हम अपनी अच्छाइयों, अपनी उपलब्धियों को दर्शाने में इतना शर्मिंदा क्यों होते हैं? हम एक माहान राष्ट्र हैं. हमारे पास ढेरों सफलता की गाथाएँ हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं स्वीकारते. क्यों?

अपने मिशन में कामयाब होने के लिए , आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा.

इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे .

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सरस्वती शिशु मंदिर, आदर्श कॉलोनी शाजापुर के छात्रों का स्वास्थ्य परीक्षण
दिनांक २७.११. २०१४
दी हिन्द जूनियर कॉलेज, काँजा रोड, शाजापुर


आरोग्य-भारती शाजापुर द्वारा वृक्षारोपण कार्यक्रम
दिनांक २३.०८.२०१४

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बारहवीं-तेरहवीं सदी में ईरान में एक मशहूर सूफी संत हुए थे - मुहम्मद फरीदुद्दीन अत्तार। उन्होंने जीवन में अध्यात्म को सरल तरीके से समझने के लिए एक दिलचस्प रूपक का सहारा लिया।
पक्षियों की कॉन्फ्रंस में हुदहुद नेता चुना गया। हुदहुद ने एक पक्षी के पूछने पर बतलाता है कि पक्षियों के राजा सीमुर्ग (अध्यात्म प्रवर) तक पहुंचने के लिए किस तरह घने जंगलों से भरी हुई सात घाटियां हैं। 
उन सात घाटियों के भी नाम हुदहुद ने बतलाए- 
पहली घाटी खोज की है, 
दूसरी प्रेम की, 
तीसरी ज्ञान की, 
चौथी नि:संगता की, 
पांचवीं एकत्व की,
छठी भावाविष्ठावस्था (आनंद) की और 
सातवीं फना (मृत्यु) की। 

तुम्हारा मौन तुम्हारी वाणी से है। अत्तार भावाविष्ठावस्था में कहते हैं- मेरा अहंकार मेरी आंखों से आंसू बन कर बह गया है, मुझ खोजी को अब आनंद ही आनंद है। 
मेरे दिल का चिराग रोशन हो गया है, हर चेहरे में मुझे अब उसकी (ईश्वर) छवि दिखाई पड़ती है। 
मैं अपने ही भीतर प्रेम से जल रहा हूं, मुझे प्रेम में ही दफना दो।
 मैं एक ही साथ मोती भी हूं और उसका विक्रेता भी। 
अत्तार इत्रफरोश थे। एक दिन वे अपनी दुकान पर बैठे थे कि एक सूफी दरवेश आया। अत्तार को लगा जैसे उसने भिक्षा पाने के लिए दरवेश का स्वांग बना रखा है, इसलिए उसे आगे बढ़ने के लिए कह दिया। तब दरवेश ने अपने फटे वस्त्रों को दिखलाते हुए कहा, संसार में केवल वही उसकी संपत्ति है। उसके लिए वहां से जाना अथवा इस संसार से कूच कर जाना बिल्कुल मुश्किल नहीं है। लेकिन वह अत्तार के लिए दुखी है कि वह अपनी इतनी संपत्ति को कैसे छोड़कर जाएगा। 
अत्तार की जैसे आंख खुल गई, उसने उसी समय अपनी सारी धन- संपत्ति त्याग कर सूफी हो गए। अत्तार की मृत्यु की कहानी भी बड़ी विचित्र है। 
चंगेज खां ने फारस पर चढ़ाई की। अत्तार एक सैनिक के हाथ पड़ गए। वह उन्हें मारने ही जा रहा था कि एक अन्य सैनिक को उन पर दया आ गई। उसने काफी दव्य देकर अत्तार को खरीदना चाहा। लेकिन अत्तार ने अपने मालिक सिपाही को उतना मूल्य लेने से मना कर दिया और कहा कि उसे और अधिक कीमत मिल सकती है। इसके कुछ समय बाद एक दूसरे सैनिक ने उन्हें खरीदना चाहा। उसने देखा कि अत्तार बूढ़ा है, अतएव उनका मूल्य एक थैली घास से अधिक नहीं होगा। अत्तार ने उस सैनिक से जिसने उन्हें पकड़ रखा था, कहा कि वह उसे बेच दे क्योंकि वही उनकी पूरी कीमत है। इस बात से वह मालिक सैनिक इतना नाराज हुआ कि उसने ही अत्तार को मार डाला


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ओशो 
जागों, और जानने का एक ही उपाय है। गुरु परताप साध की संगति, भीखा के ये बचन सीधे-सादे,सुगम,पर चिनगारी की भांति है। और एक चिनगारी सारे जंगल में आग लगा दे—एक चिनगारी का इतना बल है।
ह्रदय को खोलों, इस चिनगारी को अपने भीतर ले लो। शिष्‍य वही है जो चिनगारी को फूल की तरह अपने भीतर ले ले। चिनगारी जलाएगी वह सब जो गलत है। वह सब जो व्‍यर्थ है, वह सब जो कूड़ा करकट हे, चिनगारी जलाएगी, भभकाएगी, वह जो नहीं होना चाहिए। और उस सबको निखारती है जो होना चाहिए। जो इस अग्‍नि से गुजरता है, एक दिन कुंदन होकर प्रकट होकर होता है, शुद्ध होकर प्रकट होता है।



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एक सच्चे भारतीय के रूप में, डा. कलाम :
उनकी पुस्तक "My Journey" उद्धृत कविता के अंश जिसका यथा संभव भावार्थ हिंदी में किया गया है


'O creator of dreams,
Why do you keep searching for God?
Nature is His home, purity His abode
And Life is but His blessing!
Keep loving nature and care for its being,
Then you can see divinity all over!'
हे स्वप्न के सृजनकर्ता 
तुम ईश्वर के अनुसन्धान में क्यों लगे हो ?
प्रकृति उसका घर है,पवित्रता उसका वासस्थान है 
और जीवन (केवल) उसका आशीश है 
प्रकृति को प्रेम करते रहो, प्राणियों की देखभाल करो 
और आप सर्वत्र देवत्व देख सकोगे

The so-called educated seperate our souls....
They give not knowledge but hate and defeat;
Tell others not to heed their unwanted advice,
As the Almighty created all equal and free.

तथाकथित शिक्षित लोग हमारी आत्माओं को अलग करते हैं 
वे ज्ञान नहीं घृणा और पराजय देते हैं 
लोगों को बताइये की उनकी अवांछित सलाह पर ध्यान न दें
क्योंकि उस सर्व शक्तिमान ने सबको सामान एवं स्वतन्त्र बनाया है 


I have no house, only open space
Filled with truth, kindness, desire and dreams:
Desire to see my country developed and great,
Dreams to see happiness and peace abound.

मेरा कोई घर नहीं है, केवल खुला अंतरिक्ष है 
सत्य, दया, आकांक्षा, और स्वप्नों से भरा 
जो मेरे देश को विकसित और महान देखना चाहता है 
जो प्रचुर मात्रा में प्रसन्नता और शान्ति के स्वप्न देखता है  

… अनूदित-- रामनारायण सोनी 

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सर्जना-मंच              श्री स्वर्णकार सोशलग्रुप(समिति), इंदौर        सर्जना-मंच

आदरणीय समाज बंधुओं !

ईश्वर की अनुपम कृति है मानव। संसार में श्रेष्ठ संस्कृति है भारतीय संस्कृति। एक ऐसी संस्कृति जिसमें जीवन के हर आयाम का समन्वय और चरम विकास विद्यमान है। हमारा समाज कला, संस्कृति और शौर्य का पर्याय है। इतिहास इसका गवाह है। विडंबना है की हम खुद अपना इतिहास नहीं जानते। हम में जेनेटिकली विलक्षण गुण विद्यमान है जो सुप्त बीजों की तरह पड़े हैं। उनमें अंकुरण होने के लिए चाहिए तो बस एक अनुकूल वातावरण।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था- "सृजन ईश्वर की कृतियों का एक संयोजन मात्र है।" सृजन का व्यावहारिक अर्थ है सर्जना।  इसी पृष्ठभूमि पर सर्जना-मंच की नीव रखी गई है। संयोजन समाज की प्रत्येक इकाई का, संयोजन साहित्य, कला, संस्कृति और समाज-सेवा का। संयोजन विचारों और व्यवहारों का। संयोजन सर्वहारा समाज का।  वस्तुतः यह एक साझा मंच है।  सोशल ग्रुप के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ का क्रियात्मक मंच। निश्चय समाज की प्रत्येक इकाई के सक्रिय सहयोग के बगैर इसके परिकल्पना असंभव है।
इसलिए सर्जना-मंच एक अदना सा प्रयास इस दिशा में कर रहा है। 
अपने परिवार में, अपने ग्रुप मे, अपने समाज में, मौजूद प्रतिभाओं को ग्रुप का सर्जना-मंच का खुला निमंत्रण है , विकास में आप सहयोगी हों। अपने नौनिहालों को भी इससे सम्बद्ध कर आज की विकास दौड़ में शामिल करें।  यह अवसर आपको मुफ्त में पर उपलब्ध हो रहा है। 

आवाहन

जन-जन का आवाहन करके, सोया पथिक जगाता हूँ
प्रतिभा को मत दफन करो, आगे बढ़ो ओ सृजन करो।
सृजन विकास का मूल मंत्र है, सृजन तुम्हारे रक्त बसा
तुम श्रृंगार विधाता हो यह, तुम प्रबुद्ध हो ध्यान धरो ।। 

जिन हाथो में कला बसी थी उसमें कलम थमा कर देखो
पिंडों को आकार दिया है, अब व्यक्तित्व सजा कर देखो।
जंग लगी औजारों में क्यों इस पर जरा विचारो तुम
नवयुग की नव-शक्ति धरो अब अपना स्वयं निखारो तुम ।।

इसीलिए मित्रों करुणा से मेरा ह्रदय भरा जाता है
हमने कभी नहीं क्यों सोचा किन पुरखों से नाता है।
क्यों हम भूल चुके परिचय सब उनका और अपना ही
उचित समय है आज करें हम मूल्यांकन खुदका ही ।।

रामनारायण सोनी                            
सर्जना मंच
   --आओ मिलकर सृजन करें --

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१. अपने संपर्क में आने वाले समाज बंधुओं को जोड़ना
२. सभी मीटिंग /कार्यक्रम रविवार को ही आयोजित करना
३. सर्व-स्वर्णकार समभाव लेकर समाज-जन को जोड़ना
४. ग्रुप के सदयों के घर पर मासिक मीटिंग आयोजित करना। जन्म दिन, शादी-वर्षगांठ को आयोजन करना।
५. प्रतिवर्ष  आय-व्यय का लेख-जोखा रखना
६. प्रति-वर्ष कम से कम तीन बार परिवारिक सम्मलेन आयोजित करना

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श्री अजमीढ़ जी महाराज-जयंती
श्री स्वर्णकार सोशल-ग्रुप (समिति), इंदौर
उत्सव दिनांक -- ०१ नवम्बर २०१५

आपके अमूल्य अभिमत और सुझाव आमंत्रित हैं, इसके लिए एक रजिस्टर रखा गया है, इसमें अंकित कर सकते हैं।

इनका हम अपने आगे आने वाले कार्यक्रमों में ध्यान रखेंगें।

श्री स्वर्णकार सोशल ग्रुप (समिति), इंदौर के शिल्पी
श्री मनोहरलालजी सोनी

वर्तमान में :-

ग्रुप की अधो संरचना के समय श्री मनोहरलालजी के विचार
एक सामाजिक पारिवारिक संगठन की परिकल्पना
समस्त स्वर्णकार बंधुओं के एक भेदभाव रहित संगठन का निर्माण
प्रतिमाह किसी एक सदस्य के घर मीटिंग करके पारिवारिक समरसता का अनुभव
वर्ष में तीन बार परिवार के हर छोटे बड़े सदस्यों का स्नेह सम्मलेन
किसी भी सदस्य के घर शादी, जन्मदिवस आदि पर सामूहिक रूप से सम्मिलित होना आदि





श्री स्वर्णकार सोशल ग्रुप समिति)

सर्व-स्वर्णकार सर्व    

इसमें बहुत कुछ ख़ास है_____

जिस परिकल्पना के आधार पर ग्रुप का निर्माण हुआ उसका अक्षरशः पालन
बिरले ही सामाजिक संगठन होंगे जो हमारी तरह प्रति माह मीटिंग करते हों
ग्रुप में अंगभूत पेढ़ी का सफल गठन और सञ्चालन
जहाँ निरंतर विकास है
   अ. पांच परिवार सदस्य से पचास परिवार सदस्य होना
   ब. हर बार निर्विरोध चुनाव संपन्न होना
   स. महिलाओं की अधिक सहभागिता होना
   द. समाज की प्रतिभाओं का सम्मान
   ई. समाज के वरिष्ठ जनों का सम्मान
   फ. बौद्धिक -  ग्रुप द्वारा गोष्ठियों का आयोजन
   ग.  वाचनालय की स्थापना
   ह. ग्रुप में सांस्कृतिक प्रकोष्ठ विकसित करके सर्जना मंच का निर्माण और क्रियाशील होना

 विभिन्न कार्यकारी-समय में कार्य-कारिणी का विवरण
(आगे की स्लाइड में)

परिकल्पना निर्माण
 संयोजन
ग्राफिक्स
एवं संरचना

  रामनारायण सोनी



सर्वेभवन्तु

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P R A N A H U T I


Introduction




Pranahuti or transmission of superfine thought is the most unique feature of the system of Rajayoga of Sri Ram Chandra. This is supposed to make the task of the aspirant easier. The Master says that without the help of Pranahuti it will be difficult, if not impossible, to reach higher stages of sadhana.

The word Pranahuti is derived from the words Prana and Ahuti. Ahuti is offering particularly in sacrifice during religious ceremonies. Prana means life or life force. The nature of Prana is expounded in the Vedic and Upanishad literature, particularly the Kaushitaki Upanishad (3-2) where it is stated Sahovaacha Praanosmi (He said I am Life) and Kena Upanishad (2) where it was stated as Praanasya Praanah (The Life of all lives) and Praanosmi Mam upaasva (Adore Me who am Life). Thus we find the nature of the Ultimate is of the nature of Prana. Prana is of the nature of pure thought and that is what makes human beings important in the scheme of Divinity in as much as he shares the nature of original stir in a way that no other being, animal or devas etc., is capable of is now fairly established. That human life has been regarded, as most fortunate is no new concept for any religion but the main reason why it is so, is what is established by Rev. Babuji.


Salient Points of Pranahuti


It is pure and simple act of will backed by Divine Will of a person who is committed to the progress of the aspirant for progress in the spiritual path.

It is an act of will on the part of the person transmitting Divine thought.

It is an act of will supported by the Divine.

It does not require words or touch or any other such physical aids.

It assists the aspirant to develop the capacity for balanced existence while simultaneously assisting him / her in the spiritual progress.

It is no mystic or mysterious force.

Viveka or discriminative intelligence is improved by the regular influx of the Divine impulse imparted during Pranahuti the awareness of the Power behind all existence shared in one’s being is fully realised

It enables the aspirant develop an attitude of humility in thought, word and deed. It enables the aspirant understand that Master is the knower, doer and enjoyer.

The capacity to impart Pranahuti is obtained only when a person is beyond the realms of his limited self, Pinddesh and is established in the higher plane of consciousness called Brahmand.

It is possible only where the trainer has no selfish motives or seek any gratification. It is the help from a fellow being - a brother or sister.

The Grand Master Rev. Lalaji Maharaj prayed and obtained the grace of the Divine so as to make the influx of Pranahuti possible into to every seeker.


Trainers of ISRC work under Dr.Varadachari Order.


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google translation
PRANAHUTI

रिचय

अति सूक्ष्म सोचा की Pranahuti या प्रसारण श्री राम चंद्र की Rajayoga की प्रणाली का सबसे अनूठी विशेषता है। इस आकांक्षी के कार्य को आसान बनाने के लिए माना जाता है। मास्टर Pranahuti की मदद के बिना यह साधना के उच्च स्तरों तक पहुँचने के लिए, असंभव नहीं तो मुश्किल हो जाएगा कि कहते हैं।



शब्द Pranahuti शब्द प्राण और Ahuti से ली गई है। Ahuti धार्मिक समारोह के दौरान बलिदान में विशेष रूप से पेशकश कर रहा है। प्राण जीवन या जीवन शक्ति का मतलब है। प्राण का स्वभाव है कि वह (उन्होंने कहा कि मैं जीवन हूँ) और Kena उपनिषद (2) यह Praanasya Praanah के रूप में कहा गया था, जहां (Sahovaacha Praanosmi कहा गया है, जहां वैदिक और उपनिषद साहित्य, विशेष रूप से Kaushitaki उपनिषद (3-2) में स्वेच्छाचार है सभी के जीवन का जीवन) और Praanosmi माम upaasva (जीवन कौन हूँ पूजा)। इस प्रकार हम परम की प्रकृति प्राण की प्रकृति का है लगता है। प्राण शुद्ध विचार की प्रकृति की है और कहा कि कोई अन्य किया जा रहा है, जानवर या देवता आदि है, करने में सक्षम है कि जितना वह एक तरह से मूल हलचल की प्रकृति के शेयरों के रूप में देवत्व की योजना में महत्वपूर्ण मनुष्य बनाता है अब काफी स्थापना की। सबसे भाग्यशाली किसी भी धर्म, लेकिन यह ऐसा है, रेव बाबूजी द्वारा स्थापित है क्या कारण है कि मुख्य कारण के लिए कोई नई अवधारणा के रूप में है कि मानव जीवन, माना गया है।



Pranahuti के मुख्य बिन्दु

यह आध्यात्मिक पथ में प्रगति के लिए आकांक्षी की प्रगति के लिए प्रतिबद्ध है, जो एक व्यक्ति की देवी विल द्वारा समर्थित होगा की शुद्ध और सरल कार्य है।
यह देवी सोचा संचारण व्यक्ति की ओर से इच्छा के एक अधिनियम है।
यह देवी द्वारा समर्थित इच्छा के एक अधिनियम है।
यह शब्द या स्पर्श या किसी अन्य तरह के शारीरिक एड्स की आवश्यकता नहीं है।
इसके साथ ही आध्यात्मिक प्रगति में उसे / उसे सहायता करने, जबकि संतुलित अस्तित्व के लिए क्षमता विकसित करने के आकांक्षी सहायता करता है।
यह कोई रहस्यवादी या रहस्यमय शक्ति है।
विवेका या विशेषक खुफिया एक जा रहा है में साझा सब अस्तित्व के पीछे की शक्ति के बारे में जागरूकता पूरी तरह से महसूस कर रहा है Pranahuti के दौरान प्रदान देवी आवेग का नियमित रूप से बाढ़ से सुधार हुआ है
यह आकांक्षी विचार, शब्द और कर्म में विनम्रता के एक दृष्टिकोण विकसित करने में सक्षम बनाता है। यह आकांक्षी मास्टर ज्ञाता, कर्ता और enjoyer है कि समझने में सक्षम बनाता है।
एक व्यक्ति को अपने सीमित आत्म, Pinddesh के स्थानों से परे है और ब्रह्माण्ड बुलाया चेतना के उच्च विमान में स्थापित किया जाता है केवल जब Pranahuti प्रदान करने की क्षमता प्राप्त की है।
ट्रेनर कोई स्वार्थ नहीं है या किसी भी संतुष्टि की तलाश केवल जहां यह संभव है। एक भाई या बहन - यह एक साथी से किया जा रहा से मदद की है।
ग्रैंड मास्टर रेव लाला जी महाराज ने प्रार्थना की और हर साधक के लिए में संभव Pranahuti की आमद बनाने के लिए इतनी के रूप में देवी की कृपा प्राप्त की।
Dr.Varadachari आदेश के तहत ISRC काम के प्रशिक्षकों।


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Following is a letter to his son from a renowned Hong Kong TV broadcaster & Child Psychologist.
एक पिता का अपने पुत्र के नाम पत्र,  
जो हॉंगकॉंग के एक टी वी एंकर और बाल-मनोवैज्ञानिक हैं। ये वे शब्द हैं जो हम सभी उम्र और वर्ग पर लागू होते हैं। 
Dear son ,
प्यारे बेटे !
यह पत्र मैं तीन कारणों  तुम्हें लिख रहा हूँ।

1. Life, fortune and mishaps are unpredictable, nobody knows how long he lives. Some words are better said early.

१. जिंदगी, भाग्य और दुर्भाग्य अप्रत्याशित हैं। कोई भी नहीं जानता है कि वह कब तक रहेगा। इसलिए कुछ बातें जल्दी से बता देना चाहता हूँ। 

2. I am your father, and if I don't tell you these, no one else will.
२. 2. मैं  तुम्हारा पिता हूँ, और मुझे लगता है कि अगर मैं इन बातों को तुम्हें नहीं बताया तो और कोई नहीं बतावेगा। 

3. What is written is my own personal bitter experiences that perhaps could save you a lot of unnecessary heartaches.
Remember the following as you go through life.
३. मेरे जीवन के कटुअनुभवों में यह अंकित है जिसे बताने से तुम दिल को टीस देने वाले दर्द से बच सकते हो। जीवन भर निम्नलिखित बातें याद रखना। 

1. Do not bear grudge towards those who are not good to you. No one has the responsibility of treating you well, except your mother and I. 
To those who are good to you, you have to treasure it and be thankful, and ALSO you have to be cautious, because, everyone has a motive for every move. When a person is good to you, it does not mean he really likes you. You have to be careful, don't hastily regard him as a real friend.


१. जो लोग तुम्हारे लिए अच्छा नहीं कर रहे हैं, उन लोगों के प्रति असन्तोष सहन नहीं करना। तुम्हारी माँ और मेरे सिवाय तुमसे अच्छा व्यव्हार करने की जिम्मेदारी लेगा। 
जो तुम्हारे शुभचिंतक हैं वे तुम्हारा धन है, तुम उनके प्रति कृतज्ञ रहनाऔर तुम सचेत रहना, क्योंकि, सब के सब अपनी  चाल चलने के लिए उद्यत हैं। तुम्हें एक व्यक्ति अच्छा दिखाई दे तो यह मत समझ लेना कि वह तुम्हारा वास्तविक हितैषी है। सावधान रहना, ऐसे व्यक्ति को आनन-फानन में दोस्त मत बन बैठना। 


2. No one is indispensable, nothing is in the world that you must possess.
Once you understand this idea, it would be easier for you to go through life when people around you don't want you anymore, or when you lose what/who you love the most.

२. कोई भी अपरिहार्य नहीं है। दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसे तुम सदैव अपना रख सकते हो। 


3. Life is short. When you waste your life today, tomorrow you would find that life is leaving you. The earlier you treasure your life, the better you enjoy life.

३. जीवन बहुत छटा है। अपने जीवन का आज तुमने गवाँया, कल तुम देखोगे की जीवन तुम्हे छोड़ रहा है। जितना जल्दी तुम इसे जमा करोगे उतना जीवन को खुशनुमा बनाओगे।

4. Love is but a transient feeling, and this feeling would fade with time and with one's mood. If your so called loved one leaves you, be patient, time will wash away your aches and sadness.
Don't over exaggerate the beauty and sweetness of love, and don't over exaggerate the sadness of falling out of love.

४. प्यार एक बहते प्रवाह की अनुभूति है, यह समय के अनुसार क्षीण होता चला जाएगा जो उसकी मनोदशा पर निर्भर करेगा। यदि तुम्हारा, तथाकथित, प्रिय व्यक्ति छोड़ देता है तो धैर्य रखना, समय तुम्हारे प्यार खोने के घावों और उदासी पर मरहम लगा देगा। 

5.A lot of successful people did not receive a good education, that does not mean that you can be successful by not studying hard! Whatever knowledge you gain is your weapon in life. One can go from rags to riches, but one has to start from some rags!

५. दुनिया के बहुतेरे सफल व्यक्तियों को उत्तम शिक्षा नहीं मिल पाई, इसका यह मतलब नहीं बिना अच्छे से पढ़े तुम निश्चित सफल हो जाओगे। लेकिन जो ज्ञान तुमने प्राप्त किया है वह जीवन में तुम्हारा अस्त्र है। एक 
कतरा दरिया नहीं हो सकता , लेकिन हर दरिया एक कतरे से शुरू होता है। 

6.I do not expect you to financially support me when I am old, neither would I financially support your whole life. My responsibility as a supporter ends when you are grown up. After that, you decide whether you want to travel in a public transport or in your limousine, whether rich or poor.  

६. मैं यह उम्मीद नहीं रखता हूँ की जब मैं बूढा हो जाऊं तब तुम मुझे आर्थिक मदद करो, और न ही मैं तुम्हे इस तरह की मदद जिंदगी भर करूंगा। जब तुम बालक और किशोर वय में थे तब लालन पालन मेरी जिम्मेदारी थी, इसके पश्चात यह तुम्हे तय करना है की तुम जनता वाहन में सैर करो या अपनी चमचमाती कार में, तुम अमीर होओ या मुफ़लिस। 

7. You honor your words, but don't expect others to be so. You can be good to people, but don't expect people to be good to you. If you don't understand this, you would end up with unnecessary troubles.

७. तुम अपने शबों का सम्मान करो, यह उम्मीद मत करो की दुसरे भी वैसा ही करेंगे। तुम लोगों के लिए अच्छे रहो लेकिन यह उम्मीद मत करो कि लोग भी तुम्हारे लिए अच्छे होंगे।  यदि तुमने यह ठीक से नहीं समझा तो, अंत में तुम्हे अनावश्यक तकलीफें उठाना पड़ेगी। 


8. I have bought lotteries for umpteen years, but I could never strike any prize. That shows if you want to be rich, you have to work hard !
There is no free lunch !
८. मैंने जिंदगी में कई बरस तक लाटरियां खरीदी, पर उनमे कोई इनाम नहीं खुला। इससे स्पष्ट है कि अगर तुम अमीर होना चाहते हो तो तुम्हें कड़ा परिश्रम करना होगा। तुम्हे मुफ्त में कोई खाना नहीं खिलाएगा।


9. No matter how much time I have with you, let's treasure the time we have together. We do not know if we would meet again in our next life.

९. इस बात से बेफिक्र हो जाओ की तुम मेरे साथ कितने समय रहे, लेकिन जितना भी रहे वह हमारी धरोहर है। हम अनजान है की अगले जीवन में हम फिर मिलेंगे। 


Your Dad
तुम्हारा पिता 

अंग्रेजी मूल लेख श्री जे पी. दुबे स. द्वारा अग्रेषित। 

अनुदित.... रामनारायण सोनी

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