साहित्य समागम

साहित्य समागम

शिक्षा

सर्जना साझा मंच के चैट-रूम में आपका स्वागत है





















चैट दिनांक -३१.०३.२०१५ 
एड्रेस्ड बाय - इंजी. आर. एन. सोनी 
विषय - कंप्यूटर एवं मोबाइल एप्लिकेशन 

क्या आप जानते हैं  ?
whatsapp में हिंदी में दिखाई देने वाले अक्षर वास्तव में कृतिदेव जैसे फॉण्ट नहीं है बल्कि ये यूनिकोड कहलाते हैं।  कंप्यूटर में भी गूगल, याहू इत्यादि ब्राउजर में दिखाई देने वाले हिंदी अक्षर यूनिकोड ही है। यदि आप हिंदी टाइपिंग नहीं जानते है तो आपके लिए दिनांक १२ अप्रेल को " सर्जना मंच " की वर्कशॉप में पधारें २० मिनिट में आप फर्राटे से हिंदी टाइपिंग में पारंगद हो जायेंगे। 
यदि आपने यह टाइपिंग सीख लिया तो  बड़े बड़े मैसेज कंप्यूटर में टाइप करके  whatsapp के लिए तैयार करके ब्रॉडकास्ट कर सकते हैं जबकि अभी आप मोबाइल के वर्चुअल की;पेड़ से टाइप कर कर के परेशान हो जाते है।  तो आइये वर्कशॉप में। यह मेसेज भी कंप्यूटर पर टाइप करके प्रसारित किया जा रहा है। मोबाइल में यूनिकोड के अतिरिक्त कोई और कृतिदेव की तरह के फॉण्ट को लिखा या पढ़ा जा सकता है।  इसलिए यूनिकोड अतिविशिष्ट है।  इसकी उपयोगिता पर भी वर्कशॉप में चर्चा होगी।

hhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh



जीवन का सौंदर्य 

दौर परिवर्तन सदा से चल रहा 
लिख रहा इतिहास हर पल  नित नया 
उम्र ने बोये अनगिनत मील के पत्थर 


रोज तारीख बदलती. है,
रोज. दिन. बदलते. हैं....
रोज. अपनी. उमर. भी बदलती. है.....
रोज. समय. भी बदलता. है...
हमारे नजरिये. भी. वक्त. के साथ. बदलते. हैं.....
बस एक. ही. चीज. है. जो नहीं. बदलती...
और वो हैं "हम खुद"....

और बस ईसी. वजह से हमें लगता है. कि. अब "जमाना" बदल गया. है........

किसी शायर ने खूब कहा है,,

रहने दे आसमा. ज़मीन कि तलाश. ना कर,,
सबकुछ। यही। है, कही और तलाश ना कर.,

हर आरज़ू पूरी हो, तो जीने का। क्या। मज़ा,,,
जीने के लिए बस। एक खूबसूरत वजह। कि तलाश कर,,,

ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,,
अपने अपने हिस्से कि। "दोस्ती" निभाएंगे,,,

बहुत अच्छा लगेगा ज़िन्दगी का ये सफ़र,,,
आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,,,

क्या भरोसा है. जिंदगी का,
इंसान. बुलबुला. है पानी का,

जी रहे है कपडे बदल बदल कर,,
एक दिन एक "कपडे" में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर,,



ooooooooooooooooooooo555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555ooooooooooooooooooooooooooo

१५ अगस्त १९४७
आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्यों कि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अंबुधि समान रहना।
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु! तुम
दीप्तिमान रहना।
ऊंची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।।
गिरिजाकुमार माथु


चिंतन- मनन-दर्शन-सन्देश ♻
हमारी सोच♻ सामान्य चिंतन का ही परिणाम है। जिस चिंतन से यह उपजा है उसे संक्षेप में यहाँ लिख रहा हूँ :
मस्तिष्क में कई प्रकार की विचारो की शृंखलाएं चलती ही रहती है। सचमुच जन्म से आज ही नहीं, अभी तक।
आइये इसे अध्यात्म के दृष्टि कोण से देखे।  तत्व चिंतामणि में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने बताया है - मानव शरीर के स्थूल, सूक्ष्म शरीर में भेद से अन्तः करण होता है जिसमे सम्मिलित है मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। सबसे ऊपर है चेतन आत्मा।  जिसके कारण हम जीवंत है।
चिंतन और  मनन  की प्रयोगशाला है -अनतःकरण। यहाँ बाहर-भीतर के संसार का अपने अपने अनुसार मंथन चलता है। मन बाहर की सूचना अंदर देता है, बुद्धि उसमें से अच्छे- बुरे की छटनी करके बताती है वो भी मन को एक एग्झामिनर की तरह। मन उसे  माने या न माने। चित्त कम्प्यूटर की  हार्ड -ड्राइव की तरह रिकार्ड करता है। उसको पता है बुद्धि ने क्या काम किया, मन ने क्या किया और क्या नहीं किया।  मित्रों यह जो मैं आपको बता रहा हूँ यह भी इसी तरह की एक प्रक्रिया का नमूना ही है, क्योंकि यह सब जस का तस बयां कर रहा हूँ।
चिंतन : मन , बुद्धि और चित्त में  विचारों के मंथन के बाद जो नवनीत निकालने की प्रक्रिया है वही चिंतन है। सोचिये मंथन एक बार मथानी को हिला देने से नवनीत नहीं बनता वैसे ही सोचने की एक बारगी प्रक्रिया से नहीं बार बार पूरे परिदृश्य का  अवलोकन करने से विषय का सही अंदाजा हो सकता है। गीता में एक शब्द आया है "अनुदर्शन" अर्थात किसी विषय को बार बार देखना। यही चिंतन है।
मनन : चिंतन सम्पूर्ण विषय के विभिन्न बिन्दुओं को सम्यक रूप से देखने से होता है और तब उनमे से मुख्य-मुख्य बिन्दुओं को पकड़- पकड़ कर उनको व्यवहारिक रूप से समन्वय स्थापित करना ही मनन है। मनन से मंथन का पर्यवसान है अर्थात मनन से ही माखन मिलेगा।
दर्शन: भारतीय ऋषि परंपरा और संस्कृति के मूल में विश्व बंधुत्व के महीन सूत्र है जो अपने जीवन के साथ समस्त जगत को कल्याणमय देखना चाहते हैं। जीवन को आनंदमय जीने की कला इसमें भरी पड़ी है। वेद पुराण, उपनिषद, मानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि आदि हमारे जीवन की आचार-संहिताएं हैं। पाश्चात्य केवल जगत के सुख का इंतजाम करता है जबकि हमारी संस्कृति बाहर से अधिक भीतर की  ओर देखती है।
सन्देश :  सन्देश जो हमें महापुरुषों ने दिए हो, सन्देश वो जो हमारे भीतर चिंतन और मन से जन्मे हों, जो हमें आत्मिक उन्नति देते हों और जो विश्व कल्याण की भावना से भरे हों केवल वही काम के है।  असल की नकल करना कोई बुरा नहीं है लेकिन विवेक जागृत रहे।






  राष्ट्र के शृंगार

राष्ट्र के शृंगार! मेरे देश के साकार सपनों!
देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।
जिन शहीदों के लहू से लहलहाया चमन अपना
उन वतन के लाड़लों की
याद मुर्झाने न देना।
देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।
तुम न समझो, देश की स्वाधीनता यों ही मिली है,
हर कली इस बाग़ की, कुछ खून पीकर ही खिली है।
मस्त सौरभ, रूप या जो रंग फूलों को मिला है,
यह शहीदों के उबलते खून का ही सिलसिला है।
बिछ गए वे नींव में, दीवार के नीचे गड़े हैं,
महल अपने, शहीदों की छातियों पर ही खड़े हैं।
नींव के पत्थर तुम्हें सौगंध अपनी दे रहे हैं
जो धरोहर दी तुम्हें,
वह हाथ से जाने न देना।
देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।।
देश के भूगोल पर जब भेड़िये ललचा रहें हो
देश के इतिहास को जब देशद्रोही खा रहे हों
देश का कल्याण गहरी सिसकियाँ जब भर रहा हो
आग-यौवन के धनी! तुम खिड़कियाँ शीशे न तोड़ो,
भेड़ियों के दाँत तोड़ो, गरदनें उनकी मरोड़ो।
जो विरासत में मिला वह, खून तुमसे कह रहा है-
सिंह की खेती
किसी भी स्यार को खाने न देना।
देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।।
तुम युवक हो, काल को भी काल से दिखते रहे हो,
देश का सौभाग्य अपने खून से लिखते रहे हो।
ज्वाल की, भूचाल की साकार परिभाषा तुम्हीं हो,
देश की समृद्धि की सबसे बड़ी आशा तुम्हीं हो।
ठान लोगे तुम अगर, युग को नई तस्वीर दोगे,
गर्जना से शत्रुओं के तुम कलेजे चीर दोगे।
दाँव पर गौरव लगे तो शीश दे देना विहँस कर,
देश के सम्मान पर
काली घटा छाने न देना।
देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।
वह जवानी, जो कि जीना और मरना जानती है,
गर्भ में ज्वालामुखी के जो उतरना जानती है।
बाहुओं के ज़ोर से पर्वत जवानी ठेलती है,
मौत के हैं खेल जितने भी, जवानी खेलती है।
नाश को निर्माण के पथ पर जवानी मोड़ती है,
वह समय की हर शिला पर चिह्न अपने छोड़ती है।
देश का उत्थान तुमसे माँगता है नौजवानों!
दहकते बलिदान के अंगार
कजलाने न देना।
देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।।
- श्रीकृष्ण सरल-

mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm


💐नमामि मातु भारती!💐

नमामि मातु भारती!
हिमाद्रि-तुंग-शृंगिनी
त्रिरंग-अंग-रंगिनी
नमामि मातु भारती
सहस्त्र दीप आरती।
समुद्र-पाद-पल्लवे
विराट विश्व-वल्लभे
प्रबुद्ध बुद्ध की धरा
प्रणम्य हे वसुंधरा।
स्वराज्य-स्वावलंबिनी
सदैव सत्य-संगिनी
अजेय श्रेय-मंडिता
समाज-शास्त्र-पंडिता।
अशोक-चक्र-संयुते
समुज्ज्वले समुन्नते
मनोज्ञा मुक्ति-मंत्रिणी
विशाल लोकतंत्रिणी।
अपार शस्य-संपदे
अजस्त्र श्री पदे-पदे
शुभंकरे प्रियंवदे
दया-क्षमा-वंशवदे।
मनस्विनी तपस्विनी
रणस्थली यशस्विनी
कराल काल-कालिका
प्रचंड मुँड-मालिका।
अमोघ शक्ति-धारिणी
कुराज कष्ट-वारिणी
अदैन्य मंत्र-दायिका
नमामि राष्ट्र-नायिका।
- गोपाल प्रसाद व्यास

ffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffff

ओज का यशस्वी कवि
हरिओम पवार, जिसकी वाणी में हुँकार बसी है।
जिसका धर्म केवल राष्ट्र-धर्म है। श्रद्धेय अटलजी का सबसे प्रिय कवि.....

§§अमर क्रांतिकारी चंद्रशेखर का परिचय §§

✊✊✊
महायज्ञ का नायक शेखर, गौरव भारत भू का है
जिसका भारत की जनता से रिश्ता आज लहू का है
जिसके जीवन की शैली ने हिम्मत को परिभाषा दी
जिसके पिस्टल की गोली ने इंकलाब को भाषा दी
जिसने धरा गुलामी वाली क्रांति निकेतन कर डाली
आजादी के हवन कुंड में अग्नि चेतन कर डाली
जिसको खूनी मेंहदी से भी देह रचाना आता था
आजादी का योद्धा केवल नमक चबेना खाता था
...................................
जब तक भारत की नदियों में कल-कल बहता पानी है
क्रांति ज्वाल के इतिहासों में शेखर अमर कहानी है
आजादी के कारण जो गोरों से बहुत लड़ी है जी
शेखर की पिस्तौल किसी तीरथ से बहुत बड़ी है जी
स्वर्ण जयंती वाला जो ये मंदिर खड़ा हुआ होगा
शेखर इसकी बुनियादों के नीचे गड़ा हुआ होगा
   >>>>>  हरिओम पंवार
ggggggggggggggggggggggggggggggggggggggggggggggggggg

अटलजी-- जिनकी राजनीती में राष्ट्र सर्वोपरि रहा है। जिनका ह्रदय राष्ट्र-भक्ति और समर्पण भरा है।
प्रस्तुत है उनकी कालजयी रचना -- 
 🇮🇳पंद्रह अगस्त की पुकार🇮🇳

पंद्रह अगस्त का दिन कहता --
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।
जिनकी लाशों पर पग धर कर
आज़ादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई।।
कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आँधी-पानी सहते हैं
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं।।
हिंदू के नाते उनका दु:ख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो
सभ्यता जहाँ कुचली जाती।।
इंसान जहाँ बेचा जाता,
ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है,
डालर मन में मुस्काता है।।
भूखों को गोली नंगों को
हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं।।
लाहौर, कराची, ढाका पर
मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है
ग़मगीन गुलामी का साया।।
बस इसीलिए तो कहता हूँ
आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?
थोड़े दिन की मजबूरी है।।
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी पर्व मनाएँगे।।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ,
जो खोया उसका ध्यान करें।।
☀☀☀☀☀☀
⚡- अटल बिहारी वाजपेयी⚡
(पंद्रह अगस्त 1947 को रचित)
स्रोत : मेरी इक्यावन कविताएँ, किताबघर, 24-अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली 110 002

mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें