सांस्कृतिक यात्रा

सांस्कृतिक यात्रा

प्रिय समाज बंधुओं !

मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार जाती के विषय में श्री रामनारायण सोनी, लाडनू (नागौर), राजस्थान ने अपनी पुस्तक " मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति का इतिहास" नामक पुस्तक पुस्तक लिखी है।  हमारे लिए अत्यंत गौरव का विषय है।  यह पुस्तक अपने आप में एक विशाल शोध प्रबंध है।  ऐसा लगता है की उन्होंने इसे लिखने में अपने जीवन कल की सुदीर्घ कालावधि खर्च कर दी होगी। उनके इस अतुलनीय कार्य के लिए सर्जना मंच की ओर से उनको कोटिशः शुभकामनाएं और साधुवाद।
प्रस्तुत अग्रलेख आपको अपने पुरातन गौरव का दर्शन करने को लालायित कर देगा। हमें जेनेटिकली कितने धनी हैं, कदम दर कदम तौलते चलें।

उनकी इस पुस्तक से कुछ प्रसंग और तथ्य यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं। इसके लिए पुनः हम आभारी हैं।

मैढ़ -
पौराणिक और ऐतिहासिक मिले-जुले तथ्यों के आधार पर महाराजा अजमीढ़ के संभावित राज्य-काल ईसापूर्व 2000 रहा होगा।  चन्द्रवंश की दो शाखाएं थी यदुवंश और पुरुवंश। यदुवंश की छप्पनवीं पीढ़ी में श्री कृष्ण हुए। मैढ़ और यादव दोनों ही चन्द्रवंशी थे। इनके गोत्र,ऋषि,और परम्पराएं सभी सामान थी। कैई वंशों की कुलदेवियाँ कॉमन हैं। तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में गोत्र, खाँप, कुलदेवी, भैरव आदि के कारन वंशों की वंशानुगतता पहचान हुआ करती थी। जो अपने आप में एक इतिहास का अनुरक्षण था। लेकिन मेढ़ों की एक ऐतिहासिक विशेषता रही की उन्होंने अपनी पहचान बनाये रखी।

क्षत्रिय-
क्षत्रिय शब्द क्षत और त्रैय शब्द की व्युत्पत्ति है अर्थात जो नाश से रक्षा करता हो वह क्षत्रिय कहलाता है, (ऋग्वेद ८., १६. १८)। रक्षा वही कर सकता है जो शौर्यवान हो, साहसी हो। ये सभी कुलीन थे। शौरवांन और चरित्रवान होने से कुशल प्रबंधक रत…। और शाशनाधीश भी क्षत्रिय ही हुआ करते थे। मनुस्मृति में उल्लेख है की क्षत्रिय वर्ण के कर्तव्य -प्रजा का अनुरक्षण, दान, यज्ञ, पढ़ना आदि नियत है। न्याय व्यवस्था में क्षत्रिय अग्रणी थे।


अनवरत. . . . . . . . . . . .






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