मंगलवार, 5 मई 2015

शिवसंकल्प सूक्त



शिवसंकल्प सूक्त

वैदिक प्रार्थना 

यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति 
दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥१॥

वह दिव्य ज्योतिमय शक्ति (मन) जो हमारे जागने की अवस्था में बहुत दूर तक चला जाता हैऔर हमारी निद्रावस्था में हमारे पास आकर आत्मा में विलीन हो जाता है,
वह प्रकाशमान स्रोत जो हमारी इंद्रियों को प्रकाशित करता है, मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त (सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।

येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः 
यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु  ॥२॥

जिस मन की सहायता से ज्ञानीजन(ऋषिमुनि इत्यादि)कर्मयोग की साधना में लीन यज्ञ,जप,तप करते हैं,वह(मन) जो  सभी जनों के शरीर में विलक्षण रुप से स्थित है,मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।


यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु 
यस्मान्न ऋते किञ्चन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु  ॥३॥

जो मन ज्ञान, चित्त , व धैर्य स्वरूप , अविनाशी आत्मा से सुक्त इन समस्त प्राणियों के भीतर ज्योति सवरुप विद्यमान है, वह मेरा मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।

येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम् 
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु  ॥४॥

जिस शाश्वत मन द्वारा भूत,भविष्य व वर्तमान काल की सारी वस्तुयें सब ओर से ज्ञात होती हैं,और जिस मन के द्वारा सप्तहोत्रिय यज्ञ(सात ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला यज्ञ) किया जाता है, मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।

यस्मिन्नृचः साम यजूंषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः 
यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु  ॥५॥

जिस मन में ऋग्वेद की ऋचाये व सामवेद व यजुर्वेद के मंत्र उसी प्रकार स्थापित हैं, जैसे रथ के पहिये की धुरी से तीलियाँ जुड़ी होती हैं, जिसमें सभी प्राणियों का ज्ञान कपड़े के तंतुओं की तरह बुना होता है, मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।

सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान् नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव 
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु  ॥६॥

भावार्थ: जो मन हर मनुष्य को इंद्रियों का लगाम द्वारा उसी प्रकार घुमाता है, तिस प्रकार एक कुशल सारथी लगाम द्वारा रथ के वेगवान अश्वों को नियंत्रितकरता व उन्हें दौड़ाता है, आयुरहित(अजर)तथा अति वेगवान व प्रणियों के हृदय में स्थित  मेरा वह मन शुभसंकल्प युक्त ( सुंदर व पवित्र विचारों से युक्त) हो।

शिवसंकल्प सूक्त की Mp3 file का लिंक नीचे दिया है। मुझे विश्वास है आप अवश्य इसे सुनकर मेरी ही तरह इन मंत्रों में कुछ क्षणों हेतु खो ही जायेंगे।

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