वातायन
एक खिड़की जो खुली थी
एक अरसे से पड़ी वह बंद है।
आ रही थी जो पवन उस गाँव से
साथ लाती आहटें, संदेश मधुरिम
रेशमी आवाज मन को गुदगुदाती
गुनगुनाती लोरियाँ मुझको सुनाती
थी कभी रोती कभी मुझको रुलाती
खुशनुमा रस-रंग में मुझको भिंगाती
एक खिड़की जो खुली थी
एक अरसे से पड़ी वह बंद है।
खिड़कियां होती बिना दहलीज की
झाँक लें उस पार इतनी ही नियति है
कर लिया एहसास बस उस पार उनका
सख्त पहरो से घिरा संसार जिसका
एक खिड़की जो खुली थी
एक अरसे से पड़ी वह बंद है।
एक मुट्ठी रेत से पल किससे रुके
बन रहे इतिहास झरते उम्र भर
याद के पंछी विचरते व्योम पर
लौट कर उनमन सिमटते नीड में
एक खिड़की जो खुली थी
एक अरसे से पड़ी वह बंद है।
क्षुब्ध मन देता निमंत्रण दर्द को
पीर है लगती मेरी अब सहचरी
था भला पाषाण उजड़ी बस्तियों का
क्यों भरी संवेदना अभिभूत हो कर
एक खिड़की जो खुली थी
एक अरसे से पड़ी वह बंद है।
क्या कहें वरदान, या अभिशाप है ?
उम्र बीती नापते बस हाथ भर की दूरियाँ
चंद बन्दों में सिमटती जिंदगी
मूढ़ मन करता करता रहा बस बंदगी
एक खिड़की जो खुली थी
एक अरसे से पड़ी वह बंद है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें