मंगलवार, 23 जून 2015

laghu prerak prasang

एक चित्रकार था

एक चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था।
लोग उसकी चित्रकारी की काफी तारीफ़ करते थे।
एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक चित्र बनाने की इच्छा प्रगट की।
चित्रकार इसके लिये तैयार हो गया आखिर भगवान् का काम था, पर उसने कुछ शर्ते रखी।
उसने कहा मुझे योग्य पात्र चाहिए, अगर वे मिल जाए तो में आसानी से चित्र बना दूंगा।
कृष्ण के चित्र लिए एक योग्य नटखट बालक और कंस के लिए एक क्रूर भाव वाला व्यक्ति लाकर दे तब मैं चित्र बनाकर दूंगा।
कृष्ण मंदिर के भक्त एक बालक ले आये, बालक सुन्दर था।
चित्रकार ने उसे पसंद किया और उस बालक को सामने रख बालकृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया।
अब बारी कंस की थी पर क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुस्किल था।
जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालो को पसंद आता वो चित्रकार को पसंद नहीं आता उसे वो भाव मिल नहीं रहे थे...
वक्त गुजरता गया।
आखिरकार थक-हार कर सालों बाद वो अब जेल में चित्रकार को ले गए, जहा उम्रकेद काट रहे अपराधी थे।
उन अपराधीयों में से एक को चित्रकार ने पसंद किया और उसे सामने रखकर उसने कंस का एक चित्र बनाया।
कृष्ण और कंस की वो तस्वीर आज सालों के बाद पूर्ण हुई।
कृष्ण मंदिर के भक्त वो तस्वीरे देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।
उस अपराधी ने भी वह तस्वीरे देखने की इच्छा व्यक्त की।
उस अपराधी ने जब वो तस्वीरे देखी तो वो फुट-फुटकर रोने लगा।
सभी ये देख अचंभित हो गए।
चित्रकार ने उससे इसका कारण बड़े प्यार से पूछा।
तब वह अपराधी बोला "शायद आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं वो ही बच्चा हुँ जिसे सालों पहले आपने बालकृष्ण के चित्र के लिए पसंद किया था।
मेरे कुकर्मो से आज में कंस बन गया, इस तस्वीर में मैं ही कृष्ण मैं ही कंस हुँ।
मित्रों याद रखो हमारे कर्म ही हमे अच्छा और बुरा इंसान बनाते है।


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दो मित्र साथ-साथ एक रेगिस्तान में चले जा रहे थे । रास्ते में दोनों में कुछ तू-तू ,मैं -मैं हो गई। बहसबाजी में बात इतनी बढ़ गई की उनमे से एक मित्र ने दूसरे के गाल पर जोर से झापड़ मार दिया। जिस मित्र को झापड़ पड़ा उसे दुःख तो बहुत हुआ किंतु उसने कुछ नहीं कहा । वह झुका और उसने रेत पर लिख दिया ,"आज मेरे सबसे निकटतम मित्र ने मुझे झापड़ मारा। "दोनों मित्र आगे चलते रहे और उन्हें एक पानी का तालाब (OASIS)दिखा और उन दोनों ने पानी में उतर कर नहाने का निर्णय कर लिया । जिस मित्र को झापड़ पड़ा था ,वह दलदल में फँस गया और डूबने लगा । किंतु उसके मित्र ने उसे बचा लिया । जब वेह मित्र बच गया तो बाहर आकर उसने एक पत्थर पर लिखा,"आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचाई।"जिस मित्र ने उसे झापड़ मारा था और फिर उसकी जान बचाई थी ,से न रहा गया और उसने पूछा,"जब मैंने तुम्हे मारा था तो तुमने रेत में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा,ऐसा क्यों?"इस पर दूसरे मित्र ने उत्तर दिया," जब कोई हमारा दिल दुखाये ,तो हमें उस अनुभव के बारे में रेत में लिखना चाहिए जिससे की' क्षमा' रुपी वायु शीघ्र ही उसे मिटा दे। किंतु जब कोई हमारे साथ कुछ अच्छा करे तो हमे उस अनुभव को पत्थर पर लिख देना चाहिए जिससे कि कोई भी वायु उस अनुभव को कभी भी मिटा न सके."


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छोटा सा अंतर एक बुद्धिमान व्यक्ति ,जो लिखने का शौकीन था ,लिखने के लिए समुद्र के किनारे जा कर बैठ जाता था और फिर उसे प्रेरणायें प्राप्त होती थीं और उसकी लेखनी चल निकलती थी । लेकिन ,लिखने के लिए बैठने से पहले वह समुद्र के तट पर कुछ क्षण टहलता अवश्य था । एक दिन वह समुद्र के तट पर टहल रहा था कि तभी उसे एक व्यक्ति तट से उठा कर कुछ समुद्र में फेंकता हुआ दिखा ।जब उसने निकट जाकर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति समुद्र के तट से छोटी -छोटी मछलियाँ एक-एक करके उठा रहा था और समुद्र में फेंक रहा था । और ध्यान से अवलोकन करने पर उसने पाया कि समुद्र तट पर तो लाखों कि तादात में छोटी -छोटी मछलियाँ पडी थीं जो कि थोडी ही देर में दम तोड़ने वाली थीं ।अंततः उससे न रहा गया और उस बुद्धिमान मनुष्य ने उस व्यक्ति से पूछ ही लिया ,"नमस्ते भाई ! तट पर तो लाखों मछलियाँ हैं । इस प्रकार तुम चंद मछलियाँ पानी में फ़ेंक कर मरने वाली मछलियों का अंतर कितना कम कर पाओगे ?इस पर वह व्यक्ति जो छोटी -छोटी मछलियों को एक -एक करके समुद्र में फेंक रहा था ,बोला,"देखिए !सूर्य निकल चुका है और समुद्र की लहरें अब शांत होकर वापस होने की तैयारी में हैं । ऐसे में ,मैं तट पर बची सारी मछलियों को तो जीवन दान नहीं दे पाऊँगा । " और फिर वह झुका और एक और मछली को समुद्र में फेंकते हुए बोला ,"किन्तु , इस मछली के जीवन में तो मैंने अंतर ला ही दिया ,और यही मुझे बहुत संतोष प्रदान कर रहा है । "इसी प्रकार ईश्वर ने आप सब में भी यह योग्यता दी है कि आप एक छोटे से प्रयास से रोज़ किसी न किसी के जीवन में 'छोटा सा अंतर' ला सकते हैं । जैसे ,किसी भूखे पशु या मनुष्य को भोजन देना , किसी ज़रूरतमंद की निःस्वार्थ सहायता करना इत्यादि । आप अपनी किस योग्यता से इस समाज को , इस संसार को क्या दे रहे हैं ,क्या दे सकते हैं ,आपको यही आत्मनिरीक्षण करना है और फिर अपनी उस योग्यता को पहचान कर रोज़ किसी न किसी के मुख पर मुस्कान लाने का प्रयास करना है ।और विश्वास जानिए ,ऐसा करने से अंततः सबसे अधिक लाभान्वित आप ही होंगे । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपको अपने भीतर महसूस होगा । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपके ही जीवन में पड़ेगा


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एक अत्यंत असभ्य किसान, जो की अधेड़ उम्र पार कर चुका था, एक बौद्ध मठ के द्वार पर आकर खड़ा हो गया।जब भिक्षुओं ने मठ का द्वार खोला तो उस किसान ने अपना परिचय कुछ इस प्रकार दिया, " भिक्षु मित्रों ! मैंविश्वास से ओतप्रोत हूँ। और मैं आप लोगों से अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ। " उससे बात करने के बाद भिक्षुओं ने आपस में बातचीत की और यह निष्कर्ष निकाला कि चूँकि इस किसान में चतुरता और सभ्यता कीकमी लग रही थी अतः ज्ञान प्राप्त करना भिक्षुओं को उसके बस की बात नहीं लगी। और आत्मविकास के विषय में समझ पाना तो उस किसान के लिए असंभव सा प्रतीत होता था। किन्तु, वह व्यक्ति आशा और विश्वास से भरपूर प्रतीत होता था, अतः भिक्षुओं ने उसे कहा, " भले आदमी! तुम्हेइस मठ की सफाई की संपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है। रोजाना तुम्हें इस मठ को पूरी तरह से साफ़ रखना है। हाँ ! तुम्हें यहाँ रहने और खाने-पीने की सुविधा प्रदान की जाएगी।"कुछ माह के पश्चात उस मठ के भिक्षुओं ने पाया की वह किसान अब पहले से अधिक शांत प्रतीत होता था, अबउसके चेहरे पर हर समय एक मुस्कान फ़ैली रहती थी और उसकी आँखों में एक अभूतपूर्व चमक हर समयदिखाई देती थी। वह हर समय सुखी, सन्तुष्ट, संतुलित और शांति से भरपूर दिखाई देने लगा था।अंततः भिक्षुओं से रहा न गया और उन्होंने उस किसान से पूछ ही लिया, " भले आदमी ! ऐसा प्रतीत होता हैकि इन महीनों में, जबसे तुम यहाँ आये हो, तुम्हारे भीतर एक अभूतपूर्व अध्यात्मिक परिवर्तन हुआ है।क्या तुम किसी विशेष नियम या ध्यान की किसी विशेष विधि का पालन कर रहे हो? " और इस पर उस किसान ने उत्तर दिया, " भाइयों, मैं पूरी लगन, मेहनत और प्रेम से अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में लगा रहता हूँ।" और मेरा लक्ष्य है, इस मठ को स्वच्छ रखना। मेरे मस्तिष्क में मेरा लक्ष्य एकदम स्पष्टहै। और हाँ ! जैसे-जैसे मैं इस मठ की गन्दगी और कूड़े-करकट को साफ़ करता हूँ, वैसे-वैसे मैं कल्पना करताहूँ, कि जैसे मेरे मन से धोखा, ईर्ष्या, द्वेष, लालच और घृणा की भावनाएं भी बाहर निकल रही हैं, समाप्त हो रही हैं। और इसी कारण, प्रत्येक दिन मैं पहले से सुखी होता जाता हूँ ।करने म से अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में लगा रहता हूँ। और मेरा लक्ष्य है "

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जीवन प्रबंधन
दिशा
एक  हट्टा-कट्टा व्यक्ति सामान लेकर स्टेशन पर उतरा। उसनेँ टैक्सी वाले से कहा कि मुझे शिव-मंदिर जाना है।टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे। इस पर आदमी अपना सामान खुद ही उठा कर चल पड़ा । वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा। कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दूरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे? टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये। उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ।टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप शिव मंदिर की विपरीत दिशा मेँ जा रहे हैँ। उस व्यक्ति ने कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया।
इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ से पहले  सोच विचार लेवेँ कि जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ। यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी 
रामनारायण सोनी 

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जीवन क्या है?

Prakhar Kishore   |    08 जून, 2015
जीवन क्या है?

जीवन क्या है?
यूँ तो जीवन को परिभाषित करना आसान नहीं है 
लेकिन वह थोड़ा थोड़ा ऐसा है। 

प्रभु की लिखी सुन्दर गीत है जीवन, 

खुद के लिए स्वयं लिखी गीता है
सर्दी की रात में आती कंपकंपी हैजीवन,
मुश्किलों में मिलती थपथपी है जीवन,

वो गीत जिसे हर कोई सुनता है जीवन,
सपना है जो हर कोई बुनता है जीवन,
मधुर यादों का बहता झरना है जीवन,
प्यारी बातों को जेब में भरना है जीवन, 

सही के लिए गलत से भिड़ना है जीवन,
झूठ-मूठ का रूठना-मनाना है जीवन,
ज्यादा सा खोना जरा सा पाना है जीवन,
ज्ञान है जिसे सिर्फ आप मानते हैं जीवन,

बर्फ के बीच से उगती दूब है जीवन,
बहकते पल में मिलती दिशा है जीवन,
प्रेयसी के हाथों का छूना है जीवन,
गले में अटकी एक मीठी हंसी है जीवन, 

दमदार हौसलों से दौड़ती रवानी है जीवन,
मासूम बच्चों सी बढ़ती कहानी है जीवन,
कभी खामोश ना रहने वाली खुशी है जीवन,
प्रभु की लिखी सुन्दर कविता है जीवन,

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क्या आपको पता है, जब हाथी का बच्चा छोटा होता है तो उसे पतली एंव कमजोर रस्सी से बांधा जाता है| हाथी का बच्चा छोटा एंव कमजोर होने के कारण उस रस्सी को तोड़कर भाग नहीं सकता| लेकिन जब वही हाथी का बच्चा बड़ा और शक्तिशाली हो जाता है तो भी उसे पतली एंव कमजोर रस्सी से ही बाँधा जाता है, जिसे वह आसानी से तोड़ सकता है लेकिन वह उस रस्सी को तोड़ता नहीं है और बंधा रहता है| ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब हाथी का बच्चा छोटा होता है तो वह बार-बार रस्सी को छुड़ाकर भागने की कोशिश करता है, लेकिन वह कमजोर होने के कारण उस पतली रस्सी को तोड़ नहीं सकता और आखिरकर यह मान लेता है कि वह कभी भी उस रस्सी को तोड़ नहीं सकता| हाथी का बच्चा बड़ा हो जाने पर भी यही समझता है कि वह उस रस्सी को तोड़ नहीं सकता और वह कोशिश ही नहीं करता| इस प्रकार वह अपनी गलत मान्यता अथवा गलत धारणा के कारण एक छोटी सी रस्सी से बंधा रहता है जबकि वह दुनिया के सबसे ताकतवर जानवरों में से एक है|
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जब हवा चलती है…..

Dolly Chourasiya   |    6 घंटे पहले
जब हवा चलती है…..
बहुत समय पहले की बात है , आइस्लैंड के उत्तरी छोर पर एक किसान रहता था . उसे अपने खेत में काम करने वालों की बड़ी ज़रुरत रहती थी लेकिन ऐसी खतरनाक जगह , जहाँ आये दिन आंधी –तूफ़ान आते रहते हों , कोई काम करने को तैयार नहीं होता था .किसान ने एक दिन शहर के अखबार में इश्तहार दिया कि उसे खेत में काम करने वाले एक मजदूर की ज़रुरत है . किसान से मिलने कई लोग आये लेकिन जो भी उस जगह के बारे में सुनता , वो काम करने से मन कर देता . अंततः एक सामान्य कद का पतला -दुबला अधेड़ व्यक्ति किसान के पास पहुंचा .किसान ने उससे पूछा , “ क्या तुम इन परिस्थितयों में काम कर सकते हो ?”“ ह्म्म्म , बस जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ .” व्यक्ति ने उत्तर दिया .किसान को उसका उत्तर थोडा अजीब लगा लेकिन चूँकि उसे कोई और काम करने वाला नहीं मिल रहा था इसलिए उसने व्यक्ति को काम पर रख लिया.मजदूर मेहनती निकला , वह सुबह से शाम तक खेतों में म्हणत करता , किसान भी उससे काफी संतुष्ट था .कुछ ही दिन बीते थे कि एक रात अचानक ही जोर-जोर से हवा बहने लगी , किसान अपने अनुभव से समझ गया कि अब तूफ़ान आने वाला है . वह तेजी से उठा , हाथ में लालटेन ली और मजदूर के झोपड़े की तरफ दौड़ा .“ जल्दी उठो , देखते नहीं तूफ़ान आने वाला है , इससे पहले की सबकुछ तबाह हो जाए कटी फसलों को बाँध कर ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कास दो .” किसान चीखा .मजदूर बड़े आराम से पलटा और बोला , “ नहीं जनाब , मैंने आपसे पहले ही कहा था कि जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ !!!.”यह सुन किसान का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया , जी में आया कि उस मजदूर को गोली मार दे , पर अभी वो आने वाले तूफ़ान से चीजों को बचाने के लिए भागा .किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी , फसल की गांठें अच्छे से बंधी हुई थीं और तिरपाल से ढकी भी थी , उसके गाय -बैल सुरक्षित बंधे हुए थे और मुर्गियां भी अपने दडबों में थीं … बाड़े का दरवाज़ा भी मजबूती से बंधा हुआ था . साड़ी चीजें बिलकुल व्यवस्थित थी …नुक्सान होने की कोई संभावना नहीं बची थी.किसान अब मजदूर की ये बात कि “ जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ ”…समझ चुका था , और अब वो भी चैन से सो सकता था .मित्रों , हमारी ज़िन्दगी में भी कुछ ऐसे तूफ़ान आने तय हैं , ज़रुरत इस बात की है कि हम उस मजदूर की तरह पहले से तैयारी कर के रखें ताकि मुसीबत आने पर हम भी चैन से सो सकें. जैसे कि यदि कोई विद्यार्थी शुरू से पढ़ाई करे तो परीक्षा के समय वह आराम से रह सकता है, हर महीने बचत करने वाला व्यक्ति पैसे की ज़रुरत पड़ने पर निश्चिंत रह सकता है, इत्यादि.तो चलिए हम भी कुछ ऐसा करें कि कह सकें – ” जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ.”

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यह वाक्‍य आपने भी सुना होगा। और सारी दुनिया में जीसस को मानने वाले लोग निरंतर इसको दोहराते है। यह वाक्‍य बड़ा सरल है। जीसस ने कहा कि इन लोगों को क्षमा कर देना परमात्‍मा, क्‍योंकि ये नहीं जानते कि ये क्‍या कर रहे है। आम तौर से इस वाक्‍य को पढ़ने वाले ऐसा समझते है कि जीसस ने यह कहा कि ये बेचारे नहीं जानते कि मुझे अच्‍छे आदमी को मार रहे है। इनको पता नहीं है।
नहीं यह मतलब जीसस का नहीं था। जीसस का मतलब यह था कि इन पागलों को यह पता नहीं है कि जिसको ये मार रहे है, वह मर ही नहीं सकता है। इनको माफ कर देना। क्‍योंकि इन्‍हें पता नहीं है कि ये क्‍या कर रहे है। यक एक ऐसा काम कर रहे है, जो असंभव है। ये मारने का काम कर रहे है, जो असंभव है।
उस आदमी ने कहा कि विश्‍वास नहीं आता कि कोई मारा जाता हुआ आदमी इतनी करूणा दिखा सकता है। उस वक्‍त तो वह क्रोध से भर जाएगा।
शेख फरीद खूब हंसने लगा। और उसने कहा कि तुमने अच्‍छा सवाल उठाया। लेकिन सवाल का जवाब मैं बाद में दूँगा, मेरा एक छोटा सा काम कर लाओ। पास में पडा हुआ एक नारियल उठाकर दे दिया उस आदमी को, और कहा कि इसे फोड लाओ, लेकिन ध्‍यान रहे,इसकी गिरी को पूरा बचा लाना, गिरी टूट न जाये। लेकिन वह नारियल बिलकुल ही कच्‍चा था। उस आदमी ने कहा,माफ कीजिए, यह काम मुझसे ने होगा। नारियल बिलकुल कच्‍चा है। और अगर मैंने इसकी खोल तोड़ी तो गिरी भी टूट जायेगी। तो उस फकीर ने कहां की उसे रख दो। दूसरा नारियल उसने दिया जो कि सूखा था और कहा कि अब इसे तोड़ लाओ। इसकी गिरी तो तुम बचा सकोगे। उस आदमी ने कहा, इसकी गिरी बच सकती है।
तब बाबा फरीद ने कहा मैंने तुम्‍हें जवाब दिया, कुछ समझ में आया? उस आदमी ने कहा, मेरी कुछ समझ में नहीं आया। नारियल से और मेरे जवाब का क्‍या संबंध है? मेरे सवाल का क्‍या संबंध है। बाबा शेख फरीद ने कहा, यह नारियल भी रख दो, कुछ फोड़ना-फाड़ना नहीं है। मैं तुमसे यह कहा रहा हूं। कि एक कच्‍चा नारियल है, जिसकी गिरी और खोल अभी आपस में जुड़ी हुई है। अगर तुम उसकी खोल को चोट पहुंचाओगे तो उसकी गिरी टुट जायेगी। फिर एक सुखा नारियल है। सूखे नारियल और कच्‍चे नारियल में फर्क ही क्‍या है? एक छोटा सा फर्क है कि सूखे नारियल की गिरी सिकुड़ गई है भीतर और खोल से अलग हो गई है। गिरी और खोल के बीच में एक फासला, एक डिस्‍टेंस हो गया है। एक दूरी हो गई है। अब तुम कहते हो कि इसकी हम खोल तोड़ देंगे तो गिरी बच सकती है। तो मैंने तुम्‍हारे सवाल का जवाब दे दिया।
मैं फिर भी नहीं समझा, आपने जो कहा है। तब बाबा फरीद ने कहा जाओ मरो और समझो। इसके बिना तुम समझ नहीं सकते। लेकिन तब भी तुम समझ नहीं पाओगे, क्‍योंकि तब तुम बेहोश हो जाओगे। खोल और गिरी एक दिन अलग होंगे,लेकिन तब तुम बेहोश हो जाओगे। अगर समझना है तो अभी खोल और गिरी को अलग करना सिख लो। अभी मैं भी जिंदा हूं। और अगर खोल और गिरी अलग हो गये तो समझना मोत खत्‍म हो गई। वह फासला पैदा होते ही हम जानते है कि खोल अलग,गिरी अलग। अब खोल टूट जायेगी तो भी में बचूंगा। तो भी मेरे टूटने का कोई सवाल नहीं है, मेरे मिटने का कोई सवाल नहीं है। मृत्‍यु घटित होगी, तो भी मेरे भीतर प्रवेश नहीं कर सकेगी। मेरे बाहर ही घटित होगी। यानी वही मरेगा जो मैं नहीं हूं, जो मैं हूं वह बच जायेगा।
ध्‍यान या समाधि का यही अर्थ है कि हम अपनी खोल और गिरी को अलग करना सीख जाएं। वे अलग हो सकते है। क्‍योंकि वे अलग है, वे अलग-अलग जाने जा सकते है। दोनों का स्‍वभाव भिन्‍न है ये कुदरत को एक चमत्‍कार ही है कि दोनों कैसे मिले है। एक सूक्ष्‍म है एक स्‍थूल है।
इसलिए ध्‍यान को मैं कहता हूं, स्‍वेच्‍छा से मृत्‍यु में प्रवेश, बालेंटरी एन्‍ट्रेंस इनटू डेथ। अपनी ही इच्छा से मौत में प्रवेश। और जो आदमी अपनी इच्‍छा से मौत में प्रवेश कर जाता है, वह मौत का साक्षात्‍कार कर लेता है। कि यह रही मौत और मैं अभी भी हूं।


क्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सक्सम्मम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म

एक सूफी फकीर हुआ हसन। उसके कुछ शिष्‍यों ने पूछा  की आपका गुरु कोन है। एक गुरु को तो नाम बता ही दो जिससे की तुम्‍हें परमात्‍मा की पहली झलक मिली होगी। 
तब हसन ने कहां: हां याद है, वो एक श्‍याम थी, मैं एक गांव के पास से गुजर रहा था। सुर्य डूब रहा था। मैं भी मीलों चल चुका था। तब कहीं वो गांव आया था। मैं उस समय बहुत अकड़ा हुआ था। अपने को दुनियां का सबसे ज्ञानी आदमी मानने लगा था। तभी मैं देखता हूं कोई 10-।2 साल एक छोटा सा लड़का हाथ में दीपक लिए जा रहा था। शायद संध्‍या के समय किसी शिवालय में जलाने जा रहा होगा।


मैने उसके पास जा कर उससे पूछा क्‍या ये दीया तूने ही जलाया है? उसने कहां हां-हां मैने ही जलाया है। तब मैने उससे पूछा मैं तुझसे एक प्रश्न पुछता हूं। पर तू तो अभी बच्‍चा है। तेरी तो समझ में शायद वो प्रश्‍न ही नहीं आये। उत्‍तर का तो सवाल ही नहीं उठता। पर शायद जीवन में कभी काम आ जायेगा। जीवन बहुत ही उलझा हुआ है। 
प्रश्न थोड़ा दार्शनिक है—कि जब तूने ये दीपक जलाया है तो तुझे जरूर पता होगा, कि इस की ज्‍योति जो पहले नहीं है। और तू उसे जला रहा है। तो यह तो जनता ही होगा की वो कहां से आई। इस दीपक की और देख। शायद तेरी समझ में आ जाये। और मैं अंदर ही अंदर बहुत प्रश्नन था कि अब मजा आयेगा। जब ये बच्‍चा निरूत्‍तर हो मेरे सामने खड़ा होगा।
तब उस बच्‍चें ने कहा एक मिनट ठहर जाओ। मैं आपको बताता हूं। और जरा मेरे करीब आओ,और बड़े ध्‍यान से देख इस दिये को फिर न कहना की मैंने देखा नहीं है। ये फिर दोबार मैं उत्‍तर न दे सकूंगा। उस बच्‍चें न जब ये कहा तो उसकी आंखों की चमक देखने जैसी थी। और उस बच्‍चे ने दीपक हसन के सामने कर के उसे जोर से फूंक मार दी। और जो दीपक में ज्‍योति थी वह क्षण में बुझ गई। एक धुएँ की लकीर पीछे रह गई। शायद जैसे उस ज्योति के पद चाप हो। और उसने पूछा हसन से अब बताओ ज्योति जो आपके सामने जल रही थी। मेंने उस को बुझा दिया। फूँक मार कर। अब बताओ कहां गई। आना तो अचानक हुआ किसी भी दशा से हो सकता है। में जान न पाया हूं। पर जो चीज तुम्हारे सामने से जा रही है। उसका तो तुम पता लगा ही सकते है। यह तो पहले से थोड़ा आसान है।
हसन ने कहां, मेरी अकड़ पल में टुट गई एक छोटे से बच्‍चें ने मुझे निरूत्तर कर दिया। मेरे सारे तर्क सारे शस्‍त्र मेरे कुछ काम न आये। उस बालक में मुझे आपने उस गुरु की पहली झलक मिली जिस ने पहली झलक परमात्‍मा की दी। और मैंने झुक कर उसके चरण स्‍पर्श किये। एक छोटे से बच्‍चे ने मेरे सारे दर्शन शस्‍त्र को कूड़े करकट में डाल दीया। और मेरी आंखे खोल दी। एक छोटा बच्‍चा समझ में उसे सिखाने की चेष्‍टा कर रहा था। और शायद जानता में कुछ भी नहीं था। और अपने को गुरु होने के मार्ग पर ले जा रहा था। वह मार्ग उसने पल में एक झटके से तोड़ दिया।
और ये देखना चमत्‍कार की मैं उसी पल, उसी समय गुरु हो गया।



















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