शनिवार, 14 नवंबर 2015

ईश्वर से प्रार्थना

ओें शं नो मित्रः शं वरूणः शं नो भवत्वर्य्यमा।
शं  इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरूरूक्रमः।। 

हे सच्चिदानन्दानन्तस्वरूप, हे नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव, हे अद्वितीयानुपमजगदादिकारण,
हे अज, निराकार, सर्वशक्तिमन्, न्यायकारिन्, हे जगदीश, सर्वजगदुत्पादकाधार, 
हे सनातन, सर्वंगलमय, सर्वस्वामिन्, हे करूणाकरास्मत्पितः, 
परमसहायक, हे सर्वानन्दप्रद, सकलदुःखविनाशक, 
हे अविद्यान्धकारनिर्मूलक, विद्यार्कप्रकाशक, हे परमैश्वर्यदायक, साम्राज्यप्रसारक, 
हे अधर्मोद्धारक, पतितपावन, मान्यप्रद, हे विश्वविनोदक, विनयविधिप्रद, 
हे विश्वासविलासक, हे निरंजन, नायक, शर्मद, नरेश, निर्विकार, 
हे सर्वान्तर्यामिन्, सदुपदेशक, मोक्षप्रद,
हे सत्यगुणाकर, निर्मल, निरीह, निरामय, निरुपद्रव, दीनदयाकर, परमसुखदायक, 
हे दारिद्रयविनाशक, निर्वैरविधायक, सुनीतिवर्द्धक, 
हे प्रीतिसाधक, राज्यविधायक, शत्रुविनाशक, हे सर्वबलदायक, निर्बलपालक, हे सुधर्मसुपापक, 
हे अर्थसुसाधक, सुकामवर्द्धक, ज्ञानप्रद, हे सन्ततिपालक, धम्र्मसुशिक्षक, रागविनाशक, 
हे पुरुषार्थप्रापक, दुर्गुणनाशक, सिद्धिप्रद, हे सज्जनसुखद, दुष्टसुताडन, गर्वकुक्रोधकुलोभविदारक, 
हे परमेश, परेश, परमात्मन्, परब्रह्मन्, हे जगदानन्दक, परमेश्वर, व्यापक, सूक्ष्माच्छेद्य, 
हे अजरामृताभयनिर्बन्धनादे, हे अप्रतिमप्रभाव, निर्गुणातुल, विश्वाद्य, विश्ववन्द्य, विद्वद्विलासक, इत्याद्यनन्तविशेषणवाच्य, हे मंगलप्रदेश्वर ! 
आप सर्वथा सब के निश्चित मित्र हो। हमे सत्यसुखदायक सर्वदा हो। 
हे सर्वोत्कृष्ट, स्वीकरणीय, वरेश्वर ! आप वरूण अर्थात सब से परमोत्तम हो, सो आप हमको परम सुखदायक हो।
हे पक्षपातरहित, धर्मन्यायकारिन् ! आप अर्य्यमा (यमराज) हो इससे हमारे लिये न्याययुक्त सुख देने वाले आप ही हो। परमैश्वर्यवन् इन्द्रेश्वर ! आप हम को परमश्वर्ययुक्त शीघ्र स्थिर सुख दीजिये।

हे महाविद्यावायोधिपते, बृहस्पते, परमात्मन् ! हम लोगों को (वृहत) सब से बड़े सुख को देने वाले आप ही हो। 
हे सर्वव्यापक, अनन्तपराक्रमेश्वर विष्णो ! 
आप हमको अनन्त सुख देओ। जो कुछ हम मांगेंगे सो आप से ही मांगेंगे। 
सब सुखों को देनेवाला आप के बिना कोई नहीं है। सर्वथा हम लोगों को आप का ही आश्रय है, अन्य किसी का नहीं, 
क्योंकि सर्वशक्तिमान् न्यायकारी दयामय सब से बड़े पिता को छोड़ के अन्य किसी नीचे का आश्रय हम कभी न करेंगे। 
आप का तो स्वभाव ही है कि अंगीकृत को कभी नहीं छोड़ते सो आप सदैव हम को सुख देंगे, यह हमको दृढ़ निश्चय है।’

इस प्रार्थना में ईश्वर को सम्बोधन में जिन विशेषणों का प्रयोग किया गया है वह अपूर्व है 
जो हृदय को ईश्वर को श्रद्धा से भर देते हैं। 
हम समझते हैं कि पाठक इस मन्त्र व्याख्या से प्रसन्नता वह आह्लाद् का अनुभव करेंगे।

कई बार हम ईश्वर से प्रार्थना करते है परन्तु वह पूरी नहीं होती। 
इससे हमें दुःख पहुंचने के साथ ईश्वर के प्रति आस्था व विश्वास में न्यूनता उत्पन्न होती है। 
हमारी प्रार्थना पूरी न होने के कई कारण हो सकते हैं।  
हमारी पात्रता में कमी हो सकती है। हम जो मांग रहे हैं, यह आवश्यक नहीं कि वह हमारे हितकर ही हो। 




vivekanand asks




कुछ जिज्ञासा भरे प्रश्न जो नरेंद्र ने किये और उनके उत्तर के प्रकाश में नरेंद्र विवेकानंद बने। हम नरेंद्र के विषय में बहुत नहीं जानते उन्हें स्वामी विवेकानंद के रूप में ही जानते हैं। प्रस्तुत है ऐसा चमत्कारिक संवाद।

रामकृष्ण परमहंस

Swami Vivekanand: I can’t find free time. Life has become hectic.
Ramkrishna Paramahansa: Activity gets you busy. But productivity gets you free.

स्वामी विवेकानंद: मुझे समय ही नहीं मिल पा रहा, जीवन व्यस्ततापूर्ण हो गया है। 
रामकृष्ण परमहंस: क्रियाकलाप तुम्हे व्यस्त बना रहे हैं, लेकिन उत्पादकता तुम्हें इससे आजादी दिलाएगी। 

Swami Vivekanand: Why has life become complicated now?
Ramkrishna Paramahansa: Stop analyzing life.. It makes it complicated. Just live it.

स्वामी विवेकानंद: जीवन में जटिलताएं क्यों भर गई है ?
रामकृष्ण परमहंस: जेवण का विश्लेषण करना बंद करो। यही जटिलता का कारण है, इसे केवल जियो। 

Swami Vivekanand: Why are we then constantly unhappy?
Ramkrishna Paramahansa: Worrying has become your habit. That’s why you are not happy.

स्वामी विवेकानंद: तब हम निरंतर नाखुश क्यों हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: फ़िक्र करना तुम्हारी आदत बन चुकी है इसीलिए तुम दुखी हो। 

Swami Vivekanand: Why do good people always suffer?
Ramkrishna Paramahansa: Diamond cannot be polished without friction. Gold cannot be purified without fire. Good people go through trials, but don’t suffer. With that experience their life becomes better, not bitter.

स्वामी विवेकानंद: अच्छे लोग ही सदैव क्यों कष्ट उठाते हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: बिना घिसी के हीरा चमक नहीं सकता, आग में तपे बिना सोना निखर नहीं सकता। अच्छे लोग कसूती पर से गुजरते हैं अपितु कष्ट से नहीं। इन अनुभवों से उनका जीवन कटु नहीं बेहतर होता है। 

Swami Vivekanand: You mean to say such experience is useful?
Ramkrishna Paramahansa: Yes. In every term, Experience is a hard teacher. She gives the test first and the lessons .

स्वामी विवेकानंद: क्या इसका मतलब यह है की ऐसे अनुभव उपयोगी है ?
रामकृष्ण परमहंस: हाँ , हर समय अनुभव एक सख्त शिक्षक है। पहले इसका स्वाद फिर शिक्षा मिलती है।  


Swami Vivekanand: Because of so many problems, we don’t know where we are heading…
Ramkrishna Paramahansa: If you look outside you will not know where you are heading. Look inside. Eyes provide sight. Heart provides the way.

स्वामी विवेकानंद: कई समस्याओं के रहते हम यह नहीं जान पाते हैं कि हम कहाँ ठीक कर रहे हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: जब तुम बहार देख रहे होते हो तब तुम्हें यह पता नहीं चलता की तुम कहाँ ठीक हो ? इसलिए अपने भीतर दखो। आँखे देख भर सकती है लेकिन दिमाग रास्ते बताएगा। 

Swami Vivekanand: Does failure hurt more than moving in the right direction?
Ramkrishna Paramahansa: Success is a measure as decided by others. Satisfaction is a measure as decided by you.

स्वामी विवेकानंद: क्या असफलता सही रस्ते पर चलने से अधिक चोट पहुंचती है ?
रामकृष्ण परमहंस: सफलता का मापदंड दूसरों के द्वारा तय होता है वहीँ संतोष मिला की नहीं यह तुम तय करते हो। 

Swami Vivekanand: In tough times, how do you stay motivated?
Ramkrishna Paramahansa: Always look at how far you have come rather than how far you have to go. Always count your blessing, not what you are missing.

स्वामी विवेकानंद: कठिन घड़ियों में आप कैसे अभिप्रेरित यह पाते हो?
रामकृष्ण परमहंस: ऐसे में तुम्हे यह देखना है की तुम कितना रास्ता तय कर चुके हो इसके बजाय की तुम्हें और कितना जाना है। सदैव प्राप्त वरदानों को देखो यह नहीं कि तुमने क्या खोया है। 

Swami Vivekanand: What surprises you about people?
Ramkrishna Paramahansa: When they suffer they ask, “why me?” When they prosper, they never ask “Why me?”

स्वामी विवेकानंद: लोगों के विषय में आप क्या आश्चर्य जनक समझते हो ?
रामकृष्ण परमहंस: जब वे कष्ट पाते हैं तो पूछते है , मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?  लेकिन जब सफल होते हैं तो तब नहीं कहते कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?

Swami Vivekanand: How can I get the best out of life?
Ramkrishna Paramahansa: Face your past without regret. Handle your present with confidence. Prepare for the future without fear.

स्वामी विवेकानंद: मैं जीवन में सबसे बेहतर कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ?
रामकृष्ण परमहंस: अपने अतीत पर पछताओ मत, अपने वर्तमान को आत्मविश्वास से सम्हालो और भविष्य के लिए निर्भय हो कर खुद को तैयार करो। 

Swami Vivekanand: One last question. Sometimes I feel my prayers are not answered.
Ramkrishna Paramahansa: There are no unanswered prayers. Keep the faith and drop the fear. Life is a mystery to solve, not a problem to resolve. Trust me. Life is wonderful if you know how to live.

स्वामी विवेकानंद: कभी-कभी मुझे लगता है की मेरी प्रार्थना का उत्तर मुझे नहीं मिल रहा है। 
रामकृष्ण परमहंस: ऐसी कोई प्रार्थना नहीं होती जिसका उत्तर नहीं मिलता हो। भय छोडो और विश्वास करो। जीयन एक रहस्य है उसे उजागर करो, एक समस्या नहीं जिसे सुलझाया जावे। मुझ पर विश्वास करो। जीवन चमत्कारपूर्ण है, यह जानो की कैसे जिया जाय।   



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कुछ जिज्ञासा भरे प्रश्न जो नरेंद्र ने रामकृष्ण परमहंस से किये और उनके उत्तर के प्रकाश में नरेंद्र विवेकानंद बने। हम नरेंद्र के विषय में बहुत नहीं जानते उन्हें स्वामी विवेकानंद के रूप में ही जानते हैं। प्रस्तुत है ऐसा चमत्कारिक संवाद। 


स्वामी विवेकानंद: मुझे समय ही नहीं मिल पा रहा, जीवन व्यस्ततापूर्ण हो गया है। रामकृष्ण परमहंस: क्रियाकलाप तुम्हे व्यस्त बना रहे हैं, लेकिन उत्पादकता तुम्हें इससे आजादी दिलाएगी। 

स्वामी विवेकानंद: जीवन में जटिलताएं क्यों भर गई है ?
रामकृष्ण परमहंस: जेवण का विश्लेषण करना बंद करो। यही जटिलता का कारण है, इसे केवल जियो। 
स्वामी विवेकानंद: तब हम निरंतर नाखुश क्यों हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: फ़िक्र करना तुम्हारी आदत बन चुकी है इसीलिए तुम दुखी हो। 
स्वामी विवेकानंद: अच्छे लोग ही सदैव क्यों कष्ट उठाते हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: बिना घिसी के हीरा चमक नहीं सकता, आग में तपे बिना सोना निखर नहीं सकता। अच्छे लोग कसूती पर से गुजरते हैं अपितु कष्ट से नहीं। इन अनुभवों से उनका जीवन कटु नहीं बेहतर होता है। 
स्वामी विवेकानंद: क्या इसका मतलब यह है की ऐसे अनुभव उपयोगी है ?
रामकृष्ण परमहंस: हाँ , हर समय अनुभव एक सख्त शिक्षक है। पहले इसका स्वाद फिर शिक्षा मिलती है।  


स्वामी विवेकानंद: कई समस्याओं के रहते हम यह नहीं जान पाते हैं कि हम कहाँ ठीक कर रहे हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: जब तुम बहार देख रहे होते हो तब तुम्हें यह पता नहीं चलता की तुम कहाँ ठीक हो ? इसलिए अपने भीतर दखो। आँखे देख भर सकती है लेकिन दिमाग रास्ते बताएगा। 
स्वामी विवेकानंद: क्या असफलता सही रस्ते पर चलने से अधिक चोट पहुंचती है ?
रामकृष्ण परमहंस: सफलता का मापदंड दूसरों के द्वारा तय होता है वहीँ संतोष मिला की नहीं यह तुम तय करते हो। 
स्वामी विवेकानंद: कठिन घड़ियों में आप कैसे अभिप्रेरित यह पाते हो?
रामकृष्ण परमहंस: ऐसे में तुम्हे यह देखना है की तुम कितना रास्ता तय कर चुके हो इसके बजाय की तुम्हें और कितना जाना है। सदैव प्राप्त वरदानों को देखो यह नहीं कि तुमने क्या खोया है। 
स्वामी विवेकानंद: लोगों के विषय में आप क्या आश्चर्य जनक समझते हो ?
रामकृष्ण परमहंस: जब वे कष्ट पाते हैं तो पूछते है , मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?  लेकिन जब सफल होते हैं तो तब नहीं कहते कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?
स्वामी विवेकानंद: मैं जीवन में सबसे बेहतर कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ?
रामकृष्ण परमहंस: अपने अतीत पर पछताओ मत, अपने वर्तमान को आत्मविश्वास से सम्हालो और भविष्य के लिए निर्भय हो कर खुद को तैयार करो। 
स्वामी विवेकानंद: कभी-कभी मुझे लगता है की मेरी प्रार्थना का उत्तर मुझे नहीं मिल रहा है। 
रामकृष्ण परमहंस: ऐसी कोई प्रार्थना नहीं होती जिसका उत्तर नहीं मिलता हो। भय छोडो और विश्वास करो। जीयन एक रहस्य है उसे उजागर करो, एक समस्या नहीं जिसे सुलझाया जावे। मुझ पर विश्वास करो। जीवन चमत्कारपूर्ण है, यह जानो की कैसे जिया जाय।  

सोमवार, 2 नवंबर 2015

अतिविशिष्ट अतिथि


हमारे अतिविशिष्ट अतिथि 

माननीय संतोष जड़िया

भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है । इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं । हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है । मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पाये, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है । भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है । सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।

भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र् के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस, स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार आदि का विशेष महत्त्व रहा है।
संस्कृति का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो । व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है।
ये मानवता के पोषक हैं, समर्पित साधक हैं, सनातन संस्कृति के युग संवाहक हैं। इनका समस्त जीवन त्यागमय होता है। ईश्वर ने जगत का सृजन किया, सृजन में ईशत्व है और इस कर्मभूमि में जो सृजक हैं वे वास्तव में ईश्वर की वरद स्वरुप विभूतियाँ है।
हमारा यह प्रयास है की हम इन विभूतियों को, उनके संघर्ष को, उनकी मानवता के प्रति समर्पित भावनाओं को, उनमें समाज को सदैव देने के भाव को और उनके आदर्शों को जन जन तक पहुंचाने का है।

इस श्रंखला में सर्व प्रथम एक समर्पित कलाकार माननीयसंतोष जड़िया के जीवन और व्यक्तित्व परिचय यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। उनसे डॉ. रमेश सोनी, अरविन्द सोनी और रामनारायण सोनी की बातचीत के कुछ अंश उद्धरित किये जा रहे हैं।



















सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

युवा कौन -



युवा कौन -

थके तन और हारे मन से कोई युवा नहीं हो सकता, चाहे उसकी उम्र कुछ भी क्यों न हो? दुनिया में जवान बूढ़े और बूढ़े जवान देखे जा सकते हैं। जिसके मन में उत्साह हो, उमंग हो, जो जीवन में कोई लक्ष्य रखता हो  बस वही युवा है।   वस्तुतःकुछ कर गुजरने के संकल्पित मन वाला व्यक्ति ही युवा है। और जो वर्तमान को बेहतर बनाने के लिये सोचता और करता है वह युवा है।
युवाओं का सर्वश्रेष्ठ गन है की वह ऊर्जा से ओत-प्रोत रहता है, वह अपनी ऊर्जा को सुनियोजित करता है। वह विश्व में कुछ अनुठा करना चाहता है। वह भाग्य पर नहीं कर्म पर विश्वास रखता है, परिस्थितियों का दास नहीं उसका निर्माता है, नियंत्रण कर्ता और स्वामी है। मेरा देश विश्व का सर्वाधिक युवाओं से संपन्न है।

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

for ajmeedh jayanti program

श्री स्वर्णकार सोशल ग्रुप समिति, इंदौर
सर्जना मंच  आपका हार्दिक स्वागत करता है

जय अजमीढ़
swarnkarsocialgroup.blogspot.in
श्री अजमीढ़जी महाराज

ग्रुप का अंगभूत सांस्कृतिक मंच --
सर्जना मंच
जो सोशल ग्रुप के द्वारा निर्दिष्ट नियमों और अनुदेशों के आधार पर कार्य करने वाला कार्यकारी (Executing) मीडिया है।


आज के मुख्य कार्यक्रम
तीन प्रभागों में आयोजित


प्रथम --कलादीर्घा
द्वितीय -- सांस्कृतिक
उक्त दोनों कार्य-संपादन सर्जना  मंच  के दायित्व में

तृतीय -- पारम्परिक
उक्त प्रभाग पारम्परिक परिवेश में



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सर्जना मंच के कुछ आदर्श, उद्देश्य और प्रयास

१. समस्त स्वर्णकार समाज की इकाइयों को निम्नलिखित आयामों में उनकी योग्यता और क्षमताओं को अवसर प्रदान करके समाज के समक्ष व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करना।
२.  इसमें सात से सत्तर वर्ष की आयु तक के लिए अलग-अलग रोचक कार्यक्रम सम्मिलित है।
३. युवा शक्ति की सक्रीय भागीदारी
४. नारी शक्ति की सहभागिता
५. विभिन्न आयाम :
अ. साहित्य
ब. संस्कृति
स. कला
द. समाज सेवा



र्जना मंच
सुस्वागतम
आनुषंगिक


बुधवार, 30 सितंबर 2015

ओन लाइन प्रतियोगिता

सोशल ग्रुप के सर्जना मंच द्वारा घर बैठे प्रतियोगिता में भाग लेने का अनूठा प्रयोग है। इसमें इलेक्ट्रानिक मीडिया का भरपूर उपयोग किया जावेगा।

ओन लाइन प्रतियोगिता के विषय में कुछ नियम :-
१. यह एक रिमोटवर्क है, प्रतियोगी जहाँ है वहीँ से भाग लेगा
२. उसे पहले मंच पर रजिस्टर कराकर एनरोलमेंट नं. अलाट होगा
३. प्रतियोगिता का विषय मंच द्वारा २ घंटे पूर्व वाट्स एप पर जारी होगा
४. प्रतियोगी को ब्लेंक कैनवास, ड्राइंग शीट का नाम दिनांक आदि क चित्र मोबाइल/ कैमरा आदि से खींच कर मंच को वाट्सएप अथवा मेल करना होगा
५. प्रतियोगिता पूर्ण होने पर उसी दिन १५ मिनिट के भीतर रचना का फोटो मंच को प्रेषित करना होगा
७. मंच में नियुक्त जजों द्वारा प्रथम, द्वितीय तृतीय आदि की घोषणा ३ घंटे में निश्चित करके वाट्सएप पर प्रसारित कर दी जावेगी
८. विजेता को चिन्हित रचना फिजिकली मंच को भेजना होगा जिसका जजेस सत्यापन करेंगे।
९. विजेता को श्री स्वर्णकार सोशल ग्रुप अपने विशिष्ट कार्यक्रम में अथवा डाक द्वारा सम्मान प्रतीक/ प्रमाणपत्र प्रदान करेगा

नोट:- अगर प्रतियोगिता सफल तरीके से संपन्न हुई तो आगे साहित्य की विधाओं में भी ऑनलाइन प्रतियोगिताएँ आयोजित की जावेगी।
उक्त नियम प्रस्तावित हैं। उपयुक्त सुझाव प्राप्त होने पर इसमें संसोधन किया जा सकेगा।
नोट:- अगर प्रतियोगिता सफल तरीके से संपन्न हुई तो आगे साहित्य की विधाओं में भी ऑनलाइन प्रतियोगिताएँ आयोजित की जावेगी।
उक्त नियम प्रस्तावित हैं। उपयुक्त सुझाव प्राप्त होने पर इसमें संसोधन किया जा सकेगा। 

सोमवार, 28 सितंबर 2015

ओसियाँ की सच्चियायमाता

ओसियाँ की सच्चियायमाता
















सच्चियाय अथवा सच्चियायमाता का भव्य और प्रसिद्ध मन्दिर जोधपुर से लगभग 60 की.मी. दूर ओसियाँ में स्थित है । ओसियाँ पुरातात्विक महत्व का एक प्राचीन नगर है । इसका प्राचीन नाम उकेश था जिसका अपभ्रंश कालान्तर में ओसियाँ हो गया ।

ओसियाँ में वैष्णव, शैव, देवी (शक्ति) और जैन मन्दिर साथ-साथ बने । वैष्णव और शैव मतों की उदारता तथा सहिष्णुता के परिणामस्वरूप विष्णु तथा शिव के संयुक्त रूप हरिहर लोकप्रिय हुये । शिव अपनी शक्ति से संपृक्त हो अर्द्धनारीश्वर बन गए तथा सूर्य और विष्णु का समन्वित रूप सूर्य नारायण कहलाया ।


ओसियों में पहाड़ी पर अवस्थित मन्दिर परिसर में सर्वाधिक लोकप्रिय पर प्रसिद्ध सच्चियायमाता का मन्दिर है । 12वीं शताब्दी ई. के आसपास बना यह भव्य और विशाल मन्दिर महिषमर्दिनी (दुर्गा) को समर्पित है । उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि उस युग में जैन धर्मावलम्बी भी देवी चण्डिका अथवा महिषमर्दिनी की पूजा - अर्चना करने लगे थे तथा उन्होंने उसे प्रतिरक्षक देवी के रूप में स्वीकार कर लिया था परन्तु उन्होंने देवी के उग्र या हिंसक रूप के बजाय उसके ललित एवं शांत स्वरूप की पूजा - अर्चना की । अतः उन्होंने उसे सच्चियाय या सच्चियायमाता कहा ।

ओसियाँ से प्राप्त शिलालेखों, मूर्तिशिल्प और परम्परा से पता चलता है कि महिषमर्दिनी ही वस्तुतः सच्चियायमाता है । इस धारणा की पुष्टि जैन ग्रंथ उपकेश गच्छ पट्टवालकी से होती है, जिसमे उल्लेख है कि जैन धर्म में प्रवेश करने के कारण देवी महिषमर्दिनी ने उग्र रूप का परित्याग कर सच्चिका (सत्यवृति) रूप धारण कर लिया । लोकमान्यता है कि जैन आचार्य रत्नप्रभसूरि ने हिंसक चामुण्डा महिषमर्दिनी को अहिंसक सच्चियायमाता रूप में परिवर्तित कर दिया । 
 
सच्चियायमाता शेताम्बर जैन सम्प्रदाय के ओसवाल समाज की इष्ट देवी या कुलदेवी है । ओसियाँ को ओसवालों का उद्गम स्थल माना जाता है । इस मन्दिर के गर्भगृह में सच्चियायमाता की छोटी किन्तु भव्य स्वरूप की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है । इसके पास मन्दिर के मण्डोवर में देवी के विभिन्न रूपों - चण्डिका, शीतला, क्षेमकरी के अलावा क्षेत्रपाल की सजीव प्रतिमाऐं जड़ी हैं ।


ओसियाँ का सच्चियायमाता मन्दिर लोक आस्था का केन्द्र है । प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं के अलावा बड़ी संख्या में लोग यहाँ विवाह आदि शुभ अवसरों पर जात देने तथा अपने संतान का जडूला उतारने के लिए यहाँ आते है । मारवाड़ में सच्चियायमाता कितनी लोकप्रिय थी इसका अनुमान इस बात से होता है कि मारवाड़ के मालानी क्षेत्र के जूना में भी सच्चियायमाता का एक मन्दिर था । विक्रम संवत 1236 के एक शिलालेख के अनुसार उकेश गच्छ से संबंधित सत्य, शील और क्षमा जैसे गुणों से युक्त एक जैन साध्वी ने अपने तथा दूसरों के कल्याण के लिए सच्चिका देवी की प्रतिष्ठा कराई थी ।

मंदिर से सम्बंधित कुछ चित्र 













































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ओसियाँ की सच्चियायमाता मंदिर

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कुछ उपयोगी जानकारियां 

लोकेशन :-
भारत / राजस्थान / जोधपुर /ओसियाँ

राजस्थान के ओसियाँ कसबे की सच्चियायमाता माता का मंदिर है। माता मंदिर परिसर में प्रवेश करने के लिए, एक भव्यता से मूर्तियों और मेहराब की एक श्रृंखला  हैं। यहाँ अंदर सुंदर  हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। वराह (भगवान विष्णु के वराह अवतार) की एक मूर्ति परिसर के उत्तर भाग में स्थित है और पूर्व में लक्ष्मीजी के साथ भगवन विष्णु की एक छवि है। पश्चिम भाग मूर्तियों से भरा है। मंदिर वास्तुकला का एक सौंदर्य है। यह एक स्थापत्य कलापूर्ण वैभवशैली परिसर है।

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विकिपीडिया के अनुसार जानकारी

सच्चियायमाता माता मंदिर

(विकिपीडिया, मुक्त विश्वकोश से)

ओसियां ​​में सच्चियायमाता माता मंदिर राजस्थान में जोधपुर शहर के पास, ओसियां ​​में स्थित है। इसे सचियाय  देवी या  सच्चिया मातामंदिर भी कहते हैं। सच्चियाय माता मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार के कुल्थिया गोत्र परिवारों की कुलदेवी है एवं उनके द्वारा पूजा  की जाती है इसके अलावा मारवाड़ी माहेश्वरी पंवार राजपूतों, लखेसर कुमावत, ओसवाल, चारण,  जैन, पारीक [ब्राह्मण] समाज और राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तरी भारत द्वारा में रहने वाले कई अन्य जातियों द्वारा भी पूजा की जाती है।  यह मंदिर  9 वीं-10 वीं शताब्दी में परमार राजा उपेन्द्र द्वारा बनाया गया था।



हिंदू पौराणिक इतिहास 

देवी के लिए नाम सच्चियाय की उत्पत्ति इस प्रकार से समझाई  गई  है। देवी सच्ची असुर राजा पुलोमा की बेटी थी। राजा पुलोमा ने एक विशाल राज्य पर शासन किया, जो एक उदार राजा था। वृत्र सेना का प्रमुख था  और सच्ची से विवाह करना चाहता था। वह अपने पिता के एक नौकर से शादी नहीं करना चाहती थी।  लेकिन, सच्ची ने इस प्रस्ताव को अपनई अवमानना मानती है। सच्ची के विचार जानने के बाद वृत्त ने राजा की सेवा छोड़ दी और भगवान शिव की पूजा की। शिव वृत्त को आशीर्वाद दिया की वह ज्ञात हथियार से मारा नहीं जा सकेगा। वृत्त ने अपने एक महान सेना को इकट्ठा किया, और अमरता की इस वरदान के साथ, वह आर्य भूमि जीतने के लिए अधिक से अधिक एक राज्य के बाहर बनाने के लिए निकल पड़ा।
देवराज इंद्र का कर्तव्य था की वह राज्य की रक्षा करे । इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों  से वज्र नाम का एक अस्त्र तैयार कियाजो पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था। इससे ही वृत्तासुर का वध हुआ।




कुलदेवी

Kuldevi of Maidh Kshatriya Swarnkar Community मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की कुलदेवियाँ

श्री रामनारायण सोनी द्वारा लिखित पुस्तक "मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति का इतिहास" में इस समाज की कुलदेवियों का विवरण है। 

कुलदेवी                          उपासक सामाजिक गोत्र

1. अन्नपूर्णा माता  - खराड़ा, गंगसिया, चुवाणा, भढ़ाढरा, महीचाल,रावणसेरा, रुगलेचा।

2. अमणाय माता  - कुझेरा, खीचाणा, लाखणिया, घोड़वाल, सरवाल, परवला।

3. अम्बिका माता  -  कुचेवा, नाठीवाला।

4. आसापुरी माता  -  अदहके, अत्रपुरा, कुडेरिया, खत्री आसापुरा, जालोतिया, टुकड़ा, ठीकरिया, तेहड़वा, जोहड़, नरवरिया, बड़बेचा, बाजरजुड़ा, सिंद, संभरवाल, मोडक़ा, मरान, भरीवाल,  चौहान।

5. कैवाय माता   - कीटमणा, ढोलवा, बानरा, मसाणिया, सींठावत।

6. कंकाली माता  - अधेरे, कजलोया, डोलीवाल, बंहराण, भदलास।

7. कालिका माता  - ककराणा, कांटा, कुचवाल, केकाण, घोसलिया, छापरवाल, झोजा, डोरे, भीवां, मथुरिया, मुदाकलस।

8. काली माता   - बनाफरा

9. कोटासीण माता  -  गनीवाल, जांगड़ा, ढीया, बामलवा, संखवाया, सहदेवड़ा, संवरा।

10. खींवजा माता  -  रावहेड़ा, हरसिया।

11. चण्डी माता   -  जांगला, झुंडा, डीडवाण, रजवास, सूबा।

12. चामुण्डा माता  - उजीणा, जोड़ा, झाट, टांक, झींगा, कुचोरा, ढोमा, तूणवार, धूपड़, भदलिया, बागा, भमेशा, मुलतान, लुद्र, गढ़वाल, गोगड़, चावड़ा, चांवडिया, जागलवा, झीगा, डांवर, सेडूंत।

13. चक्रसीण माता  - चतराणा, धरना, पंचमऊ, पातीघोष, मोडीवाल, सीडा।

14. चिडाय माता  - खीवाण जांटलीवाल, बडग़ोता, हरदेवाण।

15. ज्वालामुखी माता  -  कड़ेल, खलबलिया, छापरड़ा, जलभटिया, देसवाल, बड़सोला, बाबेरवाल, मघरान, सतरावल, सत्रावला, सीगड़, सुरता, सेडा, हरमोरा।

16. जमवाय माता - कछवाहा, कठातला, खंडारा, पाडीवाल,बीजवा, सहीवाल, आमोरा, गधरावा, धूपा, रावठडिय़ा।

17. जालपा माता - आगेचाल, कालबा, खेजड़वाल, गदवाहा, ठाकुर, बंसीवाल, बूट्टण, सणवाल।

18. जीणमाता - तोषावड़, ।

19. तुलजा माता - गजोरा, रुदकी।

20. दधिमथी माता - अलदायण, अलवाण, अहिके,उदावत, कटलस, कपूरे, करोबटन, कलनह, काछवा, कुक्कस, खोर, माहरीवाल।

21. नवदुर्गा माता - टाकड़ा, नरवला, नाबला, भालस।

22. नागणेचा माता - दगरवाल, देसा, धुडिय़ा, सीहरा, सीरोटा।

23. पण्डाय (पण्डवाय) माता - रगल, रुणवाल, पांडस।

24. पद्मावती माता - कोरवा, जोखाटिया, बच्छस, बठोठा, लूमरा।

25. पाढराय माता - अचला।

26. पीपलाज माता - खजवानिया, परवाल, मुकारा।

27. बीजासण माता - अदोक , बीजासण, मंगला, मोडकड़ा, मोडाण, सेरने।

28. भद्रकालिका माता - नारनोली।

29. मुरटासीण माता - जाड़ा, ढल्ला, बनाथिया, मांडण, मौसूण, रोडा।

30. लखसीण माता - अजवाल, अजोरा, अडानिया, छाहरावा, झुण्डवा, डीगडवाल, तेहड़ा, परवलिया, बगे, राजोरिया, लंकावाल, सही, सुकलास, हाबोरा।

31. ललावती माता - कुकसा, खरगसा, खरा, पतरावल, भानु, सीडवा, हेर।

32. सवकालिका माता - ढल्लीवाल, बामला, भंवर, रूडवाल, रोजीवाल, लदेरा, सकट।

33. सम्भराय माता - अडवाल, खड़ानिया, खीपल, गुगरिया, तवरीलिया, दुरोलिया, पसगांगण, भमूरिया।

34. संचाय माता - डोसाणा।

35. सुदर्शनमाता - मलिंडा।

यह विवरण विभिन्न समाजों की प्रतिनिधि संस्थाओं तथा लेखकों द्वारा संकलित एवं प्रकाशित सामग्री पर आधारित है। इसके बारे में प्रबुद्धजनों की सम्मति एवं सुझाव सादर आमन्त्रित हैं। सम्मतियों व सुझावों के परिप्रेक्ष्य में पूरे विवरण का पुन: विश्लेषण कर प्रबुद्धजनों के अवलोकनार्थ प्रस्तुत किया जाएगा। सर्वसम्मत विवरण को शोधग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।
जिन कुलदेवियों के नाम इस विवरण में नहीं हैं उन्हें शामिल करने हेतु सर्वेक्षण-प्रपत्र में विवरण आमन्त्रित है।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

स्तोत्रम्



रचन: आदि शंकराचार्य

अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ १ ॥

कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ २ ॥

नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः ।
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ३ ॥

नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्याम् ।
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ४ ॥

नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्याम् ।
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ५ ॥

पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्याम् ।
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ६ ॥

शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्याम् ।
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ७ ॥

स्वार्चापराणाम् अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्याम् ।
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ८ ॥

कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्याम् ।
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ९ ॥






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आदि शंकराचार्य महाभाग द्वारा रचित

श्री अन्नपूर्णास्तोत्रम् 


नित्यानंदकरी वराभयकरी सौंदर्य रत्नाकरी
निर्धूताखिल घोर पावनकरी प्रत्यक्ष माहेश्वरी ।
प्रालेयाचल वंश पावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १ ॥

नाना रत्न विचित्र भूषणकरि हेमांबराडंबरी
मुक्ताहार विलंबमान विलसत्-वक्षोज कुंभांतरी ।
काश्मीरागरु वासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ २ ॥

योगानंदकरी रिपुक्षयकरी धर्मैक्य निष्ठाकरी
चंद्रार्कानल भासमान लहरी त्रैलोक्य रक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यकरी तपः फलकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ३ ॥

कैलासाचल कंदरालयकरी गौरी-ह्युमाशांकरी
कौमारी निगमार्थ-गोचरकरी-ह्योंकार-बीजाक्षरी ।
मोक्षद्वार-कवाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ४ ॥

दृश्यादृश्य-विभूति-वाहनकरी ब्रह्मांड-भांडोदरी
लीला-नाटक-सूत्र-खेलनकरी विज्ञान-दीपांकुरी ।
श्रीविश्वेशमनः-प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ५ ॥

उर्वीसर्वजयेश्वरी जयकरी माता कृपासागरी
वेणी-नीलसमान-कुंतलधरी नित्यान्न-दानेश्वरी ।
साक्षान्मोक्षकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ६ ॥

आदिक्षांत-समस्तवर्णनकरी शंभोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरा त्रिपुरेश्वरी त्रिनयनि विश्वेश्वरी शर्वरी ।
स्वर्गद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ७ ॥

देवी सर्वविचित्र-रत्नरुचिता दाक्षायिणी सुंदरी
वामा-स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ८ ॥

चंद्रार्कानल-कोटिकोटि-सदृशी चंद्रांशु-बिंबाधरी
चंद्रार्काग्नि-समान-कुंडल-धरी चंद्रार्क-वर्णेश्वरी
माला-पुस्तक-पाशसांकुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ९ ॥

क्षत्रत्राणकरी महाभयकरी माता कृपासागरी
सर्वानंदकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी ।
दक्षाक्रंदकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १० ॥

अन्नपूर्णे सादापूर्णे शंकर-प्राणवल्लभे ।
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थं बिक्बिं देहि च पार्वती ॥ ११ ॥

माता च पार्वतीदेवी पितादेवो महेश्वरः ।
बांधवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ १२ ॥

सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमो‌உस्तु ते ॥ १३ ॥




ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं...

जीवन में कभी समझौता करना पड़े
   तो कोई बड़ी बात नहीं,
क्योंकि,
झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

ज़िन्दगी जीने के दो ही तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!

पहले में: प्रयास है, कयास है.… 
दूसरे में: समझौता है, अनायास है 

जिंदगी जीना आसान नहीं होता; 
बिना संघर्ष कोई,महान नहीं होता.!

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है; 
पर जो हर हाल में खुश रहते हैं; 
जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।

चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ; 
बहुत कुछ बोलो और कुछ ना छुपाओ;

खुद ना रूठो कभी, सबको मनाओ;
राज़ है ये जिंदगी का "बस जीते चले जाओ।"

जो होना है वो होकर रहेगा,
तू कल की फिकर मे
अपना आज बर्बाद न कर...

हंस मरते हुये भी गाता है और
मोर नाचते हुये भी रोता है....
अपनी पसंद का अजीब फंडा है

दुखो वाली रात, नींद नही आती
और
खुशी वाली रात, .कौन सोता है...


ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।


जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं :
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।


जीवन का सबसे बड़ा अपराध - किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि - किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।


जिंदगी जीना आसान नहीं होता;
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता;
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट;
पत्थर भी भगवान नहीं होता।


जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।


मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।


दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे:
दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज - अपने लिए हररात नहीं देता।
फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।


मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।


कभी भी 'कामयाबी' को दिमाग और 'नकामी' को दिल में जगह नहीं देनी चाहिए।
क्योंकि, कामयाबी दिमाग में घमंड और नकामी दिल में मायूसी पैदा करती है।


कौन देता है उम्र भर का सहारा। लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं।


कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए।
यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता?

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Nice Lines By Gulzar Sahab

पानी से तस्वीर कहा बनती है,
ख्वाबों से तकदीर कहा बनती है,
किसी भी रिश्ते को सच्चे दिल से निभाओ,
ये जिंदगी फिर वापस कहा मिलती है
कौन किस से चाहकर दूर होता है,
हर कोई अपने हालातों से मजबूर होता है,c
हम तो बस इतना जानते है,
हर रिश्ता "मोती"और हर दोस्त "कोहिनूर" होता है।

सर्जना अपना साझा मंच 

शनिवार, 5 सितंबर 2015

भजन सरोवर

भजन - भाव 

सुभद्रा सोनी - दुर्गा सोनी 


गुरूजी

राम नाम की नैया लेकर सतगुरु करे पुकार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

जो कोई इस नैया में चढ़ जायेगा
जनम-जनम का मैला मन धुल जाएगा

पाप की गठरी धरी सीस कैसे आऊँ मैं
अपने ही अवगुण से भगवन खुद शरमाऊँ मई

तेरी नैया साँची रे भगवन मेंरे पाप हजार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

कर के कृपा सतगुरुजी ने चूनर रंग डाली
भक्ति भाव की भाषा उसमे लिख डाली

रंग भरी मेरी चुनरिया हो गई लालम-लाल
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

सब कुछ छोड़ दे मेरे हाथों में
साँस साँस सब जोड़ दे मेरे हाथों में

पाप पुण्य का बन कर आया मैं हूँ ठेकेदार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

बड़े भाग्य से सतगुरुजी का प्यार मिला
मानव जीवन जीने का अधिकार मिला

जीव मेरा जब डूबन लागे आ गयो खेवन हार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

राम नाम की नैया लेकर सतगुरु करे पुकार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार


dddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddd

   *राधा का घर अंगना *

राधा का घर अँगना फूलों से महकता है
राधा तेरे शीश का टीका चमकता है
टीके को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरी कानों की झुमकी चमकती है
झुमकी को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरे गले का हरवा चमकता है
हरवे  को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरे हाथों का गजरा महकता है
गजरे को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा  पैरों की पायल झनकती हैं
पायल की रन-झुन से मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरे अंग अंग की साडी  सदी चमकती है
साडी को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm

राधा  के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम

रहे मेरे मुख में सदा तेरा नाम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।

कोई दुनिया की ताकत जुदा न करे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मुझे तो न मरने जीने से काम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
मुझे अपना  तुमने बना ही लिया
कहे तुमको सब ही यशोदा के लाल

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

चाहे मुझको कोई दीवाना कहे
दीवाना कहे या मस्ताना कहे
मुझे तो है प्यारा  प्रभु तेरा नाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

अब चरणो में मुझको बिठा लो प्रभु
और अपने में मुझको मिलालो प्रभु
रटूं तेरा नाम मई सुबह और शाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

कोई दुनिया की ताकत जुदा न करे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मुझे तो न मरने जीने से काम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
मुझे अपना  तुमने बना ही लिया
कहे तुमको सब ही यशोदा के लाल

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

चाहे मुझको कोई दीवाना कहे
दीवाना कहे या मस्ताना कहे
मुझे तो है प्यारा  प्रभु तेरा नाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

अब चरणो में मुझको बिठा लो प्रभु
और अपने में मुझको मिलालो प्रभु
रटूं तेरा नाम मई सुबह और शाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

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ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे

ये द्वारिका नगरी मोहे नेकहुँ ना भावे
मैया तेरे गोकुल की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

मैया तेरी गोदी की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

ये छप्पन प्रकार के भोजन मोहे नेकहुँ न भावे
मैया तेरे माखन की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

ये सोला हजार पटरानी मोहे नेकहुँ न भावे
मैया तेरी राधा की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

ये सोने का पलना मोहे नेकहुँ न भावे
मैया तेरी गोदी की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।



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खिचड़ो 

म्हारा कानूडा गिरधारी, कर्मा बिनती कर कर हारी, बेटी जाट री
बापू दूजे गाँव सिधारो, थारो मन्दरियो सम्भलायो, सरो पूजा ढंग सिखायो  बेटी जाट री।।

बेटी तड़के उठ कर अइयो, म्हारा गिरधर ने न्हवइयो, पूजा करके भोग लगइयो
मीठ पानी से नहलायो, ऊंचे आसान पर बैठाओ, चन्दनं तिलक लगायो, बेटी जाट री

जड़ कर मन्दरिया में ताली, कर्मा गीत गावती चाली, ल्याई खीचड़लो भर थाली
लड़के छाछ राबड़ी ल्याऊं मीठा गुड री खीर बणाऊं, उठ कर गैया को जिमाऊं, बेटी जाट री।।

म्हारी भूल बतादो सारी, क्यूँ थें रूठ्या कुंजबिहारी, म्हाने गली गाल्यां पड़ती खारी
बापू बहार गाओं से आवै, म्हारे मुक्यां से धमकावै,कर्मा आंसूड़ा ढलकावै, बेटी जाट री।।

थारे गर्दन काट चडाऊँ, या मैं जहर खाय मर जाऊं, तो थाने आज जिमाऊं,
पड़दो आड़ में कर- कर दीनो, मोहन खीचड़लो खा लीनो, भोला भगतां दरसन दीनो,बेटी जाट री।।

म्हारा कानूडा गिरधारी, कर्मा बिनती कर कर हारी, बेटी जाट री
बापू दूजे गाँव सिधारो, थारो मन्दरियो सम्भलायो, सरो पूजा ढंग सिखायो  बेटी जाट री।।


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रामायण 


हमें निज धर्म पर चलना,बताती रोज रामायण ।
सदा शुभ आचरण करना ,सिखाती रोज रामायण ।।
जिन्हें संसार सागर से उतर कर पार जाना है ।
उन्हें सुख के किनारे पर लगाती रोज रामायण ।।
कहीं छवि विष्णु की बाँकी कहीं शंकर की है झाँकी ।
हृदय आनन्द झूले पर झुलाती रोज रामायण ।।
सरल कविता की कुंजों मे बना मंदिर है हिन्दी का ।

जहां प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण ।।


22222222222222222222222222222222222222222222222222 


गजानन की होली

मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

ब्रह्मलोक से ब्रह्मा आये, ब्रह्माणी के साथ ,
गौरा मैया के संग आये, तिरलोकी के नाथ ,
मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

सुरपति के संग नारद आये, गावे राग धमार,
वृन्दावन से बाँके-बिहारी, ले वृसभान दुलार,
मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

रिद-सिद लाल-गुलाबी हो रई, आनंद को नहीं पार
मोद-प्रमोद अपार संग में, प्रीत भरी मनुहार
मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

लाल भी मणिमाल गले की, लाल ही कुण्डल कान


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देव वंदना 

पहले पूजूँ गणेश को ब्रह्मा विष्णु महेश को 
नारद को और शेष को सबको मेरा प्रणाम है। 

गौरां को गौरीश को जगन्नाथ जगदीश को 
नाथ द्वारकाधीश को सबको मेरा प्रणाम है। 

रामचन्द्र रघुवीर को लक्ष्मण से रणधीर को 
बजरंगी महावीर को सबको मेरा प्रणाम है। 

नंदराय से दाता को बलदाऊ से भ्राता को 
कृष्णचन्द्र सुखदाता को सबको मेरा प्रणाम है। 

सरस्वती माँ शारदा को श्रीमती यशोदा माता को 
लक्ष्मी को और माया को सबको मेरा प्रणाम है। 

कलकत्ते की काली को चंडी खप्पर वाली को 
बागेश्वरी मतवाली को सबको मेरा प्रणाम है।

वृंदा तुलसी मैया को सूरज शशि और चन्दा को 
सागर सिंधु नंदा को सबको मेरा प्रणाम है। 
  
गंगा मैया रेवा को सरयू  शिप्रा मैया को 
नंदीगण माँ गैया को सबको मेरा प्रणाम है।

मात-पिता गुरुदेव को सास-सुसर पतिदेव को 
घर के सब कुलदेव को सबको मेरा प्रणाम है।


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तेरे जैसा राम भगत

तेरे जैसा राम भगत कोई हुआ ना होगा मतवाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला।

आज अवध की शोभी लगती स्वर्ग लोक से भी प्यारी,
१४ वर्षों बाद राम की राजतिलक की तयारी।
हनुमत के दिल की मत पूछो झूम रहा है मतवाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

रतन जडित हीरो का हार जब लंकापति ने नज़र किया,
राम ने सोचा आभूषण है सीता जी की और किया।
सीता ने हनुमत को दे दिया, इसे पहन मेरे लाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

हार हाथ में ले कर हनुमत गुमा फिरा कर देख रहे,
नहीं समझ में जब आया तब तोड़ तोड़ कर फैंक रहे।
लंकापति मन में पछताया, पड़ा है बंदिर से पाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

लंकापति का धीरज टूटा क्रोध की भड़क उठी ज्वाला,
भरी सभा में बोल उठा क्या पागल हो अंजलि लाला।
अरे हार कीमती तोड़ डाला, पेड़ की डाल समझ डाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

हाथ जोड़ कर हनुमत बोले, मुझे है क्या कीमत से काम,
मेरे काम की चीज वही है, जिस में बसते सीता राम।
राम नज़र ना आया इसमें, यूँ बोले बजरंग बाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

इतनी बात सुनी हनुमत की, बोल उठा लंका वाला,
तेरे में क्या राम बसा है, बीच सभा में कह डाला।
चीर के सीना हनुमत ने सियाराम का दरश करा डाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

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भिलनी 

मीठे लगे तेरे बेर, भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.
कोन नगर से तुम लाई हो ऐसे मीठे बेर
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

प्रेमनगर से हम लाए हैं , ऐसे मीठे बेर।
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

हँस मुस्काए कहत राम जी , खाने पड़ेंगे ये बेर.
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

द्रोणा गिरी परबत पे जा कर, संजीवनी बने बेर।
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर

शक्ती बाण लग्यो लक्ष्मण को, प्राण बचाये बेर।
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

ऊधो 

श्याम बड़े छलिया कुंजन में छोड़ गए ऊधो

जो हम होती जल की मछलियाँ , श्याम करात स्नान
चरण छू लेती रे ऊधो

जो हम होती बेला चमेलिया, श्याम पहनते माल
गले लग जाती रे ऊधो

जो हम होती बाँस की बाँसुरिया, श्याम लगाते अधर
राग बन जाती रे ऊधो

जो हम होती बन की हिरनिया, श्याम चलते बाण
प्राण ताज देती रे ऊधो

ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

गीता ज्ञान

जब तन से निकले प्राण मेरे मुझे गीता ज्ञान सुना देना।
बर्बाद न करना देह मेरी, मुझे यमुना किनारे पहुंचा देना।

जो भकत हो मेरे भगवन का, जो भजन करे मेरे मोहन का।
जहँ किरतन हो मेरे कान्हा का वहँ जा कर सीस झुका देना।

हरी नाम की माला लेकर के हरि भक्तों से जा कर कह देना।
जँह मूरत हो मेरे मोहन की वहां प्रेंम की माला पिना देना।

हरि नाम का डंका लेकर के हरि भक्तों से जा कर कह देना।
मीरा की नैया भवसागर प्रभु आ कर पार लगा देना


ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

राम भजन


दसरथ राज दुलारा हमें तो बड़ा प्यारा लगे
कौसल्या की आँख का तारा हमें तो बड़ा प्यारा लगे.

सीस मुकुट मकराकृत कुण्डल गल बैजंती माला
हमें तो बड़ा प्यारा लगे

छोटे छोटे हाथ में छोटे से धनुष, दानुष का टंकारा
हमें तो बड़ा प्यारा लगे

छोटे छोटे चरणों में छोटी छोटी पायल का झंकारा
हमें तो बड़ा प्यारा लगे

दसरथजी का प्यारा, कौसल्या दुलारा सिया दुल्हनिया वारा
हमें तो बड़ा प्यारा लगे


ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं
मुरली


श्याम तेरी मधुर मुरली, मेरे मन को भाई है
वारि जाऊँ कारीगर पे, ये जिसने बनाई है

मथुरा में जनम लिया, गोकुल में आया है
वारि जाऊँ वृन्दावन पे जहाँ रास रचाया है
श्याम तेरी मधुर मुरली,,,,,,,,






मंगलवार, 11 अगस्त 2015

चिंतन- मनन-दर्शन-सन्देश

चिंतन- मनन-दर्शन-सन्देश


हमारी सोच♻
सामान्य चिंतन का ही परिणाम है। जिस चिंतन से यह उपजा है उसे संक्षेप में यहाँ लिख रहा हूँ :

मस्तिष्क में कई प्रकार की विचारो की शृंखलाएं चलती ही रहती है। सचमुच जन्म से आज ही नहीं, अभी तक।
आइये इसे अध्यात्म के दृष्टि कोण से देखे।  तत्व चिंतामणि में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने बताया है - मानव शरीर के स्थूल, सूक्ष्म शरीर में भेद से अन्तः करण होता है जिसमे सम्मिलित है मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। सबसे ऊपर है चेतन आत्मा।  जिसके कारण हम जीवंत है।
चिंतन और  मनन  की प्रयोगशाला है -अनतःकरण। यहाँ बाहर-भीतर के संसार का अपने अपने अनुसार मंथन चलता है। मन बाहर की सूचना अंदर देता है, बुद्धि उसमें से अच्छे- बुरे की छटनी करके बताती है वो भी मन को एक एग्झामिनर की तरह। मन उसे  माने या न माने। चित्त कम्प्यूटर की  हार्ड -ड्राइव की तरह रिकार्ड करता है। उसको पता है बुद्धि ने क्या काम किया, मन ने क्या किया और क्या नहीं किया।  मित्रों यह जो मैं आपको बता रहा हूँ यह भी इसी तरह की एक प्रक्रिया का नमूना ही है, क्योंकि यह सब जस का तस बयां कर रहा हूँ।

चिंतन : मन , बुद्धि और चित्त में  विचारों के मंथन के बाद जो नवनीत निकालने की प्रक्रिया है वही चिंतन है। सोचिये मंथन एक बार मथानी को हिला देने से नवनीत नहीं बनता वैसे ही सोचने की एक बारगी प्रक्रिया से नहीं बार बार पूरे परिदृश्य का  अवलोकन करने से विषय का सही अंदाजा हो सकता है। गीता में एक शब्द आया है "अनुदर्शन" अर्थात किसी विषय को बार बार देखना। यही चिंतन है।

मनन : चिंतन सम्पूर्ण विषय के विभिन्न बिन्दुओं को सम्यक रूप से देखने से होता है और तब उनमे से मुख्य-मुख्य बिन्दुओं को पकड़- पकड़ कर उनको व्यवहारिक रूप से समन्वय स्थापित करना ही मनन है। मनन से मंथन का पर्यवसान है अर्थात मनन से ही माखन मिलेगा।

दर्शन: भारतीय ऋषि परंपरा और संस्कृति के मूल में विश्व बंधुत्व के महीन सूत्र है जो अपने जीवन के साथ समस्त जगत को कल्याणमय देखना चाहते हैं। जीवन को आनंदमय जीने की कला इसमें भरी पड़ी है। वेद पुराण, उपनिषद, मानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि आदि हमारे जीवन की आचार-संहिताएं हैं। पाश्चात्य केवल जगत के सुख का इंतजाम करता है जबकि हमारी संस्कृति बाहर से अधिक भीतर की  ओर देखती है।

सन्देश :  सन्देश जो हमें महापुरुषों ने दिए हो, सन्देश वो जो हमारे भीतर चिंतन और मन से जन्मे हों, जो हमें आत्मिक उन्नति देते हों और जो विश्व कल्याण की भावना से भरे हों केवल वही काम के है।  असल की नकल करना कोई बुरा नहीं है लेकिन विवेक जागृत रहे।
11/08/2015, 10:47 - soniwwz@gmail.com: संशोधित----!!


♻चिंतन- मनन-दर्शन-सन्देश ♻

हमारी सोच सामान्य चिंतन का ही परिणाम है। इसी चिंतन से जो कुछ  उपजा है उसे संक्षेप में यहाँ लिख रहा हूँ :

मस्तिष्क में कई प्रकार की विचारो की शृंखलाएं चलती ही रहती है।अनवरत।कभी चाहने पर तो कभी अन्तःस्रावी । जब से समझ पकडी तब से आज , और अभी तक।
जरा इसे अध्यात्म के दृष्टि कोण से देखे।
तत्व चिंतामणि में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने बताया है - मानव शरीर के स्थूल, सूक्ष्म शरीर में भेद से अन्तः करण होता है जिसमे सम्मिलित है मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार।
 सबसे ऊपर है चेतन आत्मा।  जिसके कारण हम जीवंत है।

चिंतन और  मनन  की प्रयोगशाला है -अनतःकरण। यहाँ बाहर-भीतर के संसार का सतत मंथन चलता है। मन बाहर की सूचना अंदर देता है, बुद्धि उसमें से अच्छे- बुरे की छटनी करके बताती है, वो भी मन को एक एग्झामिनर की तरह। मन उसे  स्वीकार करता है यह स्वयं पर निर्भर करता है।
चित्त कम्प्यूटर की  हार्ड -ड्राइव की तरह रिकार्ड करता है। उसको पता है बुद्धि ने क्या काम किया, मन ने क्या किया और क्या नहीं किया। इस शरीर मे मन सबसे शातिर घटक है। बुद्धि एक पैड एडवायजर की तरह समझाती भर है जबकि बुद्धि हमारे संपूर्ण जीवन और व्यक्तित्व की निर्णायक है। वास्तव मे बुद्धि सभी मानवों मे जन्म से ही लगभग समान होती है। वह कृपाण की तरह है, धार लगाने से तेज होती है।

चिंतन :
मन , बुद्धि और चित्त में  विचारों के मंथन के बाद जो नवनीत निकालने की प्रक्रिया है वही चिंतन है। एक बार मथानी को हिला देने से नवनीत नहीं बनता वैसे ही सोचने की एक बारगी प्रक्रिया से नहीं बार बार पूरे परिदृश्य का  अवलोकन करने से विषय का सही अंदाजा हो सकता है।  गीता में एक शब्द आया है "अनुदर्शन" अर्थात किसी विषय को बार बार देखना। यही चिंतन है।

मनन :
चिंतन सम्पूर्ण विषय के विभिन्न बिन्दुओं को सम्यक रूप से देखने से होता है और तब उनमे से मुख्य-मुख्य बिन्दुओं को पकड़- पकड़ कर उनको व्यवहारिक रूप से समन्वय स्थापित करना तथा योगिक क्रिया मे _धारणा_ की तरह किया जाआना ही मनन है। मनन से चिंतन का पर्यवसान है अर्थात मनन से ही माखन मिलेगा। चित्त मे पलने वाली सोच चिंतन और मनन से ही दिशा पाती है, पुष्ट होती है।

दर्शन:
भारतीय ऋषि परंपरा और संस्कृति के मूल में विश्व बंधुत्व के महीन सूत्र है गुँथे हुए हैं।जो अपने जीवन के साथ समस्त जगत को कल्याणमय देखना चाहते हैं। जीवन को आनंदमय जीने की कला इसमें भरी पड़ी है। वेद पुराण, उपनिषद, मानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि आदि हमारे जीवन की आचार-संहिताएं हैं।
 पाश्चात्य केवल जगत के बाहरी सुख का इंतजाम करता है जबकि हमारी संस्कृति बाहर से अधिक भीतर की  ओर देखती है। दर्शन और शोध मे एक सूक्ष्म सा अन्तर है। शोध केवल विश्लेषण पर आधारित होती है जबकि दर्शन एक व्यवस्थित संश्लेषण का परिणाम है। जैसे केनवास पर बनाए गए चित्र का विश्लेषण यह है कि वह चित्रकार द्वारा रंगों और तूलिका से बनाया गया उत्पाद है। लेकिन संश्लेषण यह है कि चित्रकार ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति मे तूलिका और रंगों को माध्यम बनाया है जिसका परिणाम वह कृति है।

सन्देश :  सन्देश जो हमें महापुरुषों ने दिए हो, सन्देश वो जो हमारे भीतर चिंतन और मनन से जन्मे हों, जो हमें आत्मिक उन्नति देते हों और जो विश्व कल्याण की भावना से भरे हों केवल वही काम के है।  असल की नकल करना कोई बुरा नहीं है लेकिन विवेक जागृत रहे।


....रामनारायण सोनी

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एक  हट्टा-कट्टा व्यक्ति सामान लेकर स्टेशन पर उतरा। उसनेँ टैक्सी वाले से कहा कि मुझे शिव-मंदिर जाना है।टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे। इस पर आदमी अपना सामान खुद ही उठा कर चल पड़ा । वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा। कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दूरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे? टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये। उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ।टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप शिव मंदिर की विपरीत दिशा मेँ जा रहे हैँ। उस व्यक्ति ने कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया।
इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ से पहले  सोच विचार लेवेँ कि जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ। यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी।

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मंत्र-शब्द-मन
मंत्र में अचित्य शक्ति होती है। हमारा सारा जगत् शब्दमय है। शब्द को ब्रह्म माना गया है। 
मन के तीन कार्य हैं-स्मृति, कल्पना एवं चिन्तन। 
मन प्रतीत की स्मृति करता है, भविष्य की कल्पना करता है और वर्तमान का चिन्तन करता है। 
       ...किन्तु शब्द के बिना न स्मृति होती हैं, न कल्पना होती है और न चिन्तन होता है। सारी स्मृतियां, सारी कल्पनाएं और सारे चिन्तन शब्द के माध्यम से चलते हैं।
हम किसी की स्मृति करते हैं तब तत्काल शब्द की एक आकृति बन जाती है। 
उस आकृति के आधार पर हम स्मृत वस्तु को जान लेते हैं। इसी तरह कल्पना एवं चिन्तन में भी शब्द का बिम्ब ही सहायक होता है। 
यदि मन को शब्द का सहारा न मिले, यदि मन को शब्द की वैशाखी न मिले तो मन चंचल हो नहीं सकता।
मन की चंचलता वास्तव में ध्वनि की, शब्द की या भाषा की चंचलता है। मन को निर्विकल्प बनाने के लिए शब्द की साधना बहुत जरूरी है।
सोचने का अर्थ है-भीतर बोलना। सोचना और बोलना दो नहीं है। सोचने के समय में भी हम बोलते हैं और बोलने के समय में भी हम सोचते हैं। 
यदि हम साधना के द्वारा निर्विकल्प या निर्विचार अवस्था को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें शब्द को समझकर उसके चक्रव्यूह को तोड़ना होगा। 

यह सारा जगत तरंगों से आंदोलित हैं। विचारों की तरंगे, कर्म की तरंगे, भाषा और शब्द की तरंगे पूरे आकाश में व्याप्त है। शक्तिशाली शब्दों का समुच्चय ही मंत्र है। मंत्र शब्दों का विन्यास है। शब्द में असीम शक्ति होती है।

मंत्र के तीन तत्त्व होते हैं -शब्द, संकल्प और साधना। मंत्र का पहला तत्त्व है- शब्द। शब्द मन के भावों को वहन करता है। मन के भाव शब्द के वाहन पर चढ़कर यात्रा करते हैं। कोई विचार सम्प्रेषण का प्रयोग करे, कोई सजेशन या ऑटोसजेशन का प्रयोग करे, उसे सबसे पहले ध्वनि का, शब्द का सहारा लेना पड़ता है।


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मदालसा आख्यान[सम्पादन]

रानी मदालसा अपने पहले पुत्र को बचपन से ही वे संस्कार देने शुरू कर दिए जो वास्तविक विद्या है। आज हम जो विद्या ग्रहण करने पर जोर देते हैं या ले रहे है वह विद्या नहीं अविद्या है। सा विद्या या विमुक्तये, ये जीवन का लक्ष नहीं जो अपनाते हुए कदाचार कर रहे हैं । मदालसा के उपदेश से बालक विरक्त होकर जंगल में चला गया। दूसरा पुत्र हुआ उसे भी मदालसा ने वास्तविक विद्या दी , वह भी चला गया। इस तरह क्रमशः ४ पुत्र सन्यासी हो गए। जब पांचवां गर्भ आया तो राजा ने कहा प्रिये ! अब होने वाली संतान को वह विद्या मत देना, हमें उत्तराधिकारी चाहिए। पति के आदेश पर पांचवें पुत्र को मोह-लोभ , राग द्वेष के साथ राजयोग की शिक्षा दी। वह बड़ा हुआ आश्रम व्यवस्था के तहत राजा रानी ने पुत्र का राज्याभिषेक कर संन्यास आश्रम में जाने का विचार किया। रानी मदालसा ने पुत्र को एक अंगूठी दी और कहा कि इसमें उपदेश-पत्र रखा है। जीवन में जब भारी संकट आये कोई सहारा न दिखे तब अंगूठी से उपदेश-पत्र निकल कर पढ़ लेना। यह कहकर राजा रानी जंगल में चले गए। मदालसा के पुत्र ने १००० वर्ष शासन किया प्रजा खुशहाल थी। काशी नरेश ने आक्रमण कर दिया भयंकर युद्ध में मदालसा का पुत्र हर गया वह बीवी -बचों को छोड़कर अपनी जान बचाते हुए भाग खडा हुआ। जंगल में बेहाल वह घास फूस खाकर समय काटने लगा। उसे याद आया माँ ने कहा था - जीवन में जब भारी संकट आये कोई सहारा न दिखे तब अंगूठी से उपदेश-पत्र निकल कर पढ़ लेना। उसने तत्काल उपदेश-पत्र निकाला , जिसमें १ श्लोक था , भावार्थ इस तरह है- संग (आसक्ति) सर्वथा त्याज्य है यदि संग त्यागना मुश्किल हो तो सतसंग करो, कामना सर्वथा त्याज्य है यदि संभव न हो तो मोक्ष की कामना करो। उक्त उपदेश ही हम सभी लोगों को विद्या- अविद्या का भेद बताता है। उक्त मदालसा उपाख्यान को पढ़ें, गुनें यही आत्मतत्व का सार है।

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दोषी कौन ?

एक पौराणिक आख्यान --

विधवा ब्राह्मणी का बच्चा सांप के काटने से मर गया । तत्काल लोगों ने सांप को पकर लिया । सांप वोला - मैं दोषी नहीं हूँ , मैंने किसी की प्रेरणा से कटा। प्रश्न - किसकी प्रेरणा से ? जवाब- यम की। तत्काल यम का आवाहन हुआ , वह बोला-मैं दोषी नहीं हूँ , मैंने किसी की प्रेरणा से सांप को प्रेरित किया। प्रश्न - किसकी प्रेरणा से ? जवाब- काल की। तत्काल काल का आवाहन हुआ , वह बोला-मैं दोषी नहीं हूँ , मैंने किसी की प्रेरणा से यम को प्रेरित किया। प्रश्न - किसकी प्रेरणा से ?जवाब- इस बच्चे के कर्मो की।

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विकल्प ने किया संकल्प का सत्यानाश

दर्शन-शास्त्र के अनुसार संकल्प ही प्रमुख हैं जब कि विकल्प किसी भी प्राणी को उसके गंतव्य तक नहीं पंहुचा सकते । संकल्प से दृढ इच्छा शक्ति का प्रादुर्भाव होता हैं ओर प्राणी अपने संकल्प को पूरा करने के लिए जी जान लगा देता हैं जबकि विकल्प इच्छा-शक्ति को कमजोर कर हारे पै हरि नाम का दृष्टिकोण बनाकर विकल्पों को सामने रख लेता हैं ओर कभी भी गंतव्य तक पंहुचने की इच्छा-शक्ति जागृत नहीं कर पाता ।

२१ वी शताब्दी के इस दौर में जब कि कंप्यूटर क्रान्ति का युग चल रहा हैं ऐसे में युवापीढ़ी को राष्ट्र उत्थान कि दिशा में संकल्प पूर्वक दृढ इच्छा-शक्ति के साथ आगे बदना चाहिए जबकि युवापीढ़ी अपने मनोबल को कमजोर करते हुए विकल्पों के आधार पर ऊपर बढ़ने की वजाय नीचे की ओर गिरती जा रही हैं ऐसे में भला राष्ट्रका उत्थान कैसे हो सकता हैं ? प्रत्येक अभिभावक अपनी संतान के उज्जवल भविष्य की कल्पना करते हुए उसकी अभिरुचि के अनुरूप शिक्षित करने का प्रयास करता हैं और उस दिशा में ऊँची से ऊँची डिग्री हासिल कराता हैं भले ही हाई मैरिट के लिए नक़ल माफियाओं के माध्यम से कितने ही पापड भी बेलता हैं , लेकिन उसके सारे ख्वाब तब चूर-चूर हो जाते हैं जब हाई एजुकशन प्राप्त करने के बाद भी उसका बेटा किसी inter कॉलेज में घंटा बजाने का काम करने लगता हैं और वह भी ५ लाख देने के बाद। इन दिनों BTC की प्रक्रिया पूरे प्रदेश में चल रही है। मैरिट के आधार पर चयन हो रहा है, जिसमें ऐसे प्रतिभागी चयनित हो रहे हैं जो अपने कैरियर के अनुरूप डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बनकर देश सेवा कर सकते थे मगर अब abc और १२३, अबस में ही सिमट कर क्या ख़ाक कर पायेंगे? बेरोजगारी के दौर की दुहाई देकर अपने से कमजोर वर्ग का हक़ मारना कहाँ का न्याय है? जब BTC की अर्हता स्नातक तो सिर्फ स्नातक को ही इस पद के अनुरूप अर्ह माना जाना चाहिए, कम या ज्यादा नहीं।


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शरीर है कंप्यूटर

२१ वीं सताब्दी कंप्यूटर क्रांति व सूचना प्रौद्योगिकी की चरम शताब्दी है, यदि दार्शनिक अंदाज में आध्यात्मिक रूप से परिभाषित करें तो भारतीय दर्शन आसानी से समझ में आ सकता है। मानव एक कंप्यूटर है- सगुणात्मक तत्व हार्डवेयर है, जिसके अंतर्गत हैं इन्द्रियां, त्वचा, रक्त, मज्जा, अस्थि आदि। निर्गुनात्मक तत्व साफ्टवेयर है, जिसके अंतर्गत हैं मन, बुद्धि, आत्मा, अहंकार आदि। शरीर में मस्तिष्क हार्डडिस्क है, और सारा दारोमदार इसी पर होता है । हार्ड डिस्क को नमी व डस्ट से बचाने को ac या air tite कक्ष की व्यवस्था की जाती है, ईश्वर ने मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए सर पर बाल दिए, शास्त्रों ने और ठंडा रखने हेतु चंदन लेपन की व्यवस्था दी, फ़िर भी धूप और शीत से वचाव हेतु सर ढांके रखने की आवश्यकता महसूस की गयी । अधिक तापमान में सिस्टम हंग होने लगता है और उसी तरह दिमाग भी काम करना बंद कर देता है। कभी-कभी बात करते बक्त व्यक्ति भूल जाता है कि वह क्या कह रहा था? यही तो हंग होना है। जिस तरह हार्ड डिस्क अलग-अलग मैमोरी की होती है उसी तरह मस्तिष्क की भी क्षमता और गति भिन्न-भिन्न है, हार्ड डिस्क का फेल होना ही ब्रेन हेमरेज है। यदि इलाज से सुधर हो गया तो ठीक, वरना मृत्यु। सगुणात्मक तत्व हार्डवेयर की सारी गतिविधि निर्गुनात्मक तत्व साफ्टवेयर पर निर्भर है, यानि सभी १० इन्द्रियां पूरी तरह मन के अनुसार चलतीं हैं । मन बुद्धि को प्रभावित करता है , आत्मा मुख्य रूप से कंप्यूटर की विंडो है। कर्मेन्द्रियों-ज्ञानेन्द्रियों के प्रत्येक क्रिया कलाप व अनुभूति मस्तिष्क रूपी हार्ड डिस्क की मैमोरी में save रहती है यानि स्मृति पटल पर अंकित रहती है। वाइरस- जिस तरह से वाइरस कंप्यूटर को निष्क्रिय कर देता है, उसी तरह संशय, भ्रम और गलतफहमी जैसे वाइरस मानव-जीवन को बर्वाद कर देते हैं। वाइरस विभिन्न computers में प्रयोग की गई फ्लापी, सीडी, पेन ड्राइव या इंटरनेट से आता है, और दूषित मानसिकता वाले लोगों से मिलने-जुलने, कानाफूसी होने से दिमागी वाइरस आते हैं। वाइरस नष्ट करने को एंटी वाइरस स्कैन करना होता है उसी तरह सत्संग, धर्म-शास्त्रों के अध्ययन व चिंतन रूपी स्कैनिंग से संशय, भ्रम और गलतफहमी जैसे तनाव-वाइरस नष्ट होते हैं। समझदार लोग निरंतर करते रहते है सत्संग, धर्म-शास्त्रों के अध्ययन व चिंतन रूपी एंटी वाइरस करते रहते हैं, उनका मस्तिष्क तनावमुक्त रहता है।


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4. संवर्धिनी - महिला सहभाग:
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, ‘‘शक्ति के बिना विश्व का पुनरुत्थान संभव नहीं है। ऐसा क्यों है कि हमारा देश सभी देशों में कमजोर और पिछड़ा हुआ है?- क्योंकि यहां शक्ति का अपमान होता है। शक्ति की कृपा के बिना कुछ भी साध्य नहीं होगा।’’
अतः महिलाओं के माध्यम से संस्कृति के संर्वद्धन सुरक्षा व सम्पे्रषण के लिए तथा उनकी सहभागिता को बढ़़ाने के उद्देश्य से समाज के विभिन्न स्तरों में सहभागिता, सेवा, विकास, संस्कृति तथा समरसता को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित हांेगे।

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जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं। या तुम कह सकते हो कि जीवन खुला रहस्य है। सब कुछ उपलब्ध है, कुछ भी छिपा नहीं है। तुम्हारे पास देखने की आंख भर होनी चाहिए। 
जीवन किसी भी तरह से गुह्य रहस्य नहीं है। यह हर पेड़-पौधे पर लिखा है, सागर की एक-एक लहर पर लिखा है; सूरज की हर किरण में यह समाया है- चारों तरफ जीवन के हर खूबसूरत आयाम में। और जीवन तुम से डरता नहीं है, इसलिए उसे छुपने की जरूरत ही क्या है?
यह जीवन की बहुत बड़ी जरूरत है- यदि तुम समझ सको कि अतीत अब कहीं नहीं है। इसके बाहर हो जाओ, बाहर हो जाओ! यह समाप्त हो चुका है। अध्याय को बंद करो, इसे ढोये मत जाओ! और तब जीवन तुम्हें उपलब्ध है। 
अभी के द्वार में प्रवेश करो और सब कुछ उदघाटित हो जाता है- तत्काल खुल जाता है, इसी क्षण प्रकट हो जाता है। जीवन कंजूस नहीं है। यह कभी भी कुछ भी नहीं छुपाता है, यह कुछ भी पीछे नहीं रोकता है। यह सब कुछ देने को तैयार है, पूर्ण और बेशर्त। लेकिन तुम तैयार नहीं हो।

ओशो 

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जिंदगी की कहानी

टॉल्सटॉय की प्रसिद्ध कहानी है......

एक आदमी साइबेरिया पहुँचा तो उसने पूछा कि मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ। लोगों ने कहा, हमारे पास एक ही तरीका है बेचने का कि कल सुबह सूरज के ऊगते तुम निकल पड़ना और साँझ सूरज के डूबते तक जितनी जमीन तुम घेर सको घेर लेना।  जितनी जमीन तुम चल लोगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी।बस यही शर्त है। 
वह आदमी सुबह उठते ही भागा। उसने सोचा एक ही दिन की तो बात है, और जरा तेजी से दौड़ लूँगा। सारी ताकत लगा दी। पागल होकर दौड़ा। सूरज डूबने लगा वह लौट पड़ा। जहाँ से चला था वह जगह ज्यादा दूरी भी नहीं रह गई। इधर सूरज डूब रहा है, उधर भाग रहा है...। सूरज डूबते-डूबते बस जाकर गिर पड़ा। खूँटी थोड़ी सी दूरी रह गई , घिसटने लगा। और जब उसका हाथ उस उस खूँटी पर पड़ा, सूरज डूब गया, वह आदमी भी मर गया।
 कहानी सबकी जिंदगी की कहानी है। सब दौड़ रहे हैं। न भूख की फिक्र है, न प्यास की। जीने का समय कहाँ है? फिर जी लेंगे, और कभी कोई नहीं जी पाता। 

जीने के लिए थोड़ी विश्रांति चाहिए। जीवन का बोध चाहिए। समझ में आ जावे तो समझना की अभी देर नहीं हुई है। 

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