सोमवार, 28 सितंबर 2015

ओसियाँ की सच्चियायमाता

ओसियाँ की सच्चियायमाता
















सच्चियाय अथवा सच्चियायमाता का भव्य और प्रसिद्ध मन्दिर जोधपुर से लगभग 60 की.मी. दूर ओसियाँ में स्थित है । ओसियाँ पुरातात्विक महत्व का एक प्राचीन नगर है । इसका प्राचीन नाम उकेश था जिसका अपभ्रंश कालान्तर में ओसियाँ हो गया ।

ओसियाँ में वैष्णव, शैव, देवी (शक्ति) और जैन मन्दिर साथ-साथ बने । वैष्णव और शैव मतों की उदारता तथा सहिष्णुता के परिणामस्वरूप विष्णु तथा शिव के संयुक्त रूप हरिहर लोकप्रिय हुये । शिव अपनी शक्ति से संपृक्त हो अर्द्धनारीश्वर बन गए तथा सूर्य और विष्णु का समन्वित रूप सूर्य नारायण कहलाया ।


ओसियों में पहाड़ी पर अवस्थित मन्दिर परिसर में सर्वाधिक लोकप्रिय पर प्रसिद्ध सच्चियायमाता का मन्दिर है । 12वीं शताब्दी ई. के आसपास बना यह भव्य और विशाल मन्दिर महिषमर्दिनी (दुर्गा) को समर्पित है । उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि उस युग में जैन धर्मावलम्बी भी देवी चण्डिका अथवा महिषमर्दिनी की पूजा - अर्चना करने लगे थे तथा उन्होंने उसे प्रतिरक्षक देवी के रूप में स्वीकार कर लिया था परन्तु उन्होंने देवी के उग्र या हिंसक रूप के बजाय उसके ललित एवं शांत स्वरूप की पूजा - अर्चना की । अतः उन्होंने उसे सच्चियाय या सच्चियायमाता कहा ।

ओसियाँ से प्राप्त शिलालेखों, मूर्तिशिल्प और परम्परा से पता चलता है कि महिषमर्दिनी ही वस्तुतः सच्चियायमाता है । इस धारणा की पुष्टि जैन ग्रंथ उपकेश गच्छ पट्टवालकी से होती है, जिसमे उल्लेख है कि जैन धर्म में प्रवेश करने के कारण देवी महिषमर्दिनी ने उग्र रूप का परित्याग कर सच्चिका (सत्यवृति) रूप धारण कर लिया । लोकमान्यता है कि जैन आचार्य रत्नप्रभसूरि ने हिंसक चामुण्डा महिषमर्दिनी को अहिंसक सच्चियायमाता रूप में परिवर्तित कर दिया । 
 
सच्चियायमाता शेताम्बर जैन सम्प्रदाय के ओसवाल समाज की इष्ट देवी या कुलदेवी है । ओसियाँ को ओसवालों का उद्गम स्थल माना जाता है । इस मन्दिर के गर्भगृह में सच्चियायमाता की छोटी किन्तु भव्य स्वरूप की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है । इसके पास मन्दिर के मण्डोवर में देवी के विभिन्न रूपों - चण्डिका, शीतला, क्षेमकरी के अलावा क्षेत्रपाल की सजीव प्रतिमाऐं जड़ी हैं ।


ओसियाँ का सच्चियायमाता मन्दिर लोक आस्था का केन्द्र है । प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं के अलावा बड़ी संख्या में लोग यहाँ विवाह आदि शुभ अवसरों पर जात देने तथा अपने संतान का जडूला उतारने के लिए यहाँ आते है । मारवाड़ में सच्चियायमाता कितनी लोकप्रिय थी इसका अनुमान इस बात से होता है कि मारवाड़ के मालानी क्षेत्र के जूना में भी सच्चियायमाता का एक मन्दिर था । विक्रम संवत 1236 के एक शिलालेख के अनुसार उकेश गच्छ से संबंधित सत्य, शील और क्षमा जैसे गुणों से युक्त एक जैन साध्वी ने अपने तथा दूसरों के कल्याण के लिए सच्चिका देवी की प्रतिष्ठा कराई थी ।

मंदिर से सम्बंधित कुछ चित्र 













































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ओसियाँ की सच्चियायमाता मंदिर

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कुछ उपयोगी जानकारियां 

लोकेशन :-
भारत / राजस्थान / जोधपुर /ओसियाँ

राजस्थान के ओसियाँ कसबे की सच्चियायमाता माता का मंदिर है। माता मंदिर परिसर में प्रवेश करने के लिए, एक भव्यता से मूर्तियों और मेहराब की एक श्रृंखला  हैं। यहाँ अंदर सुंदर  हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। वराह (भगवान विष्णु के वराह अवतार) की एक मूर्ति परिसर के उत्तर भाग में स्थित है और पूर्व में लक्ष्मीजी के साथ भगवन विष्णु की एक छवि है। पश्चिम भाग मूर्तियों से भरा है। मंदिर वास्तुकला का एक सौंदर्य है। यह एक स्थापत्य कलापूर्ण वैभवशैली परिसर है।

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विकिपीडिया के अनुसार जानकारी

सच्चियायमाता माता मंदिर

(विकिपीडिया, मुक्त विश्वकोश से)

ओसियां ​​में सच्चियायमाता माता मंदिर राजस्थान में जोधपुर शहर के पास, ओसियां ​​में स्थित है। इसे सचियाय  देवी या  सच्चिया मातामंदिर भी कहते हैं। सच्चियाय माता मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार के कुल्थिया गोत्र परिवारों की कुलदेवी है एवं उनके द्वारा पूजा  की जाती है इसके अलावा मारवाड़ी माहेश्वरी पंवार राजपूतों, लखेसर कुमावत, ओसवाल, चारण,  जैन, पारीक [ब्राह्मण] समाज और राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तरी भारत द्वारा में रहने वाले कई अन्य जातियों द्वारा भी पूजा की जाती है।  यह मंदिर  9 वीं-10 वीं शताब्दी में परमार राजा उपेन्द्र द्वारा बनाया गया था।



हिंदू पौराणिक इतिहास 

देवी के लिए नाम सच्चियाय की उत्पत्ति इस प्रकार से समझाई  गई  है। देवी सच्ची असुर राजा पुलोमा की बेटी थी। राजा पुलोमा ने एक विशाल राज्य पर शासन किया, जो एक उदार राजा था। वृत्र सेना का प्रमुख था  और सच्ची से विवाह करना चाहता था। वह अपने पिता के एक नौकर से शादी नहीं करना चाहती थी।  लेकिन, सच्ची ने इस प्रस्ताव को अपनई अवमानना मानती है। सच्ची के विचार जानने के बाद वृत्त ने राजा की सेवा छोड़ दी और भगवान शिव की पूजा की। शिव वृत्त को आशीर्वाद दिया की वह ज्ञात हथियार से मारा नहीं जा सकेगा। वृत्त ने अपने एक महान सेना को इकट्ठा किया, और अमरता की इस वरदान के साथ, वह आर्य भूमि जीतने के लिए अधिक से अधिक एक राज्य के बाहर बनाने के लिए निकल पड़ा।
देवराज इंद्र का कर्तव्य था की वह राज्य की रक्षा करे । इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों  से वज्र नाम का एक अस्त्र तैयार कियाजो पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था। इससे ही वृत्तासुर का वध हुआ।




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