हमारे अतिविशिष्ट अतिथि
माननीय संतोष जड़िया
भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है । इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं । हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है । मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पाये, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है । भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है । सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।
भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र् के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस, स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार आदि का विशेष महत्त्व रहा है।
संस्कृति का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो । व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है।
ये मानवता के पोषक हैं, समर्पित साधक हैं, सनातन संस्कृति के युग संवाहक हैं। इनका समस्त जीवन त्यागमय होता है। ईश्वर ने जगत का सृजन किया, सृजन में ईशत्व है और इस कर्मभूमि में जो सृजक हैं वे वास्तव में ईश्वर की वरद स्वरुप विभूतियाँ है।
हमारा यह प्रयास है की हम इन विभूतियों को, उनके संघर्ष को, उनकी मानवता के प्रति समर्पित भावनाओं को, उनमें समाज को सदैव देने के भाव को और उनके आदर्शों को जन जन तक पहुंचाने का है।
इस श्रंखला में सर्व प्रथम एक समर्पित कलाकार माननीयसंतोष जड़िया के जीवन और व्यक्तित्व परिचय यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। उनसे डॉ. रमेश सोनी, अरविन्द सोनी और रामनारायण सोनी की बातचीत के कुछ अंश उद्धरित किये जा रहे हैं।
भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र् के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस, स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार आदि का विशेष महत्त्व रहा है।
संस्कृति का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो । व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है।
ये मानवता के पोषक हैं, समर्पित साधक हैं, सनातन संस्कृति के युग संवाहक हैं। इनका समस्त जीवन त्यागमय होता है। ईश्वर ने जगत का सृजन किया, सृजन में ईशत्व है और इस कर्मभूमि में जो सृजक हैं वे वास्तव में ईश्वर की वरद स्वरुप विभूतियाँ है।
हमारा यह प्रयास है की हम इन विभूतियों को, उनके संघर्ष को, उनकी मानवता के प्रति समर्पित भावनाओं को, उनमें समाज को सदैव देने के भाव को और उनके आदर्शों को जन जन तक पहुंचाने का है।
इस श्रंखला में सर्व प्रथम एक समर्पित कलाकार माननीयसंतोष जड़िया के जीवन और व्यक्तित्व परिचय यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। उनसे डॉ. रमेश सोनी, अरविन्द सोनी और रामनारायण सोनी की बातचीत के कुछ अंश उद्धरित किये जा रहे हैं।
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