बुधवार, 30 सितंबर 2015

ओन लाइन प्रतियोगिता

सोशल ग्रुप के सर्जना मंच द्वारा घर बैठे प्रतियोगिता में भाग लेने का अनूठा प्रयोग है। इसमें इलेक्ट्रानिक मीडिया का भरपूर उपयोग किया जावेगा।

ओन लाइन प्रतियोगिता के विषय में कुछ नियम :-
१. यह एक रिमोटवर्क है, प्रतियोगी जहाँ है वहीँ से भाग लेगा
२. उसे पहले मंच पर रजिस्टर कराकर एनरोलमेंट नं. अलाट होगा
३. प्रतियोगिता का विषय मंच द्वारा २ घंटे पूर्व वाट्स एप पर जारी होगा
४. प्रतियोगी को ब्लेंक कैनवास, ड्राइंग शीट का नाम दिनांक आदि क चित्र मोबाइल/ कैमरा आदि से खींच कर मंच को वाट्सएप अथवा मेल करना होगा
५. प्रतियोगिता पूर्ण होने पर उसी दिन १५ मिनिट के भीतर रचना का फोटो मंच को प्रेषित करना होगा
७. मंच में नियुक्त जजों द्वारा प्रथम, द्वितीय तृतीय आदि की घोषणा ३ घंटे में निश्चित करके वाट्सएप पर प्रसारित कर दी जावेगी
८. विजेता को चिन्हित रचना फिजिकली मंच को भेजना होगा जिसका जजेस सत्यापन करेंगे।
९. विजेता को श्री स्वर्णकार सोशल ग्रुप अपने विशिष्ट कार्यक्रम में अथवा डाक द्वारा सम्मान प्रतीक/ प्रमाणपत्र प्रदान करेगा

नोट:- अगर प्रतियोगिता सफल तरीके से संपन्न हुई तो आगे साहित्य की विधाओं में भी ऑनलाइन प्रतियोगिताएँ आयोजित की जावेगी।
उक्त नियम प्रस्तावित हैं। उपयुक्त सुझाव प्राप्त होने पर इसमें संसोधन किया जा सकेगा।
नोट:- अगर प्रतियोगिता सफल तरीके से संपन्न हुई तो आगे साहित्य की विधाओं में भी ऑनलाइन प्रतियोगिताएँ आयोजित की जावेगी।
उक्त नियम प्रस्तावित हैं। उपयुक्त सुझाव प्राप्त होने पर इसमें संसोधन किया जा सकेगा। 

सोमवार, 28 सितंबर 2015

ओसियाँ की सच्चियायमाता

ओसियाँ की सच्चियायमाता
















सच्चियाय अथवा सच्चियायमाता का भव्य और प्रसिद्ध मन्दिर जोधपुर से लगभग 60 की.मी. दूर ओसियाँ में स्थित है । ओसियाँ पुरातात्विक महत्व का एक प्राचीन नगर है । इसका प्राचीन नाम उकेश था जिसका अपभ्रंश कालान्तर में ओसियाँ हो गया ।

ओसियाँ में वैष्णव, शैव, देवी (शक्ति) और जैन मन्दिर साथ-साथ बने । वैष्णव और शैव मतों की उदारता तथा सहिष्णुता के परिणामस्वरूप विष्णु तथा शिव के संयुक्त रूप हरिहर लोकप्रिय हुये । शिव अपनी शक्ति से संपृक्त हो अर्द्धनारीश्वर बन गए तथा सूर्य और विष्णु का समन्वित रूप सूर्य नारायण कहलाया ।


ओसियों में पहाड़ी पर अवस्थित मन्दिर परिसर में सर्वाधिक लोकप्रिय पर प्रसिद्ध सच्चियायमाता का मन्दिर है । 12वीं शताब्दी ई. के आसपास बना यह भव्य और विशाल मन्दिर महिषमर्दिनी (दुर्गा) को समर्पित है । उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि उस युग में जैन धर्मावलम्बी भी देवी चण्डिका अथवा महिषमर्दिनी की पूजा - अर्चना करने लगे थे तथा उन्होंने उसे प्रतिरक्षक देवी के रूप में स्वीकार कर लिया था परन्तु उन्होंने देवी के उग्र या हिंसक रूप के बजाय उसके ललित एवं शांत स्वरूप की पूजा - अर्चना की । अतः उन्होंने उसे सच्चियाय या सच्चियायमाता कहा ।

ओसियाँ से प्राप्त शिलालेखों, मूर्तिशिल्प और परम्परा से पता चलता है कि महिषमर्दिनी ही वस्तुतः सच्चियायमाता है । इस धारणा की पुष्टि जैन ग्रंथ उपकेश गच्छ पट्टवालकी से होती है, जिसमे उल्लेख है कि जैन धर्म में प्रवेश करने के कारण देवी महिषमर्दिनी ने उग्र रूप का परित्याग कर सच्चिका (सत्यवृति) रूप धारण कर लिया । लोकमान्यता है कि जैन आचार्य रत्नप्रभसूरि ने हिंसक चामुण्डा महिषमर्दिनी को अहिंसक सच्चियायमाता रूप में परिवर्तित कर दिया । 
 
सच्चियायमाता शेताम्बर जैन सम्प्रदाय के ओसवाल समाज की इष्ट देवी या कुलदेवी है । ओसियाँ को ओसवालों का उद्गम स्थल माना जाता है । इस मन्दिर के गर्भगृह में सच्चियायमाता की छोटी किन्तु भव्य स्वरूप की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है । इसके पास मन्दिर के मण्डोवर में देवी के विभिन्न रूपों - चण्डिका, शीतला, क्षेमकरी के अलावा क्षेत्रपाल की सजीव प्रतिमाऐं जड़ी हैं ।


ओसियाँ का सच्चियायमाता मन्दिर लोक आस्था का केन्द्र है । प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं के अलावा बड़ी संख्या में लोग यहाँ विवाह आदि शुभ अवसरों पर जात देने तथा अपने संतान का जडूला उतारने के लिए यहाँ आते है । मारवाड़ में सच्चियायमाता कितनी लोकप्रिय थी इसका अनुमान इस बात से होता है कि मारवाड़ के मालानी क्षेत्र के जूना में भी सच्चियायमाता का एक मन्दिर था । विक्रम संवत 1236 के एक शिलालेख के अनुसार उकेश गच्छ से संबंधित सत्य, शील और क्षमा जैसे गुणों से युक्त एक जैन साध्वी ने अपने तथा दूसरों के कल्याण के लिए सच्चिका देवी की प्रतिष्ठा कराई थी ।

मंदिर से सम्बंधित कुछ चित्र 













































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ओसियाँ की सच्चियायमाता मंदिर

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कुछ उपयोगी जानकारियां 

लोकेशन :-
भारत / राजस्थान / जोधपुर /ओसियाँ

राजस्थान के ओसियाँ कसबे की सच्चियायमाता माता का मंदिर है। माता मंदिर परिसर में प्रवेश करने के लिए, एक भव्यता से मूर्तियों और मेहराब की एक श्रृंखला  हैं। यहाँ अंदर सुंदर  हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। वराह (भगवान विष्णु के वराह अवतार) की एक मूर्ति परिसर के उत्तर भाग में स्थित है और पूर्व में लक्ष्मीजी के साथ भगवन विष्णु की एक छवि है। पश्चिम भाग मूर्तियों से भरा है। मंदिर वास्तुकला का एक सौंदर्य है। यह एक स्थापत्य कलापूर्ण वैभवशैली परिसर है।

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विकिपीडिया के अनुसार जानकारी

सच्चियायमाता माता मंदिर

(विकिपीडिया, मुक्त विश्वकोश से)

ओसियां ​​में सच्चियायमाता माता मंदिर राजस्थान में जोधपुर शहर के पास, ओसियां ​​में स्थित है। इसे सचियाय  देवी या  सच्चिया मातामंदिर भी कहते हैं। सच्चियाय माता मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार के कुल्थिया गोत्र परिवारों की कुलदेवी है एवं उनके द्वारा पूजा  की जाती है इसके अलावा मारवाड़ी माहेश्वरी पंवार राजपूतों, लखेसर कुमावत, ओसवाल, चारण,  जैन, पारीक [ब्राह्मण] समाज और राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तरी भारत द्वारा में रहने वाले कई अन्य जातियों द्वारा भी पूजा की जाती है।  यह मंदिर  9 वीं-10 वीं शताब्दी में परमार राजा उपेन्द्र द्वारा बनाया गया था।



हिंदू पौराणिक इतिहास 

देवी के लिए नाम सच्चियाय की उत्पत्ति इस प्रकार से समझाई  गई  है। देवी सच्ची असुर राजा पुलोमा की बेटी थी। राजा पुलोमा ने एक विशाल राज्य पर शासन किया, जो एक उदार राजा था। वृत्र सेना का प्रमुख था  और सच्ची से विवाह करना चाहता था। वह अपने पिता के एक नौकर से शादी नहीं करना चाहती थी।  लेकिन, सच्ची ने इस प्रस्ताव को अपनई अवमानना मानती है। सच्ची के विचार जानने के बाद वृत्त ने राजा की सेवा छोड़ दी और भगवान शिव की पूजा की। शिव वृत्त को आशीर्वाद दिया की वह ज्ञात हथियार से मारा नहीं जा सकेगा। वृत्त ने अपने एक महान सेना को इकट्ठा किया, और अमरता की इस वरदान के साथ, वह आर्य भूमि जीतने के लिए अधिक से अधिक एक राज्य के बाहर बनाने के लिए निकल पड़ा।
देवराज इंद्र का कर्तव्य था की वह राज्य की रक्षा करे । इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों  से वज्र नाम का एक अस्त्र तैयार कियाजो पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था। इससे ही वृत्तासुर का वध हुआ।




कुलदेवी

Kuldevi of Maidh Kshatriya Swarnkar Community मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की कुलदेवियाँ

श्री रामनारायण सोनी द्वारा लिखित पुस्तक "मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति का इतिहास" में इस समाज की कुलदेवियों का विवरण है। 

कुलदेवी                          उपासक सामाजिक गोत्र

1. अन्नपूर्णा माता  - खराड़ा, गंगसिया, चुवाणा, भढ़ाढरा, महीचाल,रावणसेरा, रुगलेचा।

2. अमणाय माता  - कुझेरा, खीचाणा, लाखणिया, घोड़वाल, सरवाल, परवला।

3. अम्बिका माता  -  कुचेवा, नाठीवाला।

4. आसापुरी माता  -  अदहके, अत्रपुरा, कुडेरिया, खत्री आसापुरा, जालोतिया, टुकड़ा, ठीकरिया, तेहड़वा, जोहड़, नरवरिया, बड़बेचा, बाजरजुड़ा, सिंद, संभरवाल, मोडक़ा, मरान, भरीवाल,  चौहान।

5. कैवाय माता   - कीटमणा, ढोलवा, बानरा, मसाणिया, सींठावत।

6. कंकाली माता  - अधेरे, कजलोया, डोलीवाल, बंहराण, भदलास।

7. कालिका माता  - ककराणा, कांटा, कुचवाल, केकाण, घोसलिया, छापरवाल, झोजा, डोरे, भीवां, मथुरिया, मुदाकलस।

8. काली माता   - बनाफरा

9. कोटासीण माता  -  गनीवाल, जांगड़ा, ढीया, बामलवा, संखवाया, सहदेवड़ा, संवरा।

10. खींवजा माता  -  रावहेड़ा, हरसिया।

11. चण्डी माता   -  जांगला, झुंडा, डीडवाण, रजवास, सूबा।

12. चामुण्डा माता  - उजीणा, जोड़ा, झाट, टांक, झींगा, कुचोरा, ढोमा, तूणवार, धूपड़, भदलिया, बागा, भमेशा, मुलतान, लुद्र, गढ़वाल, गोगड़, चावड़ा, चांवडिया, जागलवा, झीगा, डांवर, सेडूंत।

13. चक्रसीण माता  - चतराणा, धरना, पंचमऊ, पातीघोष, मोडीवाल, सीडा।

14. चिडाय माता  - खीवाण जांटलीवाल, बडग़ोता, हरदेवाण।

15. ज्वालामुखी माता  -  कड़ेल, खलबलिया, छापरड़ा, जलभटिया, देसवाल, बड़सोला, बाबेरवाल, मघरान, सतरावल, सत्रावला, सीगड़, सुरता, सेडा, हरमोरा।

16. जमवाय माता - कछवाहा, कठातला, खंडारा, पाडीवाल,बीजवा, सहीवाल, आमोरा, गधरावा, धूपा, रावठडिय़ा।

17. जालपा माता - आगेचाल, कालबा, खेजड़वाल, गदवाहा, ठाकुर, बंसीवाल, बूट्टण, सणवाल।

18. जीणमाता - तोषावड़, ।

19. तुलजा माता - गजोरा, रुदकी।

20. दधिमथी माता - अलदायण, अलवाण, अहिके,उदावत, कटलस, कपूरे, करोबटन, कलनह, काछवा, कुक्कस, खोर, माहरीवाल।

21. नवदुर्गा माता - टाकड़ा, नरवला, नाबला, भालस।

22. नागणेचा माता - दगरवाल, देसा, धुडिय़ा, सीहरा, सीरोटा।

23. पण्डाय (पण्डवाय) माता - रगल, रुणवाल, पांडस।

24. पद्मावती माता - कोरवा, जोखाटिया, बच्छस, बठोठा, लूमरा।

25. पाढराय माता - अचला।

26. पीपलाज माता - खजवानिया, परवाल, मुकारा।

27. बीजासण माता - अदोक , बीजासण, मंगला, मोडकड़ा, मोडाण, सेरने।

28. भद्रकालिका माता - नारनोली।

29. मुरटासीण माता - जाड़ा, ढल्ला, बनाथिया, मांडण, मौसूण, रोडा।

30. लखसीण माता - अजवाल, अजोरा, अडानिया, छाहरावा, झुण्डवा, डीगडवाल, तेहड़ा, परवलिया, बगे, राजोरिया, लंकावाल, सही, सुकलास, हाबोरा।

31. ललावती माता - कुकसा, खरगसा, खरा, पतरावल, भानु, सीडवा, हेर।

32. सवकालिका माता - ढल्लीवाल, बामला, भंवर, रूडवाल, रोजीवाल, लदेरा, सकट।

33. सम्भराय माता - अडवाल, खड़ानिया, खीपल, गुगरिया, तवरीलिया, दुरोलिया, पसगांगण, भमूरिया।

34. संचाय माता - डोसाणा।

35. सुदर्शनमाता - मलिंडा।

यह विवरण विभिन्न समाजों की प्रतिनिधि संस्थाओं तथा लेखकों द्वारा संकलित एवं प्रकाशित सामग्री पर आधारित है। इसके बारे में प्रबुद्धजनों की सम्मति एवं सुझाव सादर आमन्त्रित हैं। सम्मतियों व सुझावों के परिप्रेक्ष्य में पूरे विवरण का पुन: विश्लेषण कर प्रबुद्धजनों के अवलोकनार्थ प्रस्तुत किया जाएगा। सर्वसम्मत विवरण को शोधग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।
जिन कुलदेवियों के नाम इस विवरण में नहीं हैं उन्हें शामिल करने हेतु सर्वेक्षण-प्रपत्र में विवरण आमन्त्रित है।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

स्तोत्रम्



रचन: आदि शंकराचार्य

अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ १ ॥

कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ २ ॥

नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः ।
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ३ ॥

नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्याम् ।
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ४ ॥

नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्याम् ।
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ५ ॥

पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्याम् ।
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ६ ॥

शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्याम् ।
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ७ ॥

स्वार्चापराणाम् अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्याम् ।
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ८ ॥

कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्याम् ।
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ९ ॥






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आदि शंकराचार्य महाभाग द्वारा रचित

श्री अन्नपूर्णास्तोत्रम् 


नित्यानंदकरी वराभयकरी सौंदर्य रत्नाकरी
निर्धूताखिल घोर पावनकरी प्रत्यक्ष माहेश्वरी ।
प्रालेयाचल वंश पावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १ ॥

नाना रत्न विचित्र भूषणकरि हेमांबराडंबरी
मुक्ताहार विलंबमान विलसत्-वक्षोज कुंभांतरी ।
काश्मीरागरु वासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ २ ॥

योगानंदकरी रिपुक्षयकरी धर्मैक्य निष्ठाकरी
चंद्रार्कानल भासमान लहरी त्रैलोक्य रक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यकरी तपः फलकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ३ ॥

कैलासाचल कंदरालयकरी गौरी-ह्युमाशांकरी
कौमारी निगमार्थ-गोचरकरी-ह्योंकार-बीजाक्षरी ।
मोक्षद्वार-कवाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ४ ॥

दृश्यादृश्य-विभूति-वाहनकरी ब्रह्मांड-भांडोदरी
लीला-नाटक-सूत्र-खेलनकरी विज्ञान-दीपांकुरी ।
श्रीविश्वेशमनः-प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ५ ॥

उर्वीसर्वजयेश्वरी जयकरी माता कृपासागरी
वेणी-नीलसमान-कुंतलधरी नित्यान्न-दानेश्वरी ।
साक्षान्मोक्षकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ६ ॥

आदिक्षांत-समस्तवर्णनकरी शंभोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरा त्रिपुरेश्वरी त्रिनयनि विश्वेश्वरी शर्वरी ।
स्वर्गद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ७ ॥

देवी सर्वविचित्र-रत्नरुचिता दाक्षायिणी सुंदरी
वामा-स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ८ ॥

चंद्रार्कानल-कोटिकोटि-सदृशी चंद्रांशु-बिंबाधरी
चंद्रार्काग्नि-समान-कुंडल-धरी चंद्रार्क-वर्णेश्वरी
माला-पुस्तक-पाशसांकुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ९ ॥

क्षत्रत्राणकरी महाभयकरी माता कृपासागरी
सर्वानंदकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी ।
दक्षाक्रंदकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १० ॥

अन्नपूर्णे सादापूर्णे शंकर-प्राणवल्लभे ।
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थं बिक्बिं देहि च पार्वती ॥ ११ ॥

माता च पार्वतीदेवी पितादेवो महेश्वरः ।
बांधवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ १२ ॥

सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमो‌உस्तु ते ॥ १३ ॥




ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं...

जीवन में कभी समझौता करना पड़े
   तो कोई बड़ी बात नहीं,
क्योंकि,
झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

ज़िन्दगी जीने के दो ही तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!

पहले में: प्रयास है, कयास है.… 
दूसरे में: समझौता है, अनायास है 

जिंदगी जीना आसान नहीं होता; 
बिना संघर्ष कोई,महान नहीं होता.!

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है; 
पर जो हर हाल में खुश रहते हैं; 
जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।

चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ; 
बहुत कुछ बोलो और कुछ ना छुपाओ;

खुद ना रूठो कभी, सबको मनाओ;
राज़ है ये जिंदगी का "बस जीते चले जाओ।"

जो होना है वो होकर रहेगा,
तू कल की फिकर मे
अपना आज बर्बाद न कर...

हंस मरते हुये भी गाता है और
मोर नाचते हुये भी रोता है....
अपनी पसंद का अजीब फंडा है

दुखो वाली रात, नींद नही आती
और
खुशी वाली रात, .कौन सोता है...


ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।


जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं :
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।


जीवन का सबसे बड़ा अपराध - किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि - किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।


जिंदगी जीना आसान नहीं होता;
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता;
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट;
पत्थर भी भगवान नहीं होता।


जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।


मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।


दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे:
दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज - अपने लिए हररात नहीं देता।
फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।


मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।


कभी भी 'कामयाबी' को दिमाग और 'नकामी' को दिल में जगह नहीं देनी चाहिए।
क्योंकि, कामयाबी दिमाग में घमंड और नकामी दिल में मायूसी पैदा करती है।


कौन देता है उम्र भर का सहारा। लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं।


कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए।
यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता?

 अच्छा लगा तो share जरुर करे
शીर्फ़ १ मिनट लगेगा.

Nice Lines By Gulzar Sahab
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पानी से तस्वीर कहा बनती है,
ख्वाबों से तकदीर कहा बनती है,
किसी भी रिश्ते को सच्चे दिल से निभाओ,
ये जिंदगी फिर वापस कहा मिलती है
कौन किस से चाहकर दूर होता है,
हर कोई अपने हालातों से मजबूर होता है,c
हम तो बस इतना जानते है,
हर रिश्ता "मोती"और हर दोस्त "कोहिनूर" होता है।

सर्जना अपना साझा मंच 

शनिवार, 5 सितंबर 2015

भजन सरोवर

भजन - भाव 

सुभद्रा सोनी - दुर्गा सोनी 


गुरूजी

राम नाम की नैया लेकर सतगुरु करे पुकार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

जो कोई इस नैया में चढ़ जायेगा
जनम-जनम का मैला मन धुल जाएगा

पाप की गठरी धरी सीस कैसे आऊँ मैं
अपने ही अवगुण से भगवन खुद शरमाऊँ मई

तेरी नैया साँची रे भगवन मेंरे पाप हजार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

कर के कृपा सतगुरुजी ने चूनर रंग डाली
भक्ति भाव की भाषा उसमे लिख डाली

रंग भरी मेरी चुनरिया हो गई लालम-लाल
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

सब कुछ छोड़ दे मेरे हाथों में
साँस साँस सब जोड़ दे मेरे हाथों में

पाप पुण्य का बन कर आया मैं हूँ ठेकेदार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

बड़े भाग्य से सतगुरुजी का प्यार मिला
मानव जीवन जीने का अधिकार मिला

जीव मेरा जब डूबन लागे आ गयो खेवन हार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार

राम नाम की नैया लेकर सतगुरु करे पुकार
आओ मेरी नैया में ले जाऊं भव से पार


dddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddd

   *राधा का घर अंगना *

राधा का घर अँगना फूलों से महकता है
राधा तेरे शीश का टीका चमकता है
टीके को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरी कानों की झुमकी चमकती है
झुमकी को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरे गले का हरवा चमकता है
हरवे  को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरे हाथों का गजरा महकता है
गजरे को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा  पैरों की पायल झनकती हैं
पायल की रन-झुन से मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

राधा तेरे अंग अंग की साडी  सदी चमकती है
साडी को देख करके मेरा कान्हा मचलता है
राधा का घर अँगना………

mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm

राधा  के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम

रहे मेरे मुख में सदा तेरा नाम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।

कोई दुनिया की ताकत जुदा न करे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मुझे तो न मरने जीने से काम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
मुझे अपना  तुमने बना ही लिया
कहे तुमको सब ही यशोदा के लाल

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

चाहे मुझको कोई दीवाना कहे
दीवाना कहे या मस्ताना कहे
मुझे तो है प्यारा  प्रभु तेरा नाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

अब चरणो में मुझको बिठा लो प्रभु
और अपने में मुझको मिलालो प्रभु
रटूं तेरा नाम मई सुबह और शाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

कोई दुनिया की ताकत जुदा न करे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मिले जो मुझे राधा-राधा कहे
मुझे तो न मरने जीने से काम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
इन नजरों ने तेरी दिलासा दिया
मुझे अपना  तुमने बना ही लिया
कहे तुमको सब ही यशोदा के लाल

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

चाहे मुझको कोई दीवाना कहे
दीवाना कहे या मस्ताना कहे
मुझे तो है प्यारा  प्रभु तेरा नाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

अब चरणो में मुझको बिठा लो प्रभु
और अपने में मुझको मिलालो प्रभु
रटूं तेरा नाम मई सुबह और शाम

ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम
ओ राधा के श्याम ओ मीरा के श्याम।।

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ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे

ये द्वारिका नगरी मोहे नेकहुँ ना भावे
मैया तेरे गोकुल की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

मैया तेरी गोदी की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

ये छप्पन प्रकार के भोजन मोहे नेकहुँ न भावे
मैया तेरे माखन की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

ये सोला हजार पटरानी मोहे नेकहुँ न भावे
मैया तेरी राधा की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।

ये सोने का पलना मोहे नेकहुँ न भावे
मैया तेरी गोदी की मोहे याद बहुत आवै
ऊधौ जा कहियो मैया से तेरो लाला याद करे।।



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खिचड़ो 

म्हारा कानूडा गिरधारी, कर्मा बिनती कर कर हारी, बेटी जाट री
बापू दूजे गाँव सिधारो, थारो मन्दरियो सम्भलायो, सरो पूजा ढंग सिखायो  बेटी जाट री।।

बेटी तड़के उठ कर अइयो, म्हारा गिरधर ने न्हवइयो, पूजा करके भोग लगइयो
मीठ पानी से नहलायो, ऊंचे आसान पर बैठाओ, चन्दनं तिलक लगायो, बेटी जाट री

जड़ कर मन्दरिया में ताली, कर्मा गीत गावती चाली, ल्याई खीचड़लो भर थाली
लड़के छाछ राबड़ी ल्याऊं मीठा गुड री खीर बणाऊं, उठ कर गैया को जिमाऊं, बेटी जाट री।।

म्हारी भूल बतादो सारी, क्यूँ थें रूठ्या कुंजबिहारी, म्हाने गली गाल्यां पड़ती खारी
बापू बहार गाओं से आवै, म्हारे मुक्यां से धमकावै,कर्मा आंसूड़ा ढलकावै, बेटी जाट री।।

थारे गर्दन काट चडाऊँ, या मैं जहर खाय मर जाऊं, तो थाने आज जिमाऊं,
पड़दो आड़ में कर- कर दीनो, मोहन खीचड़लो खा लीनो, भोला भगतां दरसन दीनो,बेटी जाट री।।

म्हारा कानूडा गिरधारी, कर्मा बिनती कर कर हारी, बेटी जाट री
बापू दूजे गाँव सिधारो, थारो मन्दरियो सम्भलायो, सरो पूजा ढंग सिखायो  बेटी जाट री।।


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रामायण 


हमें निज धर्म पर चलना,बताती रोज रामायण ।
सदा शुभ आचरण करना ,सिखाती रोज रामायण ।।
जिन्हें संसार सागर से उतर कर पार जाना है ।
उन्हें सुख के किनारे पर लगाती रोज रामायण ।।
कहीं छवि विष्णु की बाँकी कहीं शंकर की है झाँकी ।
हृदय आनन्द झूले पर झुलाती रोज रामायण ।।
सरल कविता की कुंजों मे बना मंदिर है हिन्दी का ।

जहां प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण ।।


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गजानन की होली

मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

ब्रह्मलोक से ब्रह्मा आये, ब्रह्माणी के साथ ,
गौरा मैया के संग आये, तिरलोकी के नाथ ,
मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

सुरपति के संग नारद आये, गावे राग धमार,
वृन्दावन से बाँके-बिहारी, ले वृसभान दुलार,
मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

रिद-सिद लाल-गुलाबी हो रई, आनंद को नहीं पार
मोद-प्रमोद अपार संग में, प्रीत भरी मनुहार
मच रहि रणतभंवर में होली, खेले गणपतिजी महाराज।

लाल भी मणिमाल गले की, लाल ही कुण्डल कान


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देव वंदना 

पहले पूजूँ गणेश को ब्रह्मा विष्णु महेश को 
नारद को और शेष को सबको मेरा प्रणाम है। 

गौरां को गौरीश को जगन्नाथ जगदीश को 
नाथ द्वारकाधीश को सबको मेरा प्रणाम है। 

रामचन्द्र रघुवीर को लक्ष्मण से रणधीर को 
बजरंगी महावीर को सबको मेरा प्रणाम है। 

नंदराय से दाता को बलदाऊ से भ्राता को 
कृष्णचन्द्र सुखदाता को सबको मेरा प्रणाम है। 

सरस्वती माँ शारदा को श्रीमती यशोदा माता को 
लक्ष्मी को और माया को सबको मेरा प्रणाम है। 

कलकत्ते की काली को चंडी खप्पर वाली को 
बागेश्वरी मतवाली को सबको मेरा प्रणाम है।

वृंदा तुलसी मैया को सूरज शशि और चन्दा को 
सागर सिंधु नंदा को सबको मेरा प्रणाम है। 
  
गंगा मैया रेवा को सरयू  शिप्रा मैया को 
नंदीगण माँ गैया को सबको मेरा प्रणाम है।

मात-पिता गुरुदेव को सास-सुसर पतिदेव को 
घर के सब कुलदेव को सबको मेरा प्रणाम है।


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तेरे जैसा राम भगत

तेरे जैसा राम भगत कोई हुआ ना होगा मतवाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला।

आज अवध की शोभी लगती स्वर्ग लोक से भी प्यारी,
१४ वर्षों बाद राम की राजतिलक की तयारी।
हनुमत के दिल की मत पूछो झूम रहा है मतवाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

रतन जडित हीरो का हार जब लंकापति ने नज़र किया,
राम ने सोचा आभूषण है सीता जी की और किया।
सीता ने हनुमत को दे दिया, इसे पहन मेरे लाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

हार हाथ में ले कर हनुमत गुमा फिरा कर देख रहे,
नहीं समझ में जब आया तब तोड़ तोड़ कर फैंक रहे।
लंकापति मन में पछताया, पड़ा है बंदिर से पाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

लंकापति का धीरज टूटा क्रोध की भड़क उठी ज्वाला,
भरी सभा में बोल उठा क्या पागल हो अंजलि लाला।
अरे हार कीमती तोड़ डाला, पेड़ की डाल समझ डाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

हाथ जोड़ कर हनुमत बोले, मुझे है क्या कीमत से काम,
मेरे काम की चीज वही है, जिस में बसते सीता राम।
राम नज़र ना आया इसमें, यूँ बोले बजरंग बाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

इतनी बात सुनी हनुमत की, बोल उठा लंका वाला,
तेरे में क्या राम बसा है, बीच सभा में कह डाला।
चीर के सीना हनुमत ने सियाराम का दरश करा डाला,
एक ज़रा सी बात की खातिर सीना फाड़ दिखा डाला॥

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भिलनी 

मीठे लगे तेरे बेर, भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.
कोन नगर से तुम लाई हो ऐसे मीठे बेर
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

प्रेमनगर से हम लाए हैं , ऐसे मीठे बेर।
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

हँस मुस्काए कहत राम जी , खाने पड़ेंगे ये बेर.
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

द्रोणा गिरी परबत पे जा कर, संजीवनी बने बेर।
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर

शक्ती बाण लग्यो लक्ष्मण को, प्राण बचाये बेर।
भिलनी  मीठे लगे तेरे बेर.

ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

ऊधो 

श्याम बड़े छलिया कुंजन में छोड़ गए ऊधो

जो हम होती जल की मछलियाँ , श्याम करात स्नान
चरण छू लेती रे ऊधो

जो हम होती बेला चमेलिया, श्याम पहनते माल
गले लग जाती रे ऊधो

जो हम होती बाँस की बाँसुरिया, श्याम लगाते अधर
राग बन जाती रे ऊधो

जो हम होती बन की हिरनिया, श्याम चलते बाण
प्राण ताज देती रे ऊधो

ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

गीता ज्ञान

जब तन से निकले प्राण मेरे मुझे गीता ज्ञान सुना देना।
बर्बाद न करना देह मेरी, मुझे यमुना किनारे पहुंचा देना।

जो भकत हो मेरे भगवन का, जो भजन करे मेरे मोहन का।
जहँ किरतन हो मेरे कान्हा का वहँ जा कर सीस झुका देना।

हरी नाम की माला लेकर के हरि भक्तों से जा कर कह देना।
जँह मूरत हो मेरे मोहन की वहां प्रेंम की माला पिना देना।

हरि नाम का डंका लेकर के हरि भक्तों से जा कर कह देना।
मीरा की नैया भवसागर प्रभु आ कर पार लगा देना


ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

राम भजन


दसरथ राज दुलारा हमें तो बड़ा प्यारा लगे
कौसल्या की आँख का तारा हमें तो बड़ा प्यारा लगे.

सीस मुकुट मकराकृत कुण्डल गल बैजंती माला
हमें तो बड़ा प्यारा लगे

छोटे छोटे हाथ में छोटे से धनुष, दानुष का टंकारा
हमें तो बड़ा प्यारा लगे

छोटे छोटे चरणों में छोटी छोटी पायल का झंकारा
हमें तो बड़ा प्यारा लगे

दसरथजी का प्यारा, कौसल्या दुलारा सिया दुल्हनिया वारा
हमें तो बड़ा प्यारा लगे


ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं
मुरली


श्याम तेरी मधुर मुरली, मेरे मन को भाई है
वारि जाऊँ कारीगर पे, ये जिसने बनाई है

मथुरा में जनम लिया, गोकुल में आया है
वारि जाऊँ वृन्दावन पे जहाँ रास रचाया है
श्याम तेरी मधुर मुरली,,,,,,,,