शनिवार, 14 नवंबर 2015

ईश्वर से प्रार्थना

ओें शं नो मित्रः शं वरूणः शं नो भवत्वर्य्यमा।
शं  इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरूरूक्रमः।। 

हे सच्चिदानन्दानन्तस्वरूप, हे नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव, हे अद्वितीयानुपमजगदादिकारण,
हे अज, निराकार, सर्वशक्तिमन्, न्यायकारिन्, हे जगदीश, सर्वजगदुत्पादकाधार, 
हे सनातन, सर्वंगलमय, सर्वस्वामिन्, हे करूणाकरास्मत्पितः, 
परमसहायक, हे सर्वानन्दप्रद, सकलदुःखविनाशक, 
हे अविद्यान्धकारनिर्मूलक, विद्यार्कप्रकाशक, हे परमैश्वर्यदायक, साम्राज्यप्रसारक, 
हे अधर्मोद्धारक, पतितपावन, मान्यप्रद, हे विश्वविनोदक, विनयविधिप्रद, 
हे विश्वासविलासक, हे निरंजन, नायक, शर्मद, नरेश, निर्विकार, 
हे सर्वान्तर्यामिन्, सदुपदेशक, मोक्षप्रद,
हे सत्यगुणाकर, निर्मल, निरीह, निरामय, निरुपद्रव, दीनदयाकर, परमसुखदायक, 
हे दारिद्रयविनाशक, निर्वैरविधायक, सुनीतिवर्द्धक, 
हे प्रीतिसाधक, राज्यविधायक, शत्रुविनाशक, हे सर्वबलदायक, निर्बलपालक, हे सुधर्मसुपापक, 
हे अर्थसुसाधक, सुकामवर्द्धक, ज्ञानप्रद, हे सन्ततिपालक, धम्र्मसुशिक्षक, रागविनाशक, 
हे पुरुषार्थप्रापक, दुर्गुणनाशक, सिद्धिप्रद, हे सज्जनसुखद, दुष्टसुताडन, गर्वकुक्रोधकुलोभविदारक, 
हे परमेश, परेश, परमात्मन्, परब्रह्मन्, हे जगदानन्दक, परमेश्वर, व्यापक, सूक्ष्माच्छेद्य, 
हे अजरामृताभयनिर्बन्धनादे, हे अप्रतिमप्रभाव, निर्गुणातुल, विश्वाद्य, विश्ववन्द्य, विद्वद्विलासक, इत्याद्यनन्तविशेषणवाच्य, हे मंगलप्रदेश्वर ! 
आप सर्वथा सब के निश्चित मित्र हो। हमे सत्यसुखदायक सर्वदा हो। 
हे सर्वोत्कृष्ट, स्वीकरणीय, वरेश्वर ! आप वरूण अर्थात सब से परमोत्तम हो, सो आप हमको परम सुखदायक हो।
हे पक्षपातरहित, धर्मन्यायकारिन् ! आप अर्य्यमा (यमराज) हो इससे हमारे लिये न्याययुक्त सुख देने वाले आप ही हो। परमैश्वर्यवन् इन्द्रेश्वर ! आप हम को परमश्वर्ययुक्त शीघ्र स्थिर सुख दीजिये।

हे महाविद्यावायोधिपते, बृहस्पते, परमात्मन् ! हम लोगों को (वृहत) सब से बड़े सुख को देने वाले आप ही हो। 
हे सर्वव्यापक, अनन्तपराक्रमेश्वर विष्णो ! 
आप हमको अनन्त सुख देओ। जो कुछ हम मांगेंगे सो आप से ही मांगेंगे। 
सब सुखों को देनेवाला आप के बिना कोई नहीं है। सर्वथा हम लोगों को आप का ही आश्रय है, अन्य किसी का नहीं, 
क्योंकि सर्वशक्तिमान् न्यायकारी दयामय सब से बड़े पिता को छोड़ के अन्य किसी नीचे का आश्रय हम कभी न करेंगे। 
आप का तो स्वभाव ही है कि अंगीकृत को कभी नहीं छोड़ते सो आप सदैव हम को सुख देंगे, यह हमको दृढ़ निश्चय है।’

इस प्रार्थना में ईश्वर को सम्बोधन में जिन विशेषणों का प्रयोग किया गया है वह अपूर्व है 
जो हृदय को ईश्वर को श्रद्धा से भर देते हैं। 
हम समझते हैं कि पाठक इस मन्त्र व्याख्या से प्रसन्नता वह आह्लाद् का अनुभव करेंगे।

कई बार हम ईश्वर से प्रार्थना करते है परन्तु वह पूरी नहीं होती। 
इससे हमें दुःख पहुंचने के साथ ईश्वर के प्रति आस्था व विश्वास में न्यूनता उत्पन्न होती है। 
हमारी प्रार्थना पूरी न होने के कई कारण हो सकते हैं।  
हमारी पात्रता में कमी हो सकती है। हम जो मांग रहे हैं, यह आवश्यक नहीं कि वह हमारे हितकर ही हो। 




vivekanand asks




कुछ जिज्ञासा भरे प्रश्न जो नरेंद्र ने किये और उनके उत्तर के प्रकाश में नरेंद्र विवेकानंद बने। हम नरेंद्र के विषय में बहुत नहीं जानते उन्हें स्वामी विवेकानंद के रूप में ही जानते हैं। प्रस्तुत है ऐसा चमत्कारिक संवाद।

रामकृष्ण परमहंस

Swami Vivekanand: I can’t find free time. Life has become hectic.
Ramkrishna Paramahansa: Activity gets you busy. But productivity gets you free.

स्वामी विवेकानंद: मुझे समय ही नहीं मिल पा रहा, जीवन व्यस्ततापूर्ण हो गया है। 
रामकृष्ण परमहंस: क्रियाकलाप तुम्हे व्यस्त बना रहे हैं, लेकिन उत्पादकता तुम्हें इससे आजादी दिलाएगी। 

Swami Vivekanand: Why has life become complicated now?
Ramkrishna Paramahansa: Stop analyzing life.. It makes it complicated. Just live it.

स्वामी विवेकानंद: जीवन में जटिलताएं क्यों भर गई है ?
रामकृष्ण परमहंस: जेवण का विश्लेषण करना बंद करो। यही जटिलता का कारण है, इसे केवल जियो। 

Swami Vivekanand: Why are we then constantly unhappy?
Ramkrishna Paramahansa: Worrying has become your habit. That’s why you are not happy.

स्वामी विवेकानंद: तब हम निरंतर नाखुश क्यों हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: फ़िक्र करना तुम्हारी आदत बन चुकी है इसीलिए तुम दुखी हो। 

Swami Vivekanand: Why do good people always suffer?
Ramkrishna Paramahansa: Diamond cannot be polished without friction. Gold cannot be purified without fire. Good people go through trials, but don’t suffer. With that experience their life becomes better, not bitter.

स्वामी विवेकानंद: अच्छे लोग ही सदैव क्यों कष्ट उठाते हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: बिना घिसी के हीरा चमक नहीं सकता, आग में तपे बिना सोना निखर नहीं सकता। अच्छे लोग कसूती पर से गुजरते हैं अपितु कष्ट से नहीं। इन अनुभवों से उनका जीवन कटु नहीं बेहतर होता है। 

Swami Vivekanand: You mean to say such experience is useful?
Ramkrishna Paramahansa: Yes. In every term, Experience is a hard teacher. She gives the test first and the lessons .

स्वामी विवेकानंद: क्या इसका मतलब यह है की ऐसे अनुभव उपयोगी है ?
रामकृष्ण परमहंस: हाँ , हर समय अनुभव एक सख्त शिक्षक है। पहले इसका स्वाद फिर शिक्षा मिलती है।  


Swami Vivekanand: Because of so many problems, we don’t know where we are heading…
Ramkrishna Paramahansa: If you look outside you will not know where you are heading. Look inside. Eyes provide sight. Heart provides the way.

स्वामी विवेकानंद: कई समस्याओं के रहते हम यह नहीं जान पाते हैं कि हम कहाँ ठीक कर रहे हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: जब तुम बहार देख रहे होते हो तब तुम्हें यह पता नहीं चलता की तुम कहाँ ठीक हो ? इसलिए अपने भीतर दखो। आँखे देख भर सकती है लेकिन दिमाग रास्ते बताएगा। 

Swami Vivekanand: Does failure hurt more than moving in the right direction?
Ramkrishna Paramahansa: Success is a measure as decided by others. Satisfaction is a measure as decided by you.

स्वामी विवेकानंद: क्या असफलता सही रस्ते पर चलने से अधिक चोट पहुंचती है ?
रामकृष्ण परमहंस: सफलता का मापदंड दूसरों के द्वारा तय होता है वहीँ संतोष मिला की नहीं यह तुम तय करते हो। 

Swami Vivekanand: In tough times, how do you stay motivated?
Ramkrishna Paramahansa: Always look at how far you have come rather than how far you have to go. Always count your blessing, not what you are missing.

स्वामी विवेकानंद: कठिन घड़ियों में आप कैसे अभिप्रेरित यह पाते हो?
रामकृष्ण परमहंस: ऐसे में तुम्हे यह देखना है की तुम कितना रास्ता तय कर चुके हो इसके बजाय की तुम्हें और कितना जाना है। सदैव प्राप्त वरदानों को देखो यह नहीं कि तुमने क्या खोया है। 

Swami Vivekanand: What surprises you about people?
Ramkrishna Paramahansa: When they suffer they ask, “why me?” When they prosper, they never ask “Why me?”

स्वामी विवेकानंद: लोगों के विषय में आप क्या आश्चर्य जनक समझते हो ?
रामकृष्ण परमहंस: जब वे कष्ट पाते हैं तो पूछते है , मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?  लेकिन जब सफल होते हैं तो तब नहीं कहते कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?

Swami Vivekanand: How can I get the best out of life?
Ramkrishna Paramahansa: Face your past without regret. Handle your present with confidence. Prepare for the future without fear.

स्वामी विवेकानंद: मैं जीवन में सबसे बेहतर कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ?
रामकृष्ण परमहंस: अपने अतीत पर पछताओ मत, अपने वर्तमान को आत्मविश्वास से सम्हालो और भविष्य के लिए निर्भय हो कर खुद को तैयार करो। 

Swami Vivekanand: One last question. Sometimes I feel my prayers are not answered.
Ramkrishna Paramahansa: There are no unanswered prayers. Keep the faith and drop the fear. Life is a mystery to solve, not a problem to resolve. Trust me. Life is wonderful if you know how to live.

स्वामी विवेकानंद: कभी-कभी मुझे लगता है की मेरी प्रार्थना का उत्तर मुझे नहीं मिल रहा है। 
रामकृष्ण परमहंस: ऐसी कोई प्रार्थना नहीं होती जिसका उत्तर नहीं मिलता हो। भय छोडो और विश्वास करो। जीयन एक रहस्य है उसे उजागर करो, एक समस्या नहीं जिसे सुलझाया जावे। मुझ पर विश्वास करो। जीवन चमत्कारपूर्ण है, यह जानो की कैसे जिया जाय।   



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कुछ जिज्ञासा भरे प्रश्न जो नरेंद्र ने रामकृष्ण परमहंस से किये और उनके उत्तर के प्रकाश में नरेंद्र विवेकानंद बने। हम नरेंद्र के विषय में बहुत नहीं जानते उन्हें स्वामी विवेकानंद के रूप में ही जानते हैं। प्रस्तुत है ऐसा चमत्कारिक संवाद। 


स्वामी विवेकानंद: मुझे समय ही नहीं मिल पा रहा, जीवन व्यस्ततापूर्ण हो गया है। रामकृष्ण परमहंस: क्रियाकलाप तुम्हे व्यस्त बना रहे हैं, लेकिन उत्पादकता तुम्हें इससे आजादी दिलाएगी। 

स्वामी विवेकानंद: जीवन में जटिलताएं क्यों भर गई है ?
रामकृष्ण परमहंस: जेवण का विश्लेषण करना बंद करो। यही जटिलता का कारण है, इसे केवल जियो। 
स्वामी विवेकानंद: तब हम निरंतर नाखुश क्यों हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: फ़िक्र करना तुम्हारी आदत बन चुकी है इसीलिए तुम दुखी हो। 
स्वामी विवेकानंद: अच्छे लोग ही सदैव क्यों कष्ट उठाते हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: बिना घिसी के हीरा चमक नहीं सकता, आग में तपे बिना सोना निखर नहीं सकता। अच्छे लोग कसूती पर से गुजरते हैं अपितु कष्ट से नहीं। इन अनुभवों से उनका जीवन कटु नहीं बेहतर होता है। 
स्वामी विवेकानंद: क्या इसका मतलब यह है की ऐसे अनुभव उपयोगी है ?
रामकृष्ण परमहंस: हाँ , हर समय अनुभव एक सख्त शिक्षक है। पहले इसका स्वाद फिर शिक्षा मिलती है।  


स्वामी विवेकानंद: कई समस्याओं के रहते हम यह नहीं जान पाते हैं कि हम कहाँ ठीक कर रहे हैं ? 
रामकृष्ण परमहंस: जब तुम बहार देख रहे होते हो तब तुम्हें यह पता नहीं चलता की तुम कहाँ ठीक हो ? इसलिए अपने भीतर दखो। आँखे देख भर सकती है लेकिन दिमाग रास्ते बताएगा। 
स्वामी विवेकानंद: क्या असफलता सही रस्ते पर चलने से अधिक चोट पहुंचती है ?
रामकृष्ण परमहंस: सफलता का मापदंड दूसरों के द्वारा तय होता है वहीँ संतोष मिला की नहीं यह तुम तय करते हो। 
स्वामी विवेकानंद: कठिन घड़ियों में आप कैसे अभिप्रेरित यह पाते हो?
रामकृष्ण परमहंस: ऐसे में तुम्हे यह देखना है की तुम कितना रास्ता तय कर चुके हो इसके बजाय की तुम्हें और कितना जाना है। सदैव प्राप्त वरदानों को देखो यह नहीं कि तुमने क्या खोया है। 
स्वामी विवेकानंद: लोगों के विषय में आप क्या आश्चर्य जनक समझते हो ?
रामकृष्ण परमहंस: जब वे कष्ट पाते हैं तो पूछते है , मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?  लेकिन जब सफल होते हैं तो तब नहीं कहते कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?
स्वामी विवेकानंद: मैं जीवन में सबसे बेहतर कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ?
रामकृष्ण परमहंस: अपने अतीत पर पछताओ मत, अपने वर्तमान को आत्मविश्वास से सम्हालो और भविष्य के लिए निर्भय हो कर खुद को तैयार करो। 
स्वामी विवेकानंद: कभी-कभी मुझे लगता है की मेरी प्रार्थना का उत्तर मुझे नहीं मिल रहा है। 
रामकृष्ण परमहंस: ऐसी कोई प्रार्थना नहीं होती जिसका उत्तर नहीं मिलता हो। भय छोडो और विश्वास करो। जीयन एक रहस्य है उसे उजागर करो, एक समस्या नहीं जिसे सुलझाया जावे। मुझ पर विश्वास करो। जीवन चमत्कारपूर्ण है, यह जानो की कैसे जिया जाय।  

सोमवार, 2 नवंबर 2015

अतिविशिष्ट अतिथि


हमारे अतिविशिष्ट अतिथि 

माननीय संतोष जड़िया

भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है । इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं । हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है । मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पाये, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है । भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है । सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।

भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र् के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस, स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार आदि का विशेष महत्त्व रहा है।
संस्कृति का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो । व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है।
ये मानवता के पोषक हैं, समर्पित साधक हैं, सनातन संस्कृति के युग संवाहक हैं। इनका समस्त जीवन त्यागमय होता है। ईश्वर ने जगत का सृजन किया, सृजन में ईशत्व है और इस कर्मभूमि में जो सृजक हैं वे वास्तव में ईश्वर की वरद स्वरुप विभूतियाँ है।
हमारा यह प्रयास है की हम इन विभूतियों को, उनके संघर्ष को, उनकी मानवता के प्रति समर्पित भावनाओं को, उनमें समाज को सदैव देने के भाव को और उनके आदर्शों को जन जन तक पहुंचाने का है।

इस श्रंखला में सर्व प्रथम एक समर्पित कलाकार माननीयसंतोष जड़िया के जीवन और व्यक्तित्व परिचय यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। उनसे डॉ. रमेश सोनी, अरविन्द सोनी और रामनारायण सोनी की बातचीत के कुछ अंश उद्धरित किये जा रहे हैं।