ओें शं नो मित्रः शं वरूणः शं नो भवत्वर्य्यमा।
शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरूरूक्रमः।।
हे सच्चिदानन्दानन्तस्वरूप, हे नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव, हे अद्वितीयानुपमजगदादिकारण,
हे अज, निराकार, सर्वशक्तिमन्, न्यायकारिन्, हे जगदीश, सर्वजगदुत्पादकाधार,
हे सनातन, सर्वंगलमय, सर्वस्वामिन्, हे करूणाकरास्मत्पितः,
परमसहायक, हे सर्वानन्दप्रद, सकलदुःखविनाशक,
हे अविद्यान्धकारनिर्मूलक, विद्यार्कप्रकाशक, हे परमैश्वर्यदायक, साम्राज्यप्रसारक,
हे अधर्मोद्धारक, पतितपावन, मान्यप्रद, हे विश्वविनोदक, विनयविधिप्रद,
हे विश्वासविलासक, हे निरंजन, नायक, शर्मद, नरेश, निर्विकार,
हे सर्वान्तर्यामिन्, सदुपदेशक, मोक्षप्रद,
हे सत्यगुणाकर, निर्मल, निरीह, निरामय, निरुपद्रव, दीनदयाकर, परमसुखदायक,
हे दारिद्रयविनाशक, निर्वैरविधायक, सुनीतिवर्द्धक,
हे प्रीतिसाधक, राज्यविधायक, शत्रुविनाशक, हे सर्वबलदायक, निर्बलपालक, हे सुधर्मसुपापक,
हे अर्थसुसाधक, सुकामवर्द्धक, ज्ञानप्रद, हे सन्ततिपालक, धम्र्मसुशिक्षक, रागविनाशक,
हे पुरुषार्थप्रापक, दुर्गुणनाशक, सिद्धिप्रद, हे सज्जनसुखद, दुष्टसुताडन, गर्वकुक्रोधकुलोभविदारक,
हे परमेश, परेश, परमात्मन्, परब्रह्मन्, हे जगदानन्दक, परमेश्वर, व्यापक, सूक्ष्माच्छेद्य,
हे अजरामृताभयनिर्बन्धनादे, हे अप्रतिमप्रभाव, निर्गुणातुल, विश्वाद्य, विश्ववन्द्य, विद्वद्विलासक, इत्याद्यनन्तविशेषणवाच्य, हे मंगलप्रदेश्वर !
आप सर्वथा सब के निश्चित मित्र हो। हमे सत्यसुखदायक सर्वदा हो।
हे सर्वोत्कृष्ट, स्वीकरणीय, वरेश्वर ! आप वरूण अर्थात सब से परमोत्तम हो, सो आप हमको परम सुखदायक हो।
हे पक्षपातरहित, धर्मन्यायकारिन् ! आप अर्य्यमा (यमराज) हो इससे हमारे लिये न्याययुक्त सुख देने वाले आप ही हो। परमैश्वर्यवन् इन्द्रेश्वर ! आप हम को परमश्वर्ययुक्त शीघ्र स्थिर सुख दीजिये।
हे महाविद्यावायोधिपते, बृहस्पते, परमात्मन् ! हम लोगों को (वृहत) सब से बड़े सुख को देने वाले आप ही हो।
हे सर्वव्यापक, अनन्तपराक्रमेश्वर विष्णो !
आप हमको अनन्त सुख देओ। जो कुछ हम मांगेंगे सो आप से ही मांगेंगे।
सब सुखों को देनेवाला आप के बिना कोई नहीं है। सर्वथा हम लोगों को आप का ही आश्रय है, अन्य किसी का नहीं,
क्योंकि सर्वशक्तिमान् न्यायकारी दयामय सब से बड़े पिता को छोड़ के अन्य किसी नीचे का आश्रय हम कभी न करेंगे।
आप का तो स्वभाव ही है कि अंगीकृत को कभी नहीं छोड़ते सो आप सदैव हम को सुख देंगे, यह हमको दृढ़ निश्चय है।’
इस प्रार्थना में ईश्वर को सम्बोधन में जिन विशेषणों का प्रयोग किया गया है वह अपूर्व है
जो हृदय को ईश्वर को श्रद्धा से भर देते हैं।
हम समझते हैं कि पाठक इस मन्त्र व्याख्या से प्रसन्नता वह आह्लाद् का अनुभव करेंगे।
कई बार हम ईश्वर से प्रार्थना करते है परन्तु वह पूरी नहीं होती।
इससे हमें दुःख पहुंचने के साथ ईश्वर के प्रति आस्था व विश्वास में न्यूनता उत्पन्न होती है।
हमारी प्रार्थना पूरी न होने के कई कारण हो सकते हैं।
हमारी पात्रता में कमी हो सकती है। हम जो मांग रहे हैं, यह आवश्यक नहीं कि वह हमारे हितकर ही हो।